ध्वज

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ध्वज संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. चिह्न । निशान ।

२. वह लंबा या ऊँचा डंडा जिसे किसी बात का चिह्न प्रकट करने के लिये खड़ा करते है या जिसे समारोह के साथ लेकर चलते है । बाँस, लोहे, लकड़ी आदी की लंबी छड़ जिसे सेना की चढ़ाई या ओर किसी तैयारी के समय़ साथ लेकर चलते है और जिसके सिरे पर कोई चिह्न बना रहता है, या पताका बँधी रहती है । निशान । झ़ड़ । विशेष— राजाओं की सेना का चिह्नस्वरुप जो लंबा दंड़ होता है वह ध्वज (निशान) कहलाता है । यह दो प्रकार का होता है ।— सपताक और निष्पताक । ध्वजदंड़ बकुल, पलाश, कदंब आदि कई खकडि़यों का होता है । ध्वजा परिमाणभेद से आठ प्रकार की होती है— जया, विजाया, भीमा, चपला, वैजयंतिका, दीर्घा, विशाला और लोला । जया पाँच हाथ की होती है, विजया छह हाथ की, इसी प्रकार एक एक हस बढता जाता है । ध्वज मे जो चौखूँटा या तिकोना कपड़ा कंवा होता है उसे पताका कहते हैं । पताका कई वर्ण की होती है और उनमें चित्र आदि भी बने रहते है । जिस पताका मे हाथी, सिह आदि बने हो वह जयंती, जिसमें मोर, आदि बने हो बह अष्टमंगला कहलाती है; इसी प्रकार और भी समझिए । (युक्तिकल्पतरु) ।

३. ध्वजा लेकर चलनेवाला आदमी । शौड़िक । विशेष— मनु ने शौड़िक को अतिशय नीच लिखा है ।

४. खाट की पट्टी ।

५. लिंग । पूरुषेंद्रिय । यौ॰— ध्वजभंग

६. दर्प । गर्व । घमंड़ ।

७. वह घर जिसकी स्थिति पूर्व की ओर हो ।

८. हदबंदी का निशान ।

९. मदिरा का व्यवसायी । कलाल (को॰) ।