आरी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

आरी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ आरा का अल्पा॰.]

१. लकड़ी चीरने का बढ़ई का एक औजार । विशेष— यह लोहे की एक दाँतीदार पटरी होती है जिसमें एक ओर काठ का दस्ता या मूठ लगी रहती है । मूँठ की ओर यह पटरी चौड़ी और आगे की ओर पतली होती जाती है । इससे रेतकर लकड़ी चीरते हैं । हाथीदाँत आदि चीरने के लिये जो आरी होती है वह बहुत छोटी होती है ।

२. लोहे की एक कील जो बैल हाँकने के पैने की नोक में लगी रहती है ।

३. जूता सीने का सूजा । सुतारी ।

आरी ^२ पु संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ आर = किनारा] ओर । तरफ । उ॰— बिछवाए पौरि लों बिछौना जरीबाफन के, खिंचवाए, चाँदनी सुगंध सब आरी में । —रघुनाथ (शब्द॰) ।

२. कोर । अवँठ । बारी ।

आरी ^३ वि॰ [अ॰ ] तंग । हैरान । आजिज । जैसे, -हम तो तुम्हारी चाल से आरी आ गए हैं । क्रि॰ प्र॰ —आना ।

आरी ^४ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰]

१. बबूल की जाति का एक प्रकार का पेड़ जिसे जालबर्बुरक या स्थूलकंटक भी कहते हैं ।

२. दुर्गंधखैर । बबुरी ।