प्यास

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्यास संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पिपासा] मुँह और गले के सूखने से होनेवाली वह अनुभूति जो शरीर के जलीय पदार्थ के कम हो जाने पर होती है । जल पीने की इच्छा । तृषा । तृष्णा । पिपासा । विशेष—शरीर के सभी अंगों में कुछ न कुछ जल का अंश होता है जिससे सब अंगों की पुष्टि होती रहती है । जब यह जल शरीर के काम में आने के कारण घट जाता है तब सारे शरीर में एक प्रकार की सुस्ती मालूम होने लगती है और गला तथा मुँह सूखने लगता है । उस समय जल पीने की जो इच्छा होती है उसी का नाम प्यास है । जीवों के लिये भूख की अपेक्षा प्यास अधिक कष्टदायक होती है क्योंकी जल की आवश्यकता शरीर के प्रत्येक स्नायु को होती है । भोजन के बिना मनुष्य कुछ अधिक दिनों तक जी सकता है पर जल के बिना बहुत ही थोडे़ समय में उसका जीवन समाप्त हो जाता है । जो लोग प्यास के मारे मरते हैं वे प्रायः मरने से पहले पागल हो जाते हैं । मुहा॰—प्यास बुझाना = जल पीकर तृष्णा का शांत करना । प्यास लगना = प्यास मालूम होना । पानी पीने की इच्छा होना ।

२. किसी पदार्थ आदि की प्राप्ति की प्रबल इच्छा । प्रबल कामना ।