निदान
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
निदान ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. आदि कारण ।
२. कारण ।
३. रोगनिर्णय । रोगलक्षण । रोग की पहचान । विशेष—सुश्रुत के पुछने पर धन्वंतरि जो ने कहा है कि वायु ही प्राणियों की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का मुल है । यह शरीर के दोषों का स्वामी और रोगों का राजा है । वायु पाँच हैं—प्राण, उदान, समान, व्यान और अपना । ये ही पाँचो वायु शरीर की रक्षा करती हैं । जिस वायु का मुख में संचरण होता है उसे प्राणवायु कहते हैं । इससे शरीर की रक्षा, प्राणधारण और खाया हुआ अन्न जठर में जाता हैं । इसके दूषित होने से हिचकी, दमा, आदि, रोग हेते हैं । जो वायु ऊपर की ओर चलती है उसे उदान वायु कहेत हैं । इसके कुपित होने से कंधे के ऊपर के रोग होते हैं । समान वायु आमाशय और पक्वाशय में काम करती है । इसके बिगड़ने से गुल्म, मंदाग्नि, अतीसार आदि रोग होते हैं । व्यान वायु सारे शीरर में घुमती है और रसों को सर्वत्र पहुँचाती है । इसी से पसीना और रक्त आदि निकलता है । इसके बिगड़ने से शरीर भर में होनेवाले रोग हो सकते हैं । अपान वायु का स्थान पक्वाशय है । इसके द्वारा मल, मुत्र, शुक, आर्तव, गर्भ समय पर खिंचकर बाहर होता है । इस वायु के कुपित होने से वस्ति और गुप्त स्थानों के रोग हेतो हैं । व्यान और अपान दोनों के कुपित होने से प्रमेह आदि शुक्ररोग होते हैं (सुश्रुत) ।
४. अंत । अवसान ।
५. तप के फल की चाह ।
६. शुद्धि ।
७. बछड़े का बंधन ।
निदान ^२ अव्य॰ अंत में । आखिर । उ॰—जहाँ सुमति तहँ संपति नाना । जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ।—तुलसी (शब्द॰) ।
निदान ^३ वि॰ अंतिम या निम्न श्रेणी का । निकृष्ट । बहुत ही गया बीता । हद दरजे का । उ॰—उत्तम खेती मध्यम बात । निरघिन सेवा भीख निदान (कहावत) ।