विक्षनरी:भारतीय समाज शब्दावली

विक्षनरी से
(भारतीय समाज शब्दावली से अनुप्रेषित)

आत्मसात्मीकरण: सांस्कृतिक एकीकरण और समजातीयता की एक प्रक्रिया जिसके द्वारा नए शामिल हुए या अधीनस्थ समूह अपनी विशिष्ट संस्कृति को खो देते हैं तथा प्रभुत्वशाली बहुसंख्यकों की संस्कृति को अपना लेते हैं। आत्मसात्मीकरण शबरजस्ती भी करवाया जा सकता है और यह ऐच्छिक भी हो सकता है एवं सामान्यतः यह अधूरा होता है, जहाँ अधीनस्थ या शामिल होने वाले समूह को समान शर्तों पर पूर्ण सदस्यता प्रदान नहीं की जाती। उदाहरण के लिए, प्रभुत्वशाली बहुसंख्यकों द्वारा एक प्रवासी समुदाय के साथ भेदभाव करना और परस्पर विवाह की अनुमति नहीं देना।

सत्तावाद: सरकार की वह व्यवस्था जो अपनी वैधता लोगों से प्राप्त नहीं करती है। यह सरकार का प्रजातांत्रिक या गणतंत्र स्वरूप नहीं होता है।

संतति निरोध: गर्भाधान और शिशु जन्म को रोकने के लिए गर्भनिरोधक उपायों का प्रयोग करना।

व्यापार प्रक्रिया के लिए बाहरी ड्डोतों की सहायता लेना : एक ऐसी पद्धति जिसके द्वारा उत्पादन प्रक्रिया के किसी हिस्से को अथवा सेवा उद्योग के किसी अंग को किसी तीसरे पक्ष द्वारा संपन्न करने के लिए बाहर ठेका (संविदा) दिया जाए। उदाहरण के लिए, टेलीफोन की लाइनें और सेवाएँ प्रदान करने वाली टेलीफोन वंफपनी अपने ग्राहक सेवा प्रभाग के कार्य बाहरी ड्डोत से पूरे करवा सकती हैऋ यानी कि वह अपने ग्राहकों की सभी कॉलों और शिकायतों पर कार्रवाई करने के लिए किसी एक छोटी वंफपनी की सेवाएँ ले सकती है।

पूँजी: निवेश योग्य संसाधनों की संचित निधि। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर ‘सक्रिय’ निधियों यानी ऐसी निधियों के लिए किया जाता है जो सिर्फ बचाकर इकट्टठी ही नहीं की जाती बल्कि उन्हें निवेश के लिए सँभालकर रखा जाता है। पूँजी को बढ़ानेऋ उसमें धनराशि जोड़ने का प्रयत्न चलते रहना चाहिए-यही संचयन की प्रक्रिया है।

पूँजीवाद: सामान्य वस्तु या पण्य उत्पादन पर आधारित उत्पादन पद्धति या एक सामाजिक व्यवस्था जहाँ (क) व्यक्तिगत संपत्ति और बाजार ने सभी क्षेत्रों में अपनी पैठ बना ली है और सभी चीशों के साथ-साथ श्रम शक्ति को भी बाजार में बिकने वाली वस्तु के रूप में बदल दिया है (ख) दो मुख्य वर्ग विद्यमान होते हैं, एक प्रतिदिन मशदूरी करने वाले श्रमिक जिनके पास अपनी श्रम शक्ति के अलावा कुछ नहीं होता (श्रम करने की उनकी क्षमता), और पूँजीपतियों का एक वर्ग, जो पूँजीपति के रूप में बने रहने के लिए अपनी पूँजी का निवेश जरुर करते हैं तथा प्रतिस्पर्धात्मक बाजार अर्थव्यवस्था में हमेशा बढ़ने वाले लाभ को प्राप्त करते हैं।

प्राकृतिक निरोध: टी.आर. माल्थस द्वारा इस शब्द का प्रयोग जनसंख्या वृद्धि की दर पर लगने वाली ऐसी रोकथाम के संबंध में किया गया है जो प्रकृति द्वारा, मानव इच्छाओं की परवाह न करते हुए, लगाई जाती हैं। ऐसे निरोधों के उदाहरणों में अकाल, महामारियाँ और अन्य प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं।

कृत्रिम निरोध: टी. आर. माल्थस द्वारा इस शब्द का प्रयोग जनसंख्या वृद्धि की दर पर लगने वाली ऐसी रोकथाम के संबंध में किया गया है जो मनुष्यों द्वारा स्वयं अपने ऊपर स्वेच्छा से लगाई जाती है। ऐसे निरोधों के उदाहरणों में विवाह देरी से करना और ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करना या संतति निरोध के उपाय अपनाना शामिल है।

नागरिक समाज: समाज का वह क्षेत्र जो परिवार से परे हो पर राज्य या बाजार का हिस्सा न हो। उन स्वैच्छिक संस्थाओं एवं संगठनों का क्षेत्र जो सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक अथवाअन्य गैर-व्यावसायिक और गैर-राजकीय सामूहिक कार्यों के लिए बनाई गई हैं।

वर्ग: एक ऐसा आर्थिक समूह जो उत्पादन के सामाजिक संबंधों में, आय तथा समृद्ध के स्तरों पर, जीवनशैली तथा राजनीतिक अधिमान्यताओं के संदर्भ में सामान्य या समान स्थिति पर आधारित होता है।

उपनिवेशवाद: एक ऐसी विचारधारा, जिसके द्वारा एक देश दूसरे देश को जीतने और उसे अपना उपनिवेश बनाने (जबरन वहाँ बसने, उस पर शासन करने) का प्रयत्न करता है। ऐसा उपनिवेश, उपनिवेशकर्ता देश का एक अधीनस्थ हिस्सा बन जाता है और पिफर उपनिवेशकर्ता देश के लाभ के लिए उस उपनिवेश का तरह-तरह से शोषण किया जाता है। वैसे तो उपनिवेशवाद साम्राज्यवाद से संबंधित है, पर उपनिवेशवाद के अंतर्गत उपनिवेशकर्ता देश उपनिवेश में बसने और उस पर अपना शासन बनाए रखने में (यानी व्यापक रूप से स्थानीय नियंत्रण रखने में) अधिक रुचि रखता है जबकि साम्राज्यवादी देश उपनिवेश को लूटकर उसे छोड़ देता है अथवा दूर से ही उस पर शासन करता रहता है (वहाँ आकर बसता नहीं)।

पण्यीकरण : एक पण्येत्तर यानी गैर-पण्य वस्तु (यानी ऐसी वस्तु जिसे बाजार में खरीदा और बेचा नहीं जाता) का पण्य में रुपांतरण।

पण्य: कोई वस्तु या सेवा जो बाजार में खरीदी या बेची जा सकती हो।

पण्यरीति: (पण्य संबंधी अंधभक्ति, वस्तु पूजा) पूँजीवाद के अंतर्गत एक ऐसी स्थिति जिसमें सामाजिक संबंधों को भी वस्तुओं के बीच के संबंधों की तरह अभिव्यक्त किया जाता हैं।

संप्रदायवाद या सांप्रदायिकता: धार्मिक पहचान पर आधारित उग्र राष्ट्रवाद। यह विश्वास कि धर्म ही व्यक्ति या समूह की पहचान के सभी अन्य पक्षों की तुलना में सर्वापरि होता है। आमतौर पर, यह उन व्यक्तियों या समूहों के प्रति एक आक्रामक और शत्रुतापूर्ण रवैया होता है जो दूसरे धर्मों को मानते हैं अथवा जिनकी गैर-धार्मिक पहचान होती है। समुदाय: किसी भी ऐसे विशिष्ट समूह के लिए प्रयुक्त सामान्य शब्द, जिसके सदस्य सचेतन रूप से मान्यता प्राप्त समानताओं और नातेदारी के बंधनों, भाषा, संस्कृति आदि के कारण आपस में जुडे़े हों। इन समानताओं में विश्वास उनके अस्तित्व के वास्तविक प्रमाण से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

उपभोग: उन लोगों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का अंतिम उपभोग, जिन्होंने उसे खरीदा है (उपभोक्ता)।

लोकतंत्र: सरकार का वह रूप जो जनता (जनसाधारण) से अपनी वैधता प्राप्त करता है और चुनावों (निर्वाचन) के माध्यम से अथवा जनता की राय जानने के किसी और तरीके से जनता के स्पष्ट समर्थन पर आश्रित रहता है।

कथन या प्रवचन: सामाजिक जीवन के एक खास क्षेत्र में चिंतन की एक रूपरेखा या परिपाटी। उदाहरण के लिए, अपराधिता संबंधी कथन का अर्थ है- लोग एक निर्धारित समाज में अपराधिता के बारे में क्या सोचते हैं।

भेदभाव: ऐसे व्यवहार, कार्य अथवा गतिविधियाँ जिनके परिणामस्वरूप किसी एक खास समूह के सदस्यों को उन वस्तुओं, सेवाओं, नौकरियों, संसाधनों आदि से वंचित रखना जो आमतौर पर दूसरों को उपलब्ध होते हैं। भेदभाव और पूर्वाग्रह के बीच के अंतर को समझना जरुरी है, हालाँकि ये दोनों भाव काफी गहराई से परस्पर जुडे़े हुए हैं।

विविधता (सांस्कृतिक विविधता) : बड़े राष्ट्रीय, क्षेत्र अथवा अन्य किसी संदर्भ में अनेक विभिन्न प्रकार के समुदायों जैसे, भाषा, धर्म, क्षेत्र आदि द्वारा परिभाषित समुदायों की उपस्थिति। पहचानों की बहुलता अथवा अनेकता।

प्रबल जाति: जाति व्यवस्था के अंतर्गत कोई मध्यम या उच्च-मध्यम वर्गीय जाति जिसकी जनसंख्या काफी बड़ी हो और जिसके पास भूमि-स्वामित्व के नवार्जित अधिकार हों। बड़ी जनसंख्या और इन नए-नए प्राप्त हुए अधिकारों की बदौलत ये जातियाँ, भारत के कई क्षेत्रों के देहाती इलाकों में, राजनीतिक, आर्थिक और इसलिए सामाजिक दृष्टि से प्रबल हो गई हैं। प्रबल जातियाँ उन पुरानी जातियों का स्थान ग्रहण कर लेती हैं जो पहले अपनी प्रबलता का प्रयोग करती थीं। पूर्ववर्ती प्रबल जातियों के विपरीत, ये जातियाँ ‘द्विज’ अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य वर्णों के अंतर्गत नहीं आती।

आर्थिक मानवविज्ञान: सामाजिक सांस्कृतिक मानवविज्ञान का एक उपक्षेत्र जो प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक और नृजाति-वृत्तीय अभिलेखों में पाई जाने वाली समस्त प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं और संस्कृतियों, विशेष रूप से गैर-बाजारी आर्थिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करता है।

अंतःस्थापित: (सामाजिक रूप से अंतःस्थापित) एक बड़े समाज या संस्कृति के अंदर विद्यमान होना जो किसी प्रक्रिया या प्रघटना को ‘आकार’ देती है। यह कथन कि आर्थिक संस्थाएँ समाज में अंतःस्थापित हैं, यह बताता है कि वे समाज में विद्यमान हैं और वे इसलिए अपना काम कर सकती हैं क्योंकि समाज ने इस संबंध में आवश्यक नियम एवं व्यवस्थाएँ बना रखी हैं।

अंतर्विवाह: इस प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति अपने सांस्कृतिक समूह, जिसका वह पहले से ही सदस्य है, उदाहरण के लिए जाति, के भीतर ही विवाह करता है।

गणना: इसका शाब्दिक अर्थ है ‘गिनना’। इसका तात्पर्य गिनने और मापने की, विशेष रूप से जनसंबंधी, प्रक्रिया से है जैसे, जनगणना अथवा सर्वेक्षण की प्रक्रिया।

महामारी: इसका अर्थ है किसी खास भौगोलिक क्षेत्र के लोगों में एक समय-विशेष पर किसी बीमारी के रोगियों की दर में अचानक वृद्धि हो जाना। किसी आम बीमारी को महामारी बनाने वाला निर्णायक तत्त्व यह है कि उसके होने या पैफलने की दर (समय की प्रति इकाई जैसे, प्रतिदिन, प्रति सप्ताह अथवा प्रतिमास सूचित किए गए नए रोगियों की संख्या) ‘सामान्य’ दर से काफी ऊँची हो। यह निर्णय अंशतः व्यक्तिपरक भी हो सकता है। यदि कोई बीमारी होने की दर किसी खास भौगोलिक क्षेत्र में ऊँची तो हो पर लगातार एक स्तर पर ही बनी रहे (यानी उसमें अचानक कोई बढ़ोतरी न हो) तो इसे स्थानिक भारी महामारी कहा जाएगा। यदि कोई महामारी किसी खास भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित न रहे और दूर-दूर तक (यानी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय यहाँ तक कि भूमंडलीय स्तर पर) पैफल जाए तो उसे देशव्यापी या सार्वभौमिक महामारी कही जाती है।

संजातीय सफाई: किसी क्षेत्र-विशेष से अन्य नृजातीय जनसंख्या को एक साथ बाहर निकालकर उस राज्य क्षेत्र को संजातीय दृष्टि से समरूप बनाना।

संजातीयता: संजातीय समूह वह होता है जिसके सभी सदस्य एक ऐसी साझी सांस्कृतिक पहचान के प्रति जागरुक रहते हैं जो उन्हें आसपास के दूसरे समूहों से अलग दिखाती है। बहिर्विवाह: इसके अंतर्गत व्यक्ति अपने समूह के बाहर विवाह करता है।

परिवार: यह व्यक्तियों का एक ऐसा समूह होता है जो नातेदारी संबंधों द्वारा आपस में जुड़े होते हैं, उसके वयस्क सदस्य बच्चों की देखभाल की शिम्मेदारी अपने ऊपर लेते हैं।

प्रजनन शक्ति: मानव जनसंख्या के संदर्भ में, इसका तात्पर्य मानव प्राणियों की प्रजनन यानी बच्चे पैदा करने की क्षमता से है। चूँकि प्रजनन प्राथमिक रूप से नारी-व्रेंफद्रित प्रक्रिया है इसलिए प्रजनन क्षमता का हिसाब स्त्रियों की जनसंख्या यानी बच्चा पैदा करने की आयु वाली स्त्रियों की संख्या के संदर्भ में लगाया जाता है।

लिंग: सामाजिक सिद्धांत में, यह शब्द पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच सामाजिक तथा सांस्कृतिक रूप से उत्पन्न अंतरों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया है। (यह ‘यौन’ (सेक्स) से भिन्न है जो पुरुष और स्त्री के बीच के शारीरिक-जैव वैज्ञानिक अंतरों को स्पष्ट करता है। प्रकृति यौन अंतर उत्पन्न करती है और समाज लैंगिक अंतरों की रचना करता है।)

भूमंडलीकरण: आर्थिक, सामाजिक, प्रौद्योगिकीय, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तनों की एक जटिल शृंखला जिसने विविध प्रकार के स्थानों के लोगों और आर्थिक कार्यकर्ताओं (वंफपनियों) में पारस्परिक निर्भरता, एकीकरण और अंतःक्रिया को बढ़ावा दिया है।

एकीकरण: सांस्कृतिक जुड़ाव या समेकन की एक प्रक्रिया जिसके द्वारा सांस्कृतिक विभेद निजी क्षेत्र में चले जाते हैं और एक सामान्य सार्वजनिक संस्कृति सभी समूहों द्वारा अपना ली जाती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत आमतौर पर प्रबल या प्रभावशाली समूह की संस्कृति को ही आधिकारिक संस्कृति के रूप में अपनाया जाता है। सांस्कृतिक अंतरों, विभेदों या विशिष्टताओं की अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित नहीं किया जाता अथवा कभी-कभी तो सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसी अभिव्यक्ति पर रोक लगा दी जाती है।

जजमानी व्यवस्था: (उत्तर) भारतीय गांव में उपज, वस्तुओं और सेवाओं का गैर-बाजारी आदान-प्रदान, जिसमें पैसे का प्रयोग नहीं किया जाता। यह आदान-प्रदान जाति व्यवस्था और रूढ़िगत व्यवहारों पर आधारित होता है।

जाति: अंग्रेशी शब्द ‘कास्ट’ के लिए हिंदी शब्द। ऐसी जातियों का एक क्षेत्र-विशेष में अधिक्रमित अनुक्रम जो अपनी ही परिसीमाओं में विवाह करते हैं, वंशागत पेशे अपनाते हैंऋ यह सब जन्म के आधार पर निर्धारित होता है। यह परंपरागत व्यवस्था है, लेकिन समय के साथ इसमें कई परिवर्तन आ गए हैं।

नातेदारी: व्यक्तियों के बीच ऐेसे संबंध जो विवाह अथवा वंशानुक्रम की रेखा के माध्यम से स्थापित होते हैं और रक्त-संबंधियों (माता, पिता, सहोदर, संतान, आदि) को आपस में जोड़ते हैं।

श्रम-शक्ति: श्रम करने की क्षमताऋ मानव प्राणियों की मानसिक तथा शारीरिक क्षमताएँ जो उत्पादन की प्रक्रिया में काम आती है (जबकि श्रम किया गया कार्य होता है।)

अहस्तक्षेप नीति: (फ्रेंच, जिसका शाब्दिक अर्थ, छोड़ दिया जाए या ‘हस्तक्षेप न किया जाए’ है) एक आर्थिक दार्शनिक नीति जो मुक्त बाजार प्रणाली और आर्थिक मामालों में सरकार की ओर से अल्पतम हस्तक्षेप का समर्थन करती है।

उदारीकरण: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आर्थिक कार्यकलाप पर राज्य के नियंत्रण ढीले कर दिए जाते हैं और उन्हें बाजार की ताकतों के हवाले कर दिया जाता है। सामान्यतः एक ऐसी प्रक्रिया जिसके द्वारा कानूनों को अधिक उदार और सरल बना दिया जाता है।

जीवनावसर: व्यक्ति को अपने जीवन में उपलब्ध् होने वाले संभावित अवसर अथवा उपलब्ध्यिँ।

जीवनशैली: शिंदगी जीने का तरीकाऋ अधिक ठोस रूप में उपभोग के विशिष्ट प्रकार एवं स्तर जिनसे कुछ विशेष सामाजिक समूहों का दैनंदिन जीवन परिभाषित होता है।

बशारीकरण: सामाजिक, राजनीतिक अथवा आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए बाजार-आधारित समाधानों का प्रयोग करना।

विवाह: दो वयस्क व्यक्तियों (स्त्री-पुरुषों) के बीच सामाजिक रूप के स्वीकृत एवं अनुमोदित यौन संबंध। जो दो लोग आपस में विवाह करते हैं तो वे परस्पर नातेदार बन जाते हैं।

अल्पसंख्यक समूह: एक निर्धारित समाज में लोगों का एक ऐसा समूह जो अपनी विशिष्ट शारीरिक या सांस्कृतिक विशेषताओं के कारण अल्पमत में हों और अपने आपको उस समाज के भीतर असमानता की स्थितियों में पाता हो। इन समूहों में नृजातीय अल्पसंख्यक भी आते हैं।

उत्पादन विधि: मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद में, उत्पादन की शक्तियों और उत्पादन के संबंधों का एक विशिष्ट गठजोड़ जो ऐतिहासिक दृष्टि से भिन्न सामाजिक रचना तैयार करता है।

आदान-प्रदान या परस्परता: एक गैर-बाजारी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं का अनौपचारिक सांस्कृतिक विनिमय (व्यापार)।

भूमिका संघर्ष: उन विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं के बीच संघर्ष, जिन्हें एक ही व्यक्ति को निभाना पड़ता है। उदाहरण के लिए, एक पिता, कामगार के रूप में अपनी भूमिका तथा पिता या पति के रूप में अपनी भूमिका-दोनों भूमिकाओं के बीच संघर्ष का अनुभव कर सकता है।

एकविवाह प्रथा: यह प्रथा एक समय में एक ही जीवन साथी (पति/पत्नी) रखने की अनुमति देती है। इस प्रथा के अंतर्गत, एक निर्धारित समय पर एक पुरुष एक ही पत्नी और एक स्त्री एक ही पति रख सकती है।

जन्म परिवार: वह परिवार जिसमें व्यक्ति का जन्म हुआ हो, जन्म का परिवार। (यह ससुराल के परिवार से भिन्न होता है जिसे विवाह के बाद अपनाया जाता है।)

राष्ट्र: एक ऐसा समुदाय जो अपने आपको एक समुदाय मानता है और अनेक साझा विशिष्टताओं जैसेः साझी भाषा, भौगोलिक स्थिति, इतिहास, धर्म, प्रजाति, संजाति, राजनीतिक आकांक्षाओं आदि पर आधारित होता है। किंतु, राष्ट्र ऐसी एक या अधिक विशिष्टताओं के बिना भी अस्तित्व में रह सकते हैं। एक राष्ट्र उन लोगों से मिलकर बना होता है जो उस राष्ट्र के अस्तित्व, सार्थकता और शक्ति के ड्डोत होते हैं।

राष्ट्र-राज्य: एक विशेष प्रकार का राज्य, जो आधुनिक जगत की विशेषता है, जिसमें एक सरकार की एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र पर संप्रभु शक्ति होती है और वहाँ रहने वाले लोग उसके नागरिक कहलाते हैं। जो अपने आपको उस एकल राष्ट्र का हिस्सा मानते हैं। राष्ट्र-राज्य राष्ट्रीयता के उदय से घनिष्ठता से जुड़े हैं, यद्यपि राष्ट्रवादी निष्ठाएँ हमेशा उनके विशिष्ट राज्यों, जो आज विद्यमान हैं की परिसीमाओं के अनुरूप नहीं होती। राष्ट्र-राज्यों का विकास, प्रारंभ में यूरोप में शुरू हुई राष्ट्र-राज्य प्रणाली के अंतर्गत हुआ था लेकिन आज यह राष्ट्र-राज्य संपूर्ण भूमंडल में पाए जाते हैं।

राष्ट्रवाद: अपने राष्ट्र और उससे संबंधित हर चीश के लिए, प्रतिबद्धता, आमतौर पर भावपूर्ण प्रतिबद्धता। हर मामले में राष्ट्र को सर्वोपरि रखना, उसके पक्ष में अभिनति या झुकाव रखना आदि। यह विचारधारा कि भाषा, धर्म, इतिहास, प्रजाति, संजाति आदि की समानता समुदाय को विशिष्टता तथा अद्वितीयता प्रदान करती है।

पूर्वाग्रह: किसी व्यक्ति या समूह के बारे में पूर्वनिर्धारित विचार रखनाऋ ऐसे विचार जो कि नयी जानकारी प्राप्त होने पर भी बदलने को तैयार न हों। पूर्वाग्रह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का हो सकता है, लेकिन इसका सामान्य प्रयोग नकारात्मक या अनादरपूर्ण पूर्वधारणा के लिए ही होता है।

कृषि की उत्पादकता : कृषि की उपज की राशि (यानी खाद्यान्न या अन्य फसलों की मात्रा) जो प्रति इकाई क्षेत्र (उदाहरणार्थ, एकड़, हैक्टेयर, बीघा, आदि) में उत्पन्न होती है। उत्पादकता का हिसाब लगाते समय उन्हीं वृद्धियों को शामिल किया जाता है जो केवल खेती के तरीकों में तथा निविष्टियों (खाद्य आदि) की गुणवत्ता में किए गए परिवर्तनों के कारण होती है, न कि कृषि के क्षेत्र में किए गए विस्तार के कारण। इन परिवर्तनों के उदाहरणों में ट्रैक्टरों, उर्वरकों, उन्नत बीजों, आदि का प्रयोग शामिल होता है।

समांतर वृद्धि: संख्याओं (अंकों) की ऐसी शृंखला या श्रेणी जो किसी भी संख्या से प्रारंभ हो सकती है, लेकिन जहाँ प्रत्येक परवर्ती संख्या पूर्ववती संख्या में एक निर्धारित राशि (संख्या) जोड़ने से प्राप्त होती है। उदाहरणार्थ, 6, 10, 14, 18 आदि-आदि जहाँ 6 एक मनमर्जी से लिया गया प्रारंभ बिंदु है लेकिन 10=6$4, 14=10$4, 18=14$4 आदि-आदि की शृंखला में होते हैं।

गुणोत्तर वृद्धि: संख्याओं की ऐसी शृंखला या श्रेणी जो किसी भी संख्या से प्रारंभ हो सकती है, लेकिन जहाँ प्रत्येक परवर्ती संख्या पूर्ववर्ती संख्या को एक सतत गुणक से गुणा करने पर प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, 4, 20, 100, 500 और इसी तरह आगे भी, जहाँ 4 एक मनमर्जी से लिया गया प्रारंभ बिंदु है लेकिन 20=4×5, 100=20×5, 500=100×5 आदि-आदि की शृंखला में होते हैं।

प्रतिवर्ती: इसका शाब्दिक अर्थ है अपने तरफ मुड़ना। एक प्रतिवर्ती (या आत्म-प्रतिवर्ती) सिद्धांत वह होता है जो संसार के बारे में ही स्पष्टीकरण देने का प्रयत्न नहीं करता, बल्कि संसार के भीतर अपने निजी कार्यों का स्पष्टीकरण देने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार, एक प्रतिवर्ती समाजशास्त्री अन्य बातों को स्पष्ट करने के साथ-साथ, समाजशास्त्री को स्वयं एक सामाजिक प्रघटना के रूप में वर्णित करने का प्रयास करता है। सामान्यतः सिद्धांत अपने उद्देश्य के बारे में ही स्पष्टीकरण देते हैं, अपने बारे में नहीं।

क्षेत्रवाद: एक खास क्षेत्रय पहचान के लिए प्रतिबद्ध विचारधारा, जो भौगोलिक क्षेत्र के अलावा, भाषा, संजातीयता आदि अन्य विशेषताओं पर आधारित होती है। उत्पादन संबंध उत्पादन के मामले में लोगों और समूहों के बीच के संबंध विशेष रूप से ऐसे संबंध जो संपत्ति तथा श्रम से संबंधित हों।

प्रतिस्थापन दर: प्रजनन क्षमता का वह स्तर जिस पर मौजूदा पीढ़ी उतने ही बच्चे पैदा करती है जो उनके अपने स्थान की पूर्ति के लिए पर्याप्त हों, जिससे कि अगली पीढ़ी का आकार (कुल जनसंख्या) उतना ही हो जितना कि वर्तमान पीढ़ी का है। इसका अर्थ है कि स्त्री को लगभग 2.1 बच्चे पैदा करने की शरुरत है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दंपति की मृत्यु होने पर उनका खाली स्थान भर जाएगा। (अतिरिक्त 0.1 रखना अप्रत्याशित या आकस्मिक मृत्यु से होने वाली क्षति की पूर्ति करने के लिए अपेक्षित है। दूसरे शब्दों में, कुल प्रजनन दर का प्रतिस्थापन स्तर आमतौर पर 2.1 बताया जाता है।)

संस्कृतीकरण: एम. एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ा गया यह शब्द उस प्रक्रिया का उल्लेख करता है, जिसके द्वारा मध्यम या निम्न जातियाँ अपने से ऊँची जातियों, सामान्यतः ब्राह्मणों और क्षत्रियों के सामाजिक आचार-व्यवहार और धार्मिक कर्मकांडों या रीति रिवाशों को अपनाकर समाज में ऊपर की ओर बढ़ने का प्रयत्न करती है।

अपमार्जन: मानव मल तथा अन्य वूफड़ा-कर्वफट और रद्दी चीशों को हाथ से साफ करने की प्रथा। यह प्रथा आज भी उन स्थानों पर प्रचलित है जहाँ जल-मल निकासी की प्रणालियाँ मौजूद नहीं हैं। यह एक ऐसी सेवा हो सकती है जिसे अछूत जातियों को सेवा करने के लिए बाध्य किया जाता है।

पंथनिरपेक्षता: इसके भिन्न-भिन्न रूप या प्रकार हैं : (क) वह सिद्धांत जिसके द्वारा राज्य को धर्म से बिल्कुल अलग रखा जाता है, यानी पाश्चात्य समाजों की तरह ‘चर्च’ और ‘राज्य’ का अलगाव (ख) ऐसा सिद्धांत जिसके अंतर्गत राज्य भिन्न-भिन्न धर्मों के बीच भेदभाव नहीं बरतता और सभी धर्मों का समान रूप से आदर करता है। (ग) इसका जनता में प्रचलित अर्थ है : सांप्रदायिकता या संप्रदायवाद का विरोधी) यानी ऐसी अभिवृत्ति जो किसी भी धर्म के पक्ष में या विरुद्ध न हो।

सामाजिक रचनावाद: ऐसा परिप्रेक्ष्य जो वास्तविकता की व्याख्या करते समय प्रकृति की तुलना में समाज पर अधिक बल देता है। यह जीव विज्ञान और प्रकृति की बजाय सामाजिक संबंधों, मूल्यों और अंतःक्रियाओं को वास्तविकता का अर्थ तथा विषय-वस्तु निर्धारित करने में निर्णायक मानता है। (उदाहरण के लिए, सामाजिक रचनावाद का विश्वास है कि लिंग, बुढ़ापा, अकाल आदि चीशें भौतिक या प्राकृतिक होने की बजाय सामाजिक अधिक हैं।)

सामाजिक अपवर्जन: यह वंचन और भेदभाव का मिलाजुला प्रतिफल है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके अपने समाज के आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से शामिल होने से रोकता है। सामाजिक अपवर्जन संरचनात्मक, यानी व्यक्ति का कार्य होने की बजाय, सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संस्थाओं का परिणाम होता है।

पुत्र-अधिमान्यता: एक सामाजिक प्रघटना या स्थिति जहाँ एक समुदाय के सदस्य पुत्रियों की बजाय पुत्र प्राप्त करना अधिक पसंद करते हैं, अर्थात् वे पुत्रियों की तुलना में पुत्रों को अधिक मान-महत्त्व देते हैं। पुत्रों को अधिमान्यता देने की सच्चाई को सिद्ध करने के लिए पुत्रों तथा पुत्रियों के प्रति सामाजिक व्यवहार का अवलोकन किया जा सकता है अथवा लोगों से सीधे ही उनकी पसंद या सोच के बारे में प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

राज्य: एक अमूर्त सत्व (इकाई) जिसमें कई प्रकार की राजनीतिक-वैधिक संस्थाओं का समूह विद्यमान हो, जो एक खास भौगोलिक क्षेत्र पर और उसमें रहने वालों लोगों पर अपने नियंत्रण का दावा करता हो। एक प्रदेश-विशेष में वैध हिंसा के प्रयोग पर अपना एकाधिकार रखने वाला, अनेक परस्पर जुड़ी संस्थाओं का समुच्चय। इसमें विधान मंडल, न्यायपालिका, कार्यपालिका, सेना, नीति और प्रशासन जैसी अनेक संस्थाएँ शामिल होती हैं। एक-दूसरे अर्थ में, एक बड़ी राष्ट्रीय संरचना के भीतर एक क्षेत्रय सरकार को भी यह नाम दिया जाता है जैसे कि तमिलनाडु की राज्य सरकार आदि।

रूढ़िबद्धधरणा: एक समूह के लोगों का निश्चित और अनम्य (अपरिवर्तनीय) स्वरूप।

स्तरीकरण: समाज के भिन्न-भिन्न टुकड़ों, स्तर अथवा उप-समूहों में अधिक्रमित व्यवस्था, जिनके सभी सदस्य अधिक्रम में एक सामान्य स्थिति रखते हों। स्तरीकरण का निहितार्थ है असमानताऋ समतावादी समाजों में सिद्धांत रूप में अलग-अलग स्तर नहीं होते, हालाँकि उनमें अन्य रूप एवं प्रकार के उप-समूह हो सकते हैं जो अधिक्रम में नहीं होते यानी उनमें ऊँच-नीच का भाव नहीं होता।

स्टॉक बाजार: वंफपनियों के स्टॉक या शेयरों (अंशों) का बाजार। संयुक्त पूँजी वंफपनियाँ अपने शेयर बेचकर अपने लिए पूँजी जुटाती हैं-एक शेयर वंफपनी की परिसंपत्तियों का एक विनिर्धारित हिस्सा होता है। शेयर/अंशधारी वंफपनी में अपने हिस्से (शेयर) खरीदने के लिए पैसा देते हैं और वंफपनी अपना कारोबार चलाने के लिए इस धन का उपयोग करती है। अंशधारियों को लाभांश (डिविडेंड) अथवा वंफपनी द्वारा अर्जित लाभों में से उनका हिस्सा दिया जाता है। लाभांश का वितरण प्रत्येक अंशधारी द्वारा धारित शेयरों की संख्या के अनुसार किया जाता है। स्टॉक बाजार एक ऐसा स्थान या तंत्र है जहाँ इन शेयरों की खरीद-फरोख्त होती रहती है।

अतिरिक्त मूल्य: निवेश के मूल्य में वृद्धि अथवा पूँजी की वापसी; पूँजीवाद के अंतर्गत, अतिरिक्त मूल्य वह धनराशि है जो अधिशेष श्रम से अथवा किए गए उस श्रम से प्राप्त किया जाता है और श्रमिकों को मशदूरी चुकाने के बाद बच जाता है।

समन्वयवाद: एक सांस्कृतिक प्रघटना या प्रक्रिया जिसके अंतर्गत भिन्न-भिन्न धर्मों तथा परंपराओं का परस्पर मिलन या मिश्रण हो जाता है। दो भिन्न-भिन्न प्रकार की धार्मिक या सांस्कृतिक परंपराओं का संकर रूप।

अतिक्रमण: किसी नियम या प्रतिमान या मानदंड का उल्लंघन। सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से निर्धारित नियमों और प्रथाओं एवं रूढ़ियों से परे जानाऋ किसी सामाजिक या सांस्कृतिक नियम (जो विधिक या औपचारिक लिखित कानून न भी हो) को तोड़ना।

जनजाति: एक सामाजिक समूह जिसमें कई परिवार, वंशज (कुल) शामिल हों और जो नातेदारी, संजातीयता, सामान्य इतिहास अथवा प्रादेशिक-राजनीतिक संगठन के साझे संबंधों पर आधारित हो। जाति से यह इस तरह अलग है कि जाति परस्पर अलग-अलग जातियों की अधिक्रमिक व्यवस्था है जबकि जनजाति एक समावेशात्मक समूह होती है (हालाँकि इसमें कुलों या वंशों पर आधारित विभाजन हो सकते हैं।)

अस्पृश्यता: जाति व्यवस्था के भीतर एक सामाजिक प्रथा, जिसके द्वारा निम्न जातियों के सदस्य कर्मकांडीय दृष्टि से इतने अपवित्र समझे जाते हैं कि केवल छूने भर से लोगों को अपवित्र या प्रदूषित कर देते हैं। अछूत जातियाँ सामाजिक पैमाने पर सबसे नीचे की श्रेणी में आती हैं और अधिकांश सामाजिक संस्थाओं से बाहर रखी जाती हैं।

वर्ण: इसका शाब्दिक अर्थ है, ‘रंग’, जाति व्यवस्था का एक राष्ट्रव्यापी रूप जो समाज को चार अधिक्रमिक वर्णों या जातिगत समूहों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-में विभाजित करता है।

आभासी बाजार: एक ऐसा बाजार जो केवल इलैक्ट्रॉनिक रूप में ही मौजूद हो और वंफप्यूटरों तथा दूरसंचार माध्यमों के द्वारा लेन-देन करता हो। ऐसा बाजार एक भौतिक अर्थ में नहीं, बल्कि आंकड़ों के रूप में ही मौजूद होता है जो इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों से संग्रहित होते हैं।

वसीयतनामा: इसका शाब्दिक अर्थ है, इच्छा या संकल्प (जीवित रहने आदि का संकल्प)। लेकिन मूर्त संज्ञा के रूप में यह एक ऐसा दस्तावेश होता है जिसमें व्यक्ति की ऐसी इच्छाएँ निर्दिष्ट होती हैं कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का क्या उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें उत्तराधिकार या उत्तराधिकारी के बारे में निर्देश दिए जाते हैं कि अमुक व्यक्ति को मृतक की परिसंपत्तियों का स्वामित्व दिया जाएगा।