कण्ठ

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प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कंठ संज्ञा पुं॰ [सं॰कण्ठ] [वि॰ कंठय]

१. गला । टेंटुआ । उ॰— मेली कंठ सुमन की माला ।—मानस, ४ ।८ । यौ॰—कंठमाला । मुहा॰—कंठ सूखना = प्यास से गला सूखना ।

२. गले की वे नलियाँ जिनसें भोजन पेट में उतरता है और आवाज निकलती है । घाँटी । यौ॰—कंठस्थ । कंठाग्र । मुहा॰—कंठ करना या रखना—कंठस्थ करना या रखना । जबानी याद करना या रखना । कंठ खुलना = (१) रुँधे हुए गले का साफ होना । (२) आवाज निकलना । कंठ फूटना = (१) वर्णों के स्पष्ट उच्चारण का आरंभ होना । आवाज खुलना । बच्चों की आवाज साफ होना । (२) बकारी फूटना । बक्कुर निकलना । मुँह से शब्द निकलना । (३) घाँटी फूटना । युवावस्था आरंभ होना पर आवाज का बदलना । कंठ बैठना या गला बैठना = आवाज का बेसुरा हो जाना । आवाज का भारी होना । कंठ होना = कंठाग्र होना । जबानी याद होना । जैसे,—उनको यह सारी पुस्तक कंठ है ।

३. स्वर । आवाज । शब्द । जैसे,—उसका कंठ बडा़ कोमल है । उ॰—अति उज्वला सब कालहु बसे । शुक केकि पिकादिक कंठहु लसै ।—केशव (शब्द॰) ।

४. वह लाल नीली आदी कई रंगों की लकीर जो सुग्गों, पंडुक आदि पक्षियों के गले के चारों ओर जवानी ममें पड़ जाती है । हँमली । कक्ष । उ॰—(क) राते श्याम कंठ दुइ गीवाँ । तेहि दुई फंद डरो सठ जीवाँ ।—जायसी (शब्द॰) । मुहा॰—कंठ फूटना = तोते आदि पक्षियों के गले में रंगीन रेखाएँ पड़ना । हँसली पडना या फूटना । उ॰—हीरामन हौं तेहिंक परेवा । कंठ फूट करत तेहि सेवा ।—जायसी (शब्द॰) ।

५. किनारा । तट । तीर । काँठा । जैसे,—वह गाँव नदी के कंठ पर बसा है ।

६. अधिकार में । पास । उ॰—निज कंठन षुरसांन । पृ॰ रा॰, १३ ।११० । ।

७. मैनफल का पेड़ । मदन वृक्ष ।