उठना

विक्षनरी से

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क्रिया

अनुवाद

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

उठना क्रि॰ अ॰ [सं॰ उत्थान, पा॰ उट्ठान, प्रा॰ उट्ठाण, उटठण]

१. नीची स्थिति से और ऊँची स्थिति में होना । किसी वस्तु का ऐसी स्थिती में होना जिसमें उसका विस्तार पहले की अपेक्षा अधिक ऊँचाई तक पहुँचे । जैसे, लेटे हुए प्राणी का खड़ा होना । ऊँचा होना । संयो॰ क्रि॰—जान ।—पड़ना । मुहा॰—उठ खड़ा होना = चलने को तैयार होना । जैसे, अभी आए एक घंटा भी नहीं हुआ और उठ खड़े हुए । उठ जाना = दुनिया से उठ जाना । मर जाना । जैसे, —इस संसार में कैसे कैसे लोग उठ गए । उ॰—जो उठि गयो बहरि नहीं आयो मरि मरि कहाँ समाहीं ।—कबीर (शब्द॰) । उठती कोंपल = नक्युव्क । गभरू । उठती जवानी = युवावस्था का आरंभ । उठती परती = आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में प्रचलित जोत का एक भेद जिसके अनुसार किसानों को केवल उन खेतों का लगान देना पड़ता है जिनको वे उस वर्ष जोतते हैं और परती खेतों का नहीं देना पड़ता । उठते बैठते = प्रत्येक अवस्था में । हर घड़ी । प्रतिक्षण । जैसे—किसी को उठते बैठते गालियाँ देना ठीक नहीं । उठते जूती और बैठते लात = परस्पर मेल न होना । आपस में न बनना । उठना बैठना = आना जाना । संग साथ । मेल जोल । जैसे—इनका उठना बैठना बड़े लोगों में रहा है । उठ बैठ = दे॰ 'उठाबैठी' । उठाबैठी = (१) हैरानी । दौड़—धूप ।

२. बेकली । बेचैनी ।

३. उठने बैठने की कसरत । बैठक ।

२. ऊँचा होना । और ऊँचाई तक बढ़ जाना । जैसे—लहर उठना । उ॰—लहरैं उठी समुद उलथाना । भूला पंथ सरग नियराना—जायसी (शब्द॰) ।

२. ऊपर जाना । ऊपर चढ़ना । ऊपर होना । जैसे—बादल उठना, धूँआँ उठना, गर्द उठना । टिड्डी उठना । उ॰—(क) उठी रेनु रबी गएऊ छपाई । मरुत थकित् बसुधा अकुलाई ।—मानस, ६ ।७८ । (ख) खनै उठइ खन बूडइ, अस हिय कमल सँकेत । हीरमनहि बुलावहि सखी कहत जिव लेत ।—जायसी (शब्द॰) ।

४. कूदना । उछलना । उ॰— उठहि तुरंग लेहिं नहिं बागा । जातौ—उलटि गगन कहँ लागा—जायसी (शब्द॰) ।

५. बिस्तर छोड़ना ।जागना । जैसे,— देखो कितना दिन चढ़ आया, उठो ।उ॰—प्रातकाल उठिकै रघुनाथा । मातु पिता गुरु नावहिं माथा ।—तुलसी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—पड़ना ।—बैठना ।

६. निकलना । उदय होना । उ॰—विहँसि जगावतिं सखी सयानी । सूर उठा, उठु पदुमिनि रानी ।—जायसी (शब्द॰) ।

७. निकलना । उत्पन्न होना । उदभूत होना, जैसे—विचार उठना, राग उठना । जैसे,—मेरे मन में तरह के विचार उठ रहे हैं । उ॰—(क) छुद्रघंट कटी कंचन तागा । चलते उठहिं छतीसो रागा ।—जांयसी (शब्द॰) । (ख) जो धनहीन मनोरथ ज्यों उठि बीचहिं बीच बिलाइ गयो है ।—(शब्द॰) ।

८. सहसा आरंभ होना । एकबारगी शुरू होना । अचानक उभड़ना । जैसे—बात उठना, दर्द उठना, आँधी उठना, हवा उठना । उ॰—आधे समुद आय सो नाहीं । उठी बाड़ आँधी उपराही ।—जायसी (शब्द॰) ।

९. तैयार होना । सन्नद्ध होना । उद्यत होना । जैसे,—प्रब आप उठे है, यह काम चपपट हो जाएगा । मुहा॰—मारने उठना = मारने के लिये उद्यत होना ।

१०. किस ी अंक या चिहन का स्पष्ट होना । उभड़ना । जैसे—इस पृष्ठ के अक्षर अच्छी तरह उठे नहीं हैं ।

११. पाँस बनना । खमीर आना । सड़कर उफनाना । जैसे,—(क) ताड़ी धूप में रखने से उठने लगती है । (ख) ईख का रस जब धूप खाकर उठता है तब छानकर सिरका बनाने के लिये रख लिया जाता है ।

१२. किसी दुकान या सभा सामज का बंद होना । किसी दुकान या कार्यालय के कार्य का समय पूरा होना । जैसे,— अगर लेना है तो जल्दी जाओ, नहीं तो दुकानें उठ जाँयगी । उ॰—दास तुलसी परत धरनि धर धकनि धुक हाटसी उठत जंबुकनि लूट्यो । तुलसी (शब्द॰) ।

१३. किसी दुकान या कारखाने का काम बंद होना । किसी कार्यलय का चलना बंद हो जाना । उ॰—यहाँ बहुत से चीनी के कारखाने थे;सब उठ गए ।

१४. हटना । अलग होना । दूर होना । स्थान त्याग करना । प्रस्थान करना । जैसे,—(क) यहाँ से उठो । (ख) बारात उठ चुकी ।

१५. किसी प्रथा का दूर होना । किसी रीति का बंद होना । जैसे—सती होने की रीति अब हिंदुस्थान से उठ गई ।

१६. खर्च होना । काम में लगना । जैसे,—(क) आज सबेरे से इस समय तक १० रुपए उठ चुके । (ख) तुम्हारे यहाँ कितने का घी रोज उठता होगा । संयो॰ क्रि॰—जाना ।

७. बिकना । भाड़े रक जाना । लगान पर जाना । जैसे,—(क)—ऐसा सौदा दुकान पर क्यों रखते हो जो उठता नहीं । (ख) उनका घर कितने महीने पर उठा है? १८ याद आना । ध्यान पर चढ़ना । स्मरण आना । जैसे,—वह श्लोक मुझे उठता नहीं है ।

१९. किसी वस्तु का क्रमश:जुड़ जुडकर पूरी ऊँचाई पर पहुँचाना । मकान या दीवार आदि का तैयार होना । जैसे (क) तुम्हारा घर अभी उठा या नहीं । (ख) नदी के किनारे बाँध उठ जाय तो अच्छा है । उ॰—उठा बाँध तस सब जग बाँधा ।—जायसी (शब्द॰) । विशेष—इस अर्थ में उठना का प्रयोग उन्हीं वस्तुओं के संबंध में होता है जो बराबर ईंट मिट्टी आदि सामग्रियों को निचे ऊपर रखते हुए कुछ ऊँचाई तक पहुँचाकर तैयार की जाती हैं । जैसे—मकान, दीवार, बाँध, भीटा इत्यादि ।

२. गाय, भैस या घोड़ी आदि का मस्ताना या अलंग पर आना । विशेष—'उठना' उन कई क्रियाओं में से है जो और क्रियाओं के पीछे संयोज्य क्रियायों की तरह लगती हैं । यह अकर्मक क्रिया धातु के पिछे प्राय:लगता है । केवल कहना, बोलना आदि दो एक सकर्मक क्रियाएँ हैं जिनकी धातु के साथ भी यह देखा जाता है । जिस क्रिया के पिछे इसका संयोग होता है, उसमें आकस्मिक का भाव आ जाता है । जैसे, रो उठना, चिल्ला उठना, बोल उठना ।