बाँह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

बाँह संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ बाहु]

१. कंधे से निकलकर दंड के रूप में गया । हुआ अंग जिसके छोर पर हथेली या पंजा लगा होता है । भुजा । हाथ । बाहु । मुहा॰—वाँह गहना या पकड़ना = (१) किसी की सहायता करने के लिये हाथ बढ़ाना । सहारा देना । हर तरह से मदद देने के लिये तैयार होना । अपनाना । उ॰—बिन सतगुर बाचै नहीं, फिरि बूड़ै भव माँह । भवसागर के त्रास में, सतगुरु पकड़ै बाँह ।—कबीर सा॰ सं॰, भा॰ १, पृ॰ ११ । (२) विवाह करना । पाणिग्रहण करना । शादी करना । बाँह की छाँह लेना = शरण में आना । बाँह के सहारे रहना = पौरुष का भरोसा करना । अपने बल का विश्वास करना । उ॰—है करम रेख मूठियों में ही । बेहतरी बाँह के सहारे हैं ।—चुभते॰, पृ॰ १० । बाँह चढ़ाना = (१) किसी कार्य के करने के लिये उद्यत होना । कोई काम करने के लिये तैयार होना । (२) लड़ने के लिये तैयार हेना । बाँह दिखाना = हाथ की नाड़ी दिखाना । रोग का निदान कराना । उ॰—बाबुल वैद बुलाइया रे, पकड़ दिखाई म्हाँरी बाँह । मूरख वैद मरम नहिं जानै, करक कलेजे माँह ।—संतवाणी॰, भा॰ २, पृ॰ ७२ । बाँह देना = सहायता देना । सहारा देना । मदद करना । उ॰—(क) नूपुर जनु मुनिवर कलहसन रचे नीड़ दै बाँह ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) कीन्ह सखा सुग्रीव प्रभु दीन्ह बाँहु रघुबीरतु ।—लसी (शब्द॰) । बाँह वुलंद होना = (१) बलवान या साहसी होना । (२) हृदय उदार होना । दान देने के लिये उठनेवाला हाथ होना । यौ॰—वाँह बोल = रक्षा करने या सहायता देने का वचन । सहायता देने का वादा । उ॰—लाज बाँह बोल की, नेवाजे की सँभार सार, साहेब न राम सो, बलैया लीजै सीस की ।— तुलसी (शब्द॰) ।

२. बल । शक्ति । भुजबल । उ॰—मैन महीप सिँगार पुरी निज बाँह बसाई है मध्य ससी के ।—(शब्द॰) ।

३. सहायक । मददगार । मुहा॰—बाँह टूटना = सहायक या रक्षक आदि का न रह जाना । शक्तिहीन होना ।

४. भरोसा । आसरा । सहारा । शरण । उ॰—(झ) तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लिए रहै आरति न काहु की ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तिनकी न काम सकै चाँपि छाँह । तुलसी जे बसें रघुबीर बाँह ।—तुलसी (शब्द॰) ।

५. एक प्रकार की कसरत जो दो आदमी मिलकर करते हैं । विशेष—इसमें बारी बारी से हर एक आदमी अपनी बाँह दूसरे के कंधे पर रखता है और उसे अपनी बाँह के जोर से वहाँ से हटाता है । इससे बाहों पर जोर पड़ता है और उसमें बल आता है ।

६. कुरते, कमीज, अंगे, कोट आदि में लगा हुआ वह मोहरीदार टुकड़ा जिसमें बाँह डाली जाती है । आस्तीन । जैसे,—इस कुरते की बाँह छोटी हो गई है ।

बाँह ^२ संज्ञा पुं॰ दे॰ 'बाह' या 'बाही' ।