प्रतिध्वनि

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

प्रतिध्वनि संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. वह शब्द जो (उत्पन्न होने पर) किसी बाधक पदार्थ से टकराने के कारण लौटकर अपने उत्पन्न होने के स्थान पर फिर से सुनाई पड़ता है । अपनी उत्पत्ति के स्थान पर फिर से सुनाई पड़नेवाला शब्द । प्रति- नाद । प्रतिशब्द । प्रतिश्रुत । गूँज । आबाज । बाजगश्त । जैसे,— (क) दूर की पहाड़ी से मेरी पुकार की प्रतिध्वानि सुनाई पड़ी । (ख) उस गुंबद के नीचे जो कुछ कहा जाय, उसकी प्रतिध्वति बराबर सुनाई पड़ती है । विशेष— वायु में क्षोम होने के कारण लहरें उठती हैं जिनसे शब्द की उत्पत्ति होती है । जब इन लहरों के मार्ग में दीवार या चट्टान आदि की तरह का कोई भारी बाधक पदार्थ आता है तब ये लहरें उससे टकराकर लौटती है जिनके कारण वह शब्द फिर उस स्थान पर सुनाई पड़ता है जहाँ से वह उत्पन्न हुआ था । यदि वायु की लहरों को रोकनेवाला पदाथ शब्द उत्पन्न होने के स्थान के ठीक सामने होता है तब तो प्रतिध्वनि उत्पन्न होने के स्थान् पर ही सुनाई पड़ती है । पर यदि वह इधर उधर होता है तो प्रतिध्वनि भी इधर या उधर सुनाई पड़ती है । यदि लगातार बहुत से शब्द किए जायँ तो सब शब्दों की प्रतिध्वनि साफ नहीं सुनाई पड़ती; पर शब्दों की समप्ति पर अंतिम शब्द की प्रतिध्वनि बहुत ही साफ सुनाई पड़ती है । जैसे, यदि किसी बहुत बड़े तालाब के किनारे या किसी बड़े गुंबद के नीचे खड़े होकर कहा जाय 'हाथी या घोड़ा' तो प्रतिध्वनि में 'घोड़ा' बहुत साफ सुनाई देगा । साधारणतः प्रतिध्वनि उत्पन्न होने में एक सेकेंड का नवाँ अंश लगाता है, इसलिये इससे कम अंतर पर जो शब्द होंगे उनकी प्रतिध्वनि स्पष्ट नहीं होगी । शब्द की गति प्रति सेकेंड लगभग ११२५ फुट है, अतः जहाँ बाधक स्थान शब्द उत्पन्न होने के स्थान से (११२५ का १/१८ वाँ अंश) ३२ फुट से कम दूरी पर होगा, वहाँ प्रतिध्वनि नहीं सुनाई पड़गी ? सबसे अधिक स्पष्ट प्रतिध्वनि उसी शब्द की होती है जो सहसा ओर जोर का होता है । प्रायः बहुत बड़े बड़े कमरों गुंबदों तालाबों, कूपों, नगर के परकोटों, जगलों, पहाड़ों और तरा- इयों अदि में प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती है । किसी किसी स्थान पर ऐसा भी होता है कि एक ही शब्द की कई कई प्रति- ध्वनियाँ होती हैं ।

२. शब्द से व्याप्त होना । गूँजना ।

३. दूसरों के भावों या विचारों आदि का दोहराया जाना । जैस,—उनके व्याख्यान में केवल दूसरों की उक्तियों की प्रतिध्वनि ही रहती है ।