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विक्षनरी:मराठी-हिन्दी शब्दकोश

विक्षनरी से
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ताक मीनिंग इन हिंदी

अ वर्ग

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अगं (संबोधन/अव्यय)—अरे (पति/पत्नी को इस नाम से पुकारता है)
अगदी (क्रि.वि.)—बिल्कुल
अगोदर (क्रि.वि.)—पहले
अग्रणी (सं.पु.)—अग्रगण्य
प्रमुख अचानक (क्रि.वि.)—अचानक
अचूक (वि.)—अचूक
अजिबात (क्रि.वि.)—जरा भी
अजोड (वि.)—बेजोड
अट्ठावन्न (वि.)—अट्ठावन
अडचण (सं.स्त्री.)—अड़चन, समस्या, कठिनाई
अडवणे (क्रि.)—विरोध करना
अडाणीपणा (सं.पु.)—अनाड़ीपन
अडीच (वि.)—ढ़ाई
अत्यवस्थ (वि.)—गंभीर रूप से बीमार
अत्यावश्यक (वि./क्रि.वि.)—बहुत जरूरी
अर्थात (अ.)—अर्थात, मतलब
अद्ययावत (वि.)—अद्यतन
अनुभव (सं.पु.)—अनुभव
अन्न (स.नपुं.)—खाना
अपघात (सं.पु.)—दुर्घटना
अपंगत्व (सं.पु.)—पंगुता
अभ्यास (सं.पु.)—पढ़ाई, अध्ययन
अर्धा (वि.)—आधा
अर्वाच्य (वि.)—जो बोलना नहीं चाहिए
अवघड (वि.)—कठिन
अवघडणे (क्रि.)—अकड जाना
अश्रू (सं.पु.)—आँसू
असणे (क्रि.)—होना
असाच (वि.)—ऐसे ही
अस्वस्थता (सं.स्त्री.)—बेचौनी
अहर्निश (क्रि.वि.)—दिनरात
अहवाल (सं.पु.)—रिपोर्ट
अहो (अव्यय/संबोधन)—अजी (पत्नी पति को ऐसे पुकारती है)
अंगठे बहाद्दर (वा.प्र.)—अंगूठा छाप
अंगण (सं.नपुं.)—आँगन
अंगभर (वि.)—तनभर
अंगात μोणे (वा.प्र.)—भूत लगना
अंगावर काटा उभा राहणे बदनपर रोंगटे खडे होना

आ वर्ग

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आई (सं.स्त्री.)—माँ
आकर्षण (सं.नपुं.)—आकर्षण
आखणे (क्रि.)—बनाना
आखूड (वि.)—लंबाई में छोटा
आज (क्रि.वि.)—आज
आजकाल (क्रि.वि.)—आजकल

आजार (सं.पु.)—बीमारी
आजूबाजूला (क्रि.वि.)—आसपास
आजोबा (सं.पु.)—दादाजी, नानाजी
आठवण (सं.स्त्री.)—याद, स्मृति
आठवणे (क्रि.)—याद आना
आणखी (वि.)—और
आणणे (क्रि.)—लाना
आणि (अ.)—और
आत (परसर्ग)—अंदर
आता (क्रि.वि.)—अब, अभी, तुरंत
आत्मचरित्र (सं.नपुं.)—आत्मकथा
आत्मविश्वास (सं.पु.)—आत्मविश्वास
आदर (सं.पु.)—आदर, सम्मान
आदळणे (क्रि.)—जोर से गिरना
आधी (अ.)—पहले
आनंदात सामील होणे (वा.प्र.)—खुशी में शामिल होना
आपला (वि.)—अपना
आपोआप (क्रि.वि.)—अपनेआप
आमचा (वि.)—हमारा
आमंत्रण (सं.नपुं.)—निमंत्रण
आम्ही (सर्वनाम)—हम
आयुष्य (सं.नपुं.)—जीवन
आरडाओरडा (सं.पु.)—हल्लागुल्ला, शोर, शोरगुल
आरक्षण (सं.पु.)—आरक्षण
आराम (सं.पु.)—आराम, विश्राम
आवड (सं.स्त्री.)—पसंद
आवडणे (क्रि.)—पसंद आना, अच्छा लगना
आवडनिवड (सं.स्त्री.)—अपनी पसंद
आवरणे (क्रि.)—ठीक करना, समेटना
आशादायक (वि.)—आशाजनक
आहे (क्रि.)—है
आज्ञा (सं.स्त्री.)—आज्ञा
आंदोलन (सं.नपुं.)—आंदोलन
आंधळा मागतो एक डोळा, अंधा माँगे एक आँख,
देव देते दोन (कहावत)—भगवान दे दो।
आंबा (सं.पु.)—आम

इ वर्ग

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इकडे (क्रि.वि.)—इधर, यहाँ
इच्छा (सं.स्त्री.)—इच्छा
इतका (वि.)—'bhitar M इतना'
इतर (वि.)—अन्य
इथे (अ.)—यहाँ

उ वर्ग

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उकळणे (क्रि.)—उबालना
उखळ (सं.नपुं.)—ओखली
उगवती (सं.स्त्री./वि.)—उभरती
उगाच (क्रि.वि)—बिनाकारण

उघडणे (क्रि.)—खोलना
उघडानागडा (वि.)—नंगधङ्ंग
उघडाबोडका (वि.)—नंगा, ठूँठा
उजवा (वि.)—दाहिना
उजवा हात (वि.)—दाहिना हाथ
उडीद (सं.पु.)—उड़द
उणे (सं.नपुं.)—कमी
उतरणे (क्रि.)—उतरना
उतार (सं.पु.)—उतार, क्लान
उत्तम (वि.)—उत्तम, बहुत अच्छा
उत्साह (सं.पु.)—उत्साह
उत्साही (वि.)—उत्साहित, उत्साह से भरपूर
उत्सुक (वि.)—उत्सुक, इच्छुक
उद्भवणे (क्रि.)—निर्माण होना, उठना, खडा होना
उदयाला μोणे (क्रि.)—उदित होना
उद्या (क्रि.वि.)—कल
उन्हाळा (सं.पु.)—गर्मी, गर्मी का मौसम
उपाय (सं.पु.)—उपाय
उपाय सुचवणे (क्रि.)—उपाय सुझाना
उपाशी (वि.)—भूखा
उपोषण (सं.नपुं.)—अन्नजल का त्याग
उभी राहणे (क्रि.)—खड़ी रहना
उशिरा (क्रि.वि.)—देर से
उशीर (सं.पु.)—देर
उसळत्या (वि.)—उछलती
उंच (वि.)—उँचे
उंचावणे (क्रि.)—उठाना
उंची (सं.स्त्री.)—कीमती, महँगे

ऊ वर्ग

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ऊन (सं.नपुं./वि.)—धूप

ए वर्ग

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एकच (वि.)—एकही
एकटा (वि.)—अकेला
एकटा जीव सदाशिव (वा.प्र.)—अकेली जान
एकत्र (क्रि.वि.)—इकट्ठा
एकत्र आणणे (क्रि.)—मिलाना
एकदम (क्रि.वि.)—एकाएक, अचानक
एकरूप होणे (क्रि.)—एकरूप होना
एकवेळ (क्रि.वि.)—एक समय, एक जून, एक टंक
एकात्मता (सं.स्त्री.)—एकता, ऐक्य
एकीकडे (क्रि.वि.)—एक तरफ, एक ओर
एकुलता (वि.)—इकलौता
एकेक (वि.)—हरएक, एक-एक
एकोपा (सं.पु.)—एकी
एखादा (वि.)—कोई एक
एवक्ा (वि.)—ऐसा, ऐसा भी

ऐ वर्ग

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ऐकणे (क्रि.)—सुनना
ऐक्य (सं.नपुं.)—ऐक्य, एकता

ओ वर्ग

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ओझे (सं.नपुं.)—बोझ
ओक्णे (्क्रि.)—घसीटना
ओक्णे (क्रि.)—पीना (हुक्का आदि)
ओरडणे (क्रि.)—चिल्लाना
ओलांडणे (क्रि.)—पार करना
ओळख (सं.स्त्री.)—परिचय

औ वर्ग

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औषध (सं.नपुं.)—दवा

क वर्ग

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कडा (सं.पु.)—खडा पहाड
कडेकपारी (सं.स्त्री.)—खड़ी पहाडियाँ और घाटियाँ
कटुता (सं.स्त्री.)—कड़वाहट
कणखर (वि.)—सख्त, कडा
कदाचित (क्रि.वि.)—शायद
कपडा (सं.पु.)—वस्त्र
कधी (क्रि.वि)—कब, कभी कमळ-एक फुल,नववारी साडी नीट बसण्यासाठी निऱ्या जोडून केलेली रचना कमी (वि.)—कम
कमीतकमी (वि.)—कमसे कम
करणे (क्रि.)—करना
करमणूक (सं.स्त्री.)—मनोरंजन
करवंटी (सं.स्त्री.)—नारियल के खोल का आधा भाग,
नारियल का आधा कवच
करंजी (सं.स्त्री.)—गुझिया
कर्मचारी (सं.पु.)—कर्मचारी
कलमी (वि.)—कलमी
कल्पना (सं.स्त्री.)—कल्पना
कसाबसा (क्रि.वि)—किसी तरह
कळणे (क्रि.)—समझना
कंगोरा (सं.पु.)—बारीकि, खुबि
कंटाळा (सं.पु.)—ऊब
कंबर (सं.स्त्री.)—कमर
काक्णे (क्रि.)—खोलना
काढता पाय घेणे (वा.प्र.)—खिसक जाना
कातडी (सं.स्त्री.)—त्वचा
कानाकोपरा (सं.पु.)—कोना कोना
काम (सं.नपुं.)—काम

कामकाज (सं.नपुं.)—कामकाज
काय (सर्वनाम)—क्या?

कायदा (सं.पु.)—कायदा, नियम
कारभार (सं.पु.)—कार्यभार, कामकाज
कार्यक्रम (सं.पु.)—कार्यक्रम
कार्यालय (सं.नपुं.)—विवाहभवन, कार्यालय
काल (क्रि.वि.)—कल
काव्यात्मकता (वि.)—कविता का भाव
कास धरणे (क्रि.)—आधार लेना
काही (वि.)—कुछ
काहूर (सं.नपुं.)—तूफान
काळ (सं.पु.)—जमाना
काळजी (सं.स्त्री.)—चिंता
काळाबाजार (सं.पु.)—काला बाजार
काळोख (सं.पु.)—अंधकार
कांजिण्या (सं.स्त्री.)—बड़ी चेचक
कांडणे (सं.पु.)—कूटना
कांदा (सं.पु.)—प्याज
किमती (वि.)—कीमती, महँगा
किराणा (सं.पु.)—किराना सामान, किराना माल
किंकाळी (सं.स्त्री.)—चीख
कुजबुज (सं.स्त्री.)—फुसफुसाहट
कुठे (क्रि.वि.)—कहाँ
कुत्रा (सं.पु/संज्ञा नपुं.)—कुत्ता
कुवत (सं.स्त्री.)—क्षमता
कुंकू (सं.नपुं.)—सिंदूर, कुंकुम
कुंड (सं.नपुं.)—कुंड, जलाशय
कूड (सं.नपुं.)—टाटकी गोबर और मिट्टीसे लिपी हुई दिवार
कृपा (सं.स्त्री.)—कृपा, मेहरबानी
केवक्ा (वि.)—कितना
केवळ (वि.)—केवल
कैवारी (सं.पु.)—हिमायती
कोण (सर्वनाम), कौन
शब्दसूची
कोसळणे (क्रि.)—गिरना
कौल (सं.नपुं.)—खपरैल

ख वर्ग

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खडक (सं.पु.)—चट्टान
खरचटणे (क्रि.)—खरोचें आना
खरा (वि.)—सच
खरोखर (क्रि.वि)—सचमुच
खर्च (सं.पु.)—खर्च
खळकळून (क्रि.वि)—खिलखिलाकर
खाई (सं.स्त्री.)—पहाड
खाऊ (सं.पु.)—मिठाई
खाद्यपदार्थ (सं.पु.)—खाने-पीनेकी चीजें
खालील (वि.)—निम्नलिखित
खास (वि.)—खास
खांदा (सं.पु.)—कंधा
खिसा (सं.पु.)—जेब
खुश (क्रि.वि.)—खुश, समाधानी, आनंदी
खूप (वि.)—बहुत, भरपूर, खूब
खेडे (सं.नपुं.)—गाँव
खेळ (सं.पु.)—खेल
खेळणे (क्रि.)—खेलना
खोखो (सं.पु.)—खो खो का खेल
खोपटी (सं.स्त्री.)—छोटीसी झोपड़ी
खोरे (सं.नपुं.)—वादी, घाटी
खोल (वि.)—गहरी

ग वर्ग

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गजबज (सं.स्त्री.)—भीड़, शोरगुल
गजरा (सं.पु.)—गजरा
गड (सं.पु.)—गढ़
गणपती (सं.पु.)—गणेशजी
गणवेष (सं.पु.)—वर्दी
गप्प (वि.)—चुप
गप्पागोष्टी (सं.स्त्री.ब.व.)—बातें
गप्पा मारणे (क्रि.)—बातें करना
गरम (वि.)—गरम
गर्दी (सं.स्त्री.)—भीड़
गळणे (क्रि.)—गिरना, बहना
गंमत (सं.स्त्री.)—मज़ाक, मौज-मस्ती, मज़ाकवाली बात
गाणे (सं.नपुं./क्रि.)—गीत, गाना
गालगुंड (सं.स्त्री.)—गलसुआ
गाव (सं.नपुं.)—गाँव, बस्ती
गावठी (वि.)—देशी
गिल्ला (सं.पु.)—शोर
गिळणे (क्रि.)—निगलना
गुडगुडी (सं.स्त्री.)—गुडगुडी (हुक्का)
गुक्ी (सं.स्त्री.)—गुड़ी
गुक्ीपाडवा (सं.पु.)—वर्षप्रतिपदा-हिंदु वर्ष का पहला दिन
गुण्यागोविंदाने (क्रि.वि.)—राजीखुशीसे, सुखपूर्वक
गुपित (सं.नपुं.)—गुप्तबात, राज़
गुराखी (सं.पु.)—चरवाहा
गुळगुळीत (वि.)—गोलमोल, अस्पष्ट
गूळ (सं.पु.)—गुड़
गृहपाठ (सं.पु.)—गृहकार्य
गौरसमजूत (सं.स्त्री.)—भूल
गोड (वि.)—मीठा, मधुर
गोवर (सं.पु.)—चेचक
गोष्ट (सं.स्त्री.)—वस्तु, पदार्थ, बात, कहानी
गोळा करणे (क्रि.)—इकट्ठा करना
गोंधळ (सं.पु.)—हड़बड़ी
गौरव (सं.पु.)—गौरव
ग्राहक (सं.पु.)—ग्राहक

घ वर्ग

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घडणे (क्रि.)—होना, घटीत होना
घमघमाट (सं.पु.)—महक
घर (सं.नपुं.)—मकान
घरमालक (सं.पु.)—मकान मालिक
घर सोडणे (क्रि.)—घर से निकलना
घाईगर्दी (सं.स्त्री.)—जल्दबाजी
घाट (सं.पु.)—घाटी
घाण (सं.)- गंदगी br घाबरणे (क्रि.)—घबराना
घेणे (क्रि.)—लेना

च वर्ग

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चपळ (सं)—चुस्त, चपल
चकचकाट (सं.पु.)—चकाचौंध
चकरा मारणे (क्रि.)—चक्कर लगाना
चढणे (क्रि.)—चढ़ना
चर्चा (सं.स्त्री.)—चर्चा
चालणे (क्रि.)—चलना
चव (सं.स्त्री.)—स्वाद
चव पाहणे (क्रि.)—चखना
चहापाणी (सं.नपुं.)—चायपानी
चहाबिहा (सं.पु.)—चायवाय
चळवळ (सं.स्त्री.)—आंदोलन
चादर (सं.स्त्री.)—चादर
चार (वि.)—चार
चारा (सं.पु.)—घास, चारा
चाहता वर्ग (सं.पु.)—प्रशंसक
चांगला (वि.)—अच्छा
चिखल (सं.पु.)—दलदल, कीचड़
चिडणे (क्रि.)—चीढ़ना
चित्र (सं.नपुं.)—चित्र
चित्रकला (सं.स्त्री.)—चित्रकला
चित्रपट (सं.पु.)—चित्रपट, फिल्म
चिपाड (सं.नपुं.)—आँख का कीचड़
चिवडा (सं.पु.)—चिवडा
चिंच (सं.स्त्री.)—इमली
चीड (सं.स्त्री.)—चिढ़
चीप (सं.स्त्री.)—पत्थर का टुकडा
चुकणे (क्रि.)—भूल करना
चूक (सं.स्त्री.)—गलती, चूक
चोहीकडे (वि.)—चारों तरफ
चौकशी (सं.स्त्री.)—पूछताछ

छ वर्ग

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छटा (सं.स्त्री.)—छटा
छत (सं.नपुं.)—छत
छळ करणे (क्रि.)—तकलीफ देना
छंद (सं.पु.)—शौक
छाती (सं.स्त्री.)—छाती
छान (वि.)—खुबसुरत, सुंदर, अच्छा, बoिeया
छे (अ.)—नहीं
छोटा (वि.)—छोटा
छोटुकली (वि.)—छुटकी

ज वर्ग

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जखमी होणे (क्रि.)—जख्मी होना
जखमेवर मीठ चोळणे (वा.प्र.)—घावपर नमक छिडकना
जग (सं.नपुं.)—दुनिया, संसार
जगणे (क्रि.)—जीना
जड (सं)—भारी, वजनी जगभर (क्रि.वि.)—दुनिया भर
जबाबदारी (सं.स्त्री.)—जिम्मेदारी
जमणे (क्रि.)—कर पाना
जरा (क्रि.वि)—थोड़ा, जरा
जरूरी (सं.स्त्री.)—जरूरी
जवळच (क्रि.वि.)—पास ही
जवळजवळ (क्रि.वि.)—करीब करीब
जवळपास (क्रि.वि.)—नजदीक
जंगल (सं.नपुं.)—जंगल
जागा (सं.स्त्री.)—जगह
जाड (वि.)—मोटा
जाणीव (सं.स्त्री.)—बोध, भान, एहसास, ज्ञान
जाणे (क्रि.)—जाना, निकल जाना
जादातर (वि.)—ज्यादातर
जास्त (वि.)—ज्यादा
जाळे (सं.नपुं.)—जाल
जिणे (सं.नपुं.)—जीवन
जिना (सं.पु.)—सीढ़ियाँ
जिरे (सं.नपुं.)—जीरा
जिल्हा (सं.पु.)—जिला
जिवंत (वि.)—जीता जागता, जीवंत, ज्वलंत
जीभ कोरडी पडणे (वा.प्र.)—जबान सुखना
जीव (सं.पु.)—जान
जीव भांड्यात पडणे (वा.प्र.)—जान में जान आना
जीव मुठीत धरणे (वा.प्र.)—जी (दिल)—थामकर रखना
जुई (सं.स्त्री.)—जूही
जुजबी (वि.)—छोटा मोटा
जुनं पडकं (वि.)—जीर्णशीर्ण
जुना (वि.)—पुराना
जुनी (वि.)—पुरानी
जुलाब (सं.पु.)—दस्त
जुळवून घेणे (क्रि.)—निभाना, समझौता करना
जेवण (सं.नपुं.)—खाना, भोजन
जोडणे (क्रि.)—जोड़ना
जोम (सं.पु.)—जोश, उत्साह

झ वर्ग

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झगमगते (वि.)—जगमगाते
झटणे (क्रि.)—जुटना, खुब तकलीफ उठाना
झटपट (क्रि.वि.)—झटपट, फटाफट
झपझप (क्रि.वि.)—तीव्र गतीसे
झरा (सं.पु.)—झरना
झाड (सं.नपुं.)—पेड
झाडी (सं.स्त्री.)—झाडियाँ
झुडूप (सं.नपुं.)—झाडी
झुळूक (सं.स्त्री.)—हवा का झोंका
झेंडू (सं.पु.)—गेंदा
झोप (सं.स्त्री.)—नींद

ट वर्ग

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टेकडी (सं.स्त्री.)—पहाडी
टेकणे (क्रि.)—टिकना
टेकाड (सं.नपुं.)—टीला
टेबल (सं.नपुं.)—टेबल, मेज़

ठ वर्ग

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ठणका (सं.पु.)—तीखादर्द
ठाम (वि.)—दृक्
ठिकाण (सं.नपुं.)—स्थळ
ठिणगी (सं.स्त्री.)—चिगारी
ठीक (वि.)—ठीक
ठेंगणा (वि.)—ठिगना, नाटा
ठेंगणाठुसका (वि.)—ठिगना, नाटा

ड वर्ग

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डबा (सं.पु.)—डिब्बा
डुलकी (सं.स्त्री.)—झपकी
डेरेदार (वि.)—घनी छायावाला, घना
डोलणे (क्रि.)—डोलना
डोळा (सं.पु.)—आँख
डोळे भरुन μोणे (वा.प्र.)—आँख भर आना
डोंगर (सं.पु.)—पहाड, पर्वत

ड़ेप (सं.स्त्री.)—भेली
सवपरठडॅ ड़ेरपोट (वि.)—बडापेट

त वर्ग

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तक्रार (सं.स्त्री.)—शिकायत
तब्μोत (सं.स्त्री.)—तबीयत
तयार (वि.)—तौयार
तरीही (क्रि.वि.)—फिर भी
तरुण (वि.)—तरुण, युवक, युवा
तर्फे (अ.)—की ओर से
त·हा (सं.स्त्री.)—प्रकार, रीति
तळमजला (सं.पु.)—निचली मंजिल
तंत्र (सं.पु.)—तंत्र
ताई (सं.स्त्री./संबोधन)—बहन, बहन के लिए संबोधन
ताजा (वि.)—ताज़ा
ताप (सं.पु.)—बुखार
ताव मारणे (वा.प्र.)—स्वाद लेना
तास (सं.पु.)—घंटा
तांदूळ (सं.पु.)—चावल
तांबडं फुटणे (वा.प्र)—सूरज निकलना, दिन निकलना
तिखट (वि.)—तीखा
ती (सर्व.)—वह
तीर्थक्षेत्र (सं.नपुं.)—तीर्थस्थान
तीन (वि.)—तीन
तुम्ही (सर्वनाम)—आप
तू (सर्वनाम)—तू
तूर (सं.स्त्री.)—अरहर
तृप्त (वि.)—संतुष्ट, तृप्त
ते (सर्वनाम)—वह
तेक् (सं.स्त्री.)—दुश्मनी
तेरडा (सं.पु.)—गुलमेहँदी
तो (सर्वनाम)—वह
तोडणे (क्रि.)—तोडना
तोंड (सं.नपुं.)—मुँह
त्रास (सं.पु.)—असुविधा, कष्ट, तकलीफ
त्रिवेणी संगम (वि.)—त्रिवेणीसंगम, तीन नदियों का संगम
त्रौमासिक (वि.)—त्रौमासिक
त्वरित (क्रि.वि.)—जल्दी से

थ वर्ग

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थकणे (क्रि.)—थकना
थरकाप (सं.पु.)—काँपना
थंडगार (वि.)—बहुत ठंडा, ठंडा-ठंडा
थांबणे (क्रि.)—रुकना
थेंब (सं.पु.)—बूँद
थोडा (वि.)—कम
थोडफार (वि.)—थोडाबहुत
थोर (वि.)—महान

द वर्ग

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दखल (क्रि.वि.)—परवाह
दगड (सं.पु.)—पत्थर
दगावणे (क्रि.)—चल बसना
दर्जा (सं.पु.)—दर्जा, श्रेणी
दडपण (सं.नपुं.)—बोझ
शब्दसूची
दणादण (वि.)—दनादन
दमणे (क्रि.)—थकना
दाखविणे (क्रि.)—दिखाना
दागिना (सं.पु.)—गहना, आभूषण
दाट (वि.)—घना
दारिद्र¶ (सं.नपुं.)—गरीबी
दांडा (सं.पु.)—डंडा
दिवस-दिवस (क्रि.वि.)—कई कई दिन
दिवसभर (क्रि.वि.)—दिनभर
दिसणे (क्रि.)—दिखाई देना
दीडपाव (वि.)—देढ़पाव
दुकान (सं.नपुं.)—दुकान
दुखावणे (क्रि.)—दर्द होना
दुप्पट (वि.)—दुगना
दुर्लक्ष (सं.नपुं.)—अनदेखा
दुसरा (वि.)—दूसरा
दूध (सं.नपुं.)—दूध
दूर (क्रि.वि.)—दूर
दृष्टी (सं.स्त्री.)—दृष्टि
देऊळ (सं.नपुं.)—मंदिर
देणगी (सं.स्त्री.)—देन
देणे (क्रि)—देना
देवाणघेवाण (सं.स्त्री.)—आदानप्रदान, बढ़ावा देना
दैव (सं.नपुं.)—भाग्य
दोन (वि.)—दो
दौरा (सं.पु.)—दौरा

ध वर्ग

[सम्पादन]

धक्का बसणे (वा.प्र.)—दंग रह जाना
धड (वि.)—ठीक तरह से
धन्य (वि.)—धन्य
धबधबा (सं.पु.)—जल प्रपात
धसास लागणे (वा.प्र)—पूरा करना
धस्स होणे (वा.प्र.)—धक् रह जाना
धाकधूक (सं.स्त्री.)—धक धक
धाडकन (क्रि.वि.)—धड़ाम से
धान्य (सं.नपुं.)—धान
धारण करणे (क्रि.)—धारण करना
धावणे (क्रि.)—दौड़ना
धांदल (सं.स्त्री.)—हड़बड़ी
धुळीत खेळणे (वा.प्र.)—धूल में खेलना
धूळ झटकणे (वा.प्र.)—जागरुक करना
धोका (सं.पु.)—धोखा
ध्μोय (सं.नपुं.)—लक्ष्य
ध्μोयवादी (वि.)—आदर्शवादी

न वर्ग

[सम्पादन]

नको (क्रि.वि.)—नहीं
नक्की (क्रि.वि.)—अवश्य, जरूर
नख (सं.नपुं.)—नाखून
नटणे (क्रि.)—सजना
नमस्कार (सं.पु.)—नमस्कार, नमस्ते
नवनवीन (वि.)—नई नई
नवल (सं.नपुं.)—आश्चर्य
नवा (वि.)—नया
नवीन (वि.)—नई
नहाणे (क्रि.)—नहाना
नंतर (क्रि.वि.)—बाद में
नाकी नऊ μोणे (वा.प्र.)—नाक में दम होना
नागमोडी (वि.)—बलखाती
नाच (सं.पु.)—नाच
नाचगाणे (सं.नपुं.)—नाचगाना
नाटक (सं.नपुं.)—नाटक
नात (सं.स्त्री.)—पोती, नातिन
नातवंडं (सं.नपुं.)—नातीपोती
नातेवाईक (सं.पु.)—रिश्तेदार
नाव (सं.नपुं.)—नाम
नाही (क्रि.वि.)—नहीं
नांदणे (क्रि.)—सुखसे रहना, (मराठी में 'नांदणे' का अर्थ एक
विशेष रूप में होता हैं। लड़की जब ससुराल में
राजीखुशी से रह रही होती है तब कहा जाता
है"मुलगी सुखात नांदत आहे")
निकटवर्ती (वि.)—पासवाले
निकाल (स.पुं.)—फल, परिणाम, नतीजा
निखळ (वि.)—सिर्फ
निगडीत (वि.)—जुड़ी हुई
नितळ (वि.)—निर्मल
निदान (सं.नपुं.)—कम से कम
निमित्त (सं.नपुं.)—निमित्त
निमुळता (वि.)—नुकीला
नियंत्रण (सं.नपुं.)—रोक
निराळा (वि.)—निराला, अलग, अनोखा
निरोप (सं.पु.)—बिदाई संदेश
निर्णय (सं.पु.)—निर्णय
निर्धास्त (क्रि.वि.)—निश्चींत
निःश्वास (स.पु.)—चौन की सांस
निसर्ग (सं.पु.)—प्रकृति
नीट (वि.)—ठीकसे
नुकता (वि.)—अभी अभी, हाल ही में
नुसता (वि./क्रि.वि.)—सिर्फ, केवल
नेमका (वि.)—ठीक
नेसणे (क्रि.)—पहनना
नेहमी (क्रि.वि)—सदैव, हमेशा, सदा
नोकरी (सं.स्त्री.)—नौकरी
न्हाणी घर (सं.नपुं.)—स्नान घर

प वर्ग

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पटकन (क्रि.वि.)—झट से
पटणे (क्रि.)—पसंद आना, अच्छा लगना
पट्ठा (सं.पु.)—पट्ठा
पडणे (क्रि.)—पडना, गिरना
पडल्या पडल्या (क्रि.वि)—पड़े पड़े
पण (अ.)—पर, लेकिन
पत्र (सं.नपुं.)—पत्र, चिट्ठी
पथनाट¶ (सं.नपुं.)—नुक्कड नाटक
पदरी निराशा μोणे (वा.प्र.)—झोली में निराशा आना
परडी (सं.स्त्री.)—डलिया
परत (क्रि.वि.)—वापस
परवा (क्रि.वि.)—परसों
परवानगी (सं.स्त्री.)—अनुमति
परिणाम (सं.पु.)—असर
परिपत्रक (सं.नपुं.)—परिपत्र
पसरट (वि.)—चिपटा (परैल)
पसारा करणे (क्रि.)—पसारा करना
पहाट (सं.स्त्री.)—उषाकाल
पळवणे (क्रि.)—उठा के ले जाना
पंचावन्न (वि.)—पचपन
पाऊस (सं.पु.)—बारिश, वर्षा
पाठ करणे (क्रि.)—याद करना
पाठकोरा (वि.)—एकतरफ कोरा
पाठविणे (क्रि.)—भेजना
पाठीमागे (क्रि.वि.)—पीछे की तरफ
पाक्ा (सं.पु.)—पहाड़ा
पाणी (सं.नपुं.)—पानी
पान (सं.नपुं.)—पत्ता
पाय (सं.पु.)—पौर, पाँव
पायवाट (सं.स्त्री.)—पगडंडी
पाया (सं.पु.)—नींव, बुनियाद
पारिजातक (सं.नपुं.)—हरसिंगार
पालक (सं.पु.)—पालक, मातापिता
पाव (वि.)—पाव
पावणेदोन (वि.)—पौने दो
शब्दसूची
पावन (वि.)—पवित्र
पावसाळा (सं.पु.)—बारिश का मौसम
पाहgणे (क्रि.)—देखना
पाहायला पाहिजे (क्रि.)—देखना चाहिए
पाहणा (सं.पु.)—मेहमान
पांक्रा (वि.)—सफेद
पांक्राशुभ्र (वि.)—शुभ्रसफेद
पिल्लू (सं.नपुं.)—पिल्ला
पिवळसर (वि.)—हल्का पीला
पिवळाधमक (वि.)—गहरा पीला
पिंपळ (सं.पु.)—पीपल
पुक्े (अ.)—आगे
पुरणे (क्रि.)—काफी होना
पुरस्कार (सं.पु.)—पुरस्कार
पुरेल एवक्ा (वि.)—काफी
पुरेसे (वि.)—पर्याप्त
पुस्तक (सं.नपुं.)—पुस्तक, क़िताब
पूर्ण (वि.)—पूरा
पृथ्वी प्रदक्षिणा (सं.स्त्री.)—पृथ्वी की परिक्रमा
पेज (सं.स्त्री.)—माँड
पेटणे (क्रि.)—जलना
पेरु (सं.पु.)—अमरुद
पेंक्ा (सं.पु.)—पुआल, पयाल
पोट खपाटीला जाणे (वा.प्र.)—पेट पीठ से लगना
पोटभर (क्रि.वि.)—भरपेट
पोटासाठी दाही दिशा (वा.प्र.)—रोजी रोटी के लिए कहीं भी जाना
पोतं (सं.नपुं.)—बोरी
पोरका (वि.)—अनाथ
पोहोचणे (क्रि.)—पहुँचना
प्रकार (सं.पु.)—प्रकार
प्रगती (सं.स्त्री.)—प्रगति
प्रगतिपुस्तक (सं.नपुं.)—प्रगतिपत्र
प्रचंड (वि.)—प्रचंड, विशाल
प्रतिबिंब (सं.नपुं.)—परछाँई
प्रत्यक्ष (वि.)—वास्तव
प्रत्μोक (वि.)—हर एक
प्रभावी (वि.)—प्रभावकारी
प्रयत्न (सं.पु.)—प्रयत्न
प्रवाह (सं.पु.)—प्रवाह
प्रसंग (सं.पु.)—घटना
प्रसिद्ध (वि.)—प्रसिद्ध
प्राण (सं.पु.)—प्राण, जान
प्रेम (सं.नपुं.)—प्रेम, प्यार
प्रेक्षक (सं.पु.)—दर्शक
प्रोत्साहन (सं.नपुं.)—प्रोत्साहन

फ वर्ग

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फक्त (क्रि.वि.)—सिर्फ
फजिती (सं.स्त्री.)—फजीहत
फरक (सं.पु.)—फर्क, अंतर, भिन्नता
फळ (सं.नपुं.)—फल
फाईल (सं.स्त्री.)—फाइल
फायदा (सं.पु.)—फायदा
फार (वि.)—ज्यादा, बहुत
फिरती (सं.स्त्री.)—दौरा
फोड (सं.स्त्री.)—टुकड़ा

ब वर्ग

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बघणे (क्रि.)—देखना
बदल (सं.पु.)—बदलाव, परिवर्तन
बदलणे (क्रि.)—बदलना
बहीण (सं.स्त्री.)—बहन
बहुगुणी (वि.)—बहुत गुणोंवाली
बहुतेक (वि.)—शायद
बहुधा (क्रि.वि.)—बहुधा, शायद, ज्यादातर
बर्फ (सं.पु.)—बर्फ़
बरे (सं.नपुं.)—अच्छा
बरोबर (वि.)—साथमें, ठीक, साथ, साथसाथ
बलवत्तर (वि.)—जोरदार
बसणे (क्रि.)—बौठना
बंड (सं.नपुं.)—विद्रोह
बंदी (सं.स्त्री.)—प्रतिबंध
बंधुप्रेम (सं.नपुं.)—भाई का प्रेम
बाई (सं.स्त्री.)—श्रीमतीजी
बाग (सं.स्त्री.)—बगीचा
बाजार (सं.पु.)—मंडी, बजार
बाजू (सं.स्त्री.)—बाजू
बाटली (सं.स्त्री.)—बोतल
बातमी (सं.स्त्री.)—खबर, समाचार
बाबा (सं.पु./संबोधन)—पिताजी, पिताजी के लिए संबोधन
बायको (सं.स्त्री.)—पत्नी
बाहुली (सं.स्त्री.)—गुडि़या
बाहेर (क्रि.वि./अ.)—बाहर
बाळ (सं.नपुं./सं.पु./संबोधन)—बच्चा, बेटा (बेटे के लिए संबोधन)
बांधणी (सं.स्त्री.)—बनावट
बिचारा (वि.)—बेचारा
बुडणे (क्रि.)—डुबना
बेचाळीस (वि.)—बयालीस
बेत (सं.पु.)—योजना, खानेका पक्वान्न
बेधडक (क्रि.वि.)—बिना झिझक
बौठक (सं.स्त्री.)—बौठक
बोलणे (क्रि.)—बोलना
बोलावणे (क्रि.)—बुलाना

भ वर्ग

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भटकंती (सं.स्त्री.)—भटकन
भयंकर (वि.)—भयंकर, भीषण
भरधाव (क्रि.वि.)—तेज
भरपूर (वि.)—भरपूर, काफी
भरमसाठ (क्रि.वि.)—भरमार, बहुत
भराभर (क्रि.वि.)—जल्दी जल्दी
भरुन काक्णे (वा.प्र.)—वसूलना
भव्य (वि.)—विशाल
भाऊजी (सं.पु./संबोधन)—भाईसाहब, देवर, देवर के लिए संबोधन
भाग पडणे (क्रि.)—कोई भी बात सख्ती से करनी पडना
भागवणे (क्रि.)—निभाना, चलाना (खर्च)
भाजी (सं.स्त्री.)—सब्जी
भाडे (सं.नपुं.)—किराया
भात (सं.पु./नपुं.)—धान, चावल
भाराभर (वि.)—बहुत अधिक
भाव (सं.पु.)—कीमत, भाव
भाव खाणे (वा.प्र.)—ज्यादा समझना
भाषण (सं.नपुं.)—भाषण
भाषांतर (सं.नपुं.)—अनुवाद
भांडण (सं.नपुं.)—झगड़ा
भांबावणे (क्रि.)—भौंचक्का रह जाना
भिजणे (क्रि.)—भीगना, गीला होना
भिंत (सं.स्त्री.)—दीवार
भीती (सं.स्त्री.)—डर, भय
भेटणे (क्रि.)—मिलना
भोकाड पसरणे (वा.प्र.)—धाड़ मार कर रोना
भ्रतार (सं.पु.)—नवरा, पति, भरतार

म वर्ग

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मग (क्रि.वि.)—फिर
मग्न (वि.)—मगन, व्यस्त
मजूरी (सं.स्त्री.)—मजदूरी
मत (सं.नपुं.)—विचार
मदत (सं.स्त्री.)—मदद
मधुर (वि.)—मधुर, मीठा
मन (सं.नपुं.)
मनावर घेणे (वा.प्र.)—करने की ठान लेना
शब्दसूची
मनासारखे (वि.)—मनचाहा
मगरळून पडणे (क्रि.)—बेजान होना
मर्यादा (सं.स्त्री.)—अवधि, सीमा
मर्यादित (वि.)—सीमित
मलम (सं.नपुं.)—मरहम
मलूल होणे (वा.प्र.)—फीका पड़ जाना
मस्त (वि.)—मजेदार, अच्छा
महत्त्व (सं.नपुं.)—महत्त्व
महाग (वि.)—महँगा
महागाई (सं.स्त्री.)—मँहंगाई
मळमळणे (क्रि.)—जी मिचलाना
मंगल कार्यालय (सं.नपुं.)—विवाहभवन
मंडई (सं.स्त्री.)—बाजार
मंडळी (सं.स्त्री.)—मंडली
मागणी (सं.स्त्री.)—माँग
मागवणे (क्रि.)—प्राप्त करना, आमंत्रित करना, मंगवाना
मागे (क्रि.वि.)—पीछे, कमजोर
माझा (सर्वनाम)—मेरा, मेरी
माझे आई (संबोधन)—मेरी माँ
माणूसकी (सं.स्त्री.)—मानवता, इन्सानियत
मानणे (क्रि.)—मानना
मान तुकवणे (वा.प्र.)—सिर झुकाना
मार्ग (सं.पु.)—राह, रास्ता, पथ
मार्गदर्शन (सं.नपुं.)—मार्गदर्शन
मारामारी (सं.स्त्री.)—मारपीट
मालक (सं.पु.)—मालिक
मालकीण (सं.स्त्री.)—मालकिन
मावशी (सं.स्त्री.)—मौसी
मावळणे (क्रि.)—अस्त होना
माहिती (सं.स्त्री.)—जानकारी
माहितीपत्रक (सं.नपुं.)—सूचनापत्रक
माहीत असणे (क्रि.)—मालूम होना
माळा (सं.पु.)—ऊपरी
मांडणे (क्रि.)—रखना
मिठी (सं.स्त्री.)—अलिंगन
मित्र (सं.पु.)—मित्र, दोस्त
मित्रमंडळ (सं.नपुं.)—मित्र मंडली
मिसळणे (क्रि.)—घुलमिल जाना, हिलमिल जाना
मिळविणे (क्रि.)—प्राप्त करना
मी (सर्वनाम)—मैं
मीठ (सं.नपुं.)—नमक
मुकणे (क्रि.)—वंचित रहना
मुकाट¶ाने (क्रि.वि.)—चुपचाप
मुकामार (सं.पु.)—गुम चोट, अंदरुनी चोट
मुरगळणे (क्रि.)—मोच आना
मुलगा (सं.पु.)—लड़का, बेटा
मुलगी (सं.स्त्री.)—लड़की, बेटी
मुलाखत (सं.स्त्री.)—मुलाकात, साक्षात्कार
मुसळ (सं.नपुं.)—मूसल
मुसळधार (वि.)—मूसलाधार
मूठ (सं.स्त्री.)—मुट्ठी
मूठभर (वि.)—मुट्ठीभर
मूर्ती (सं.स्त्री.)—मूर्ति
मूळ (सं.नपुं.)—मूल
मूळ गाव (सं.नपुं.)—मूलगाँव, जन्म स्थान
मौल (सं.पु.)—मील
मोठा (वि.)—बड़ा
मोबदला (सं.पु.)—बदले में
मोह (सं.पु.)—मोह, आकर्षण
मोहरी (सं.स्त्री.)—सरसों
मोहीम (सं.स्त्री.)—अभियान
म्हणजे (अ.)—मतलब, यानि
म्हणून (अ.)—इसलिए
म्हातारा (वि.)—बूढ़ा

य वर्ग

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यजमान (सं.पु.)—पति
यश (सं.नपुं.)—यश
यशस्वी (वि.)—यशस्वी
यादी (सं.स्त्री.)—पर्ची, सूची
यायला लागायचं (क्रि.)—आना पडता था
युग (सं.नपुं.)—युग
μोणे (क्रि.)—आना
योजना (सं.स्त्री.)—योजना

र वर्ग

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रक्तचंदन (सं.नपुं.)—लालचंदन
रडारड (सं.स्त्री.)—रोनाधोना
रत्न (सं.नपुं.)—रत्न
रमणे (क्रि.)—जी लगना, मन लगना
रस (सं.पु.)—रुचि
रस घेणे (क्रि.)—रुचि लेना
रसाळपणा (सं.पु.)—रसीलापन
रस्ता (सं.पु.)—रास्ता, राह, पथ
रहाटगाडगे (सं.नपंु.ं)—दिनचक्र
रंगमंच (सं.पु.)—रंगमंच
रंगाचा बेरंग (वा.प्र.)—रंगमे भंग, मजा किरकिरा
रंगून जाणे (क्रि.)—मग्न हो जाना
रागावणे (क्रि.)—नाराज होना, बुरा मानना
राजकारण (सं.नपुं.)—राजनीति
रात्र (सं.स्त्री.)—रात
रात्रभर (क्रि.वि.)—रातभर
राहणे (क्रि.)—रहनारिश्ता
रिकामा (वि.)—खाली
रुग्ण (सं.पु.)—रोगी
रुंदी (सं.स्त्री.)—चौड़ाई
रुक्ी (सं.स्त्री.)—रुढ़ी
रुप (सं.नपुं.)—रुप, स्वरुप
रोजी (सं.स्त्री.)—रोजगार

ल वर्ग

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लग्नसराई (सं.स्त्री.)—शादी का मौसम
लयबद्ध (वि.)—लयबद्ध
लवकर (क्रि.वि.)—जल्दी
लहान (वि.)—छोटा
लळा लागणे (वा.प्र.)—से हिल जाना
लक्ष (सं.नपुं.)—ख्याल, ध्यान
लाजणे (क्रि.)—शर्माना
लाजाळू (वि.)—शर्मिली
लालभडक (वि.)—सूर्खलाल
लांब (वि./क्रि.वि.)—दूर
लिहिणे (क्रि.)—लिखना
लिंबू (सं.नपुं.)—नीबू
लेक (सं.पु.)—बेटा, लड़का
लेक (सं.स्त्री.)—लड़की, बेटी
लोक (सं.नपुं.)—लोग
लोप होणे (क्रि.)—नष्ट होना, लुप्त होना

व वर्ग

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वक्तृत्व स्पर्धा (सं.स्त्री.)—भाषण प्रतियोगिता
वचन (सं.नपुं.)—वचन, वायदा
वड (सं.पु.)—वट, बरगद
वडील (सं.पु.)—पिता
वधूवर सूचक मंडळ (सं.नपुं.)—वधुवर जानकारी केंद्र
वय (सं.नपुं.)—उम्र, आयु
वरात (सं.स्त्री.)—बारात
वर्ग (सं.पु.)—कोर्स
वर्तणूक (सं.स्त्री.)—बर्ताव
वर्तमानपत्र (सं.नपुं.)—अखबार
वर्ष (सं.नपुं.)—वर्ष, साल
वस्ताहत

(सं.स्त्री.)—बस्ती	

वस्तू (सं.स्त्री.)—चीज
वहिनी (सं.स्त्री.)—भाभी
वही (सं.स्त्री.)—कापी, पुस्तिका
वळण (सं.नपुं.)—मोड़
वा (अ.)—वाह
वाकणे (क्रि.)—झुक जाना
वागणे (क्रि.)—बर्ताव करना
वाचणे (क्रि.)—पढ़ना, बचना
वाचनालय (सं.नपुं.)—पुस्तकालय
वाचवणे (क्रि.)—बचाना
वाट (सं.स्त्री.)—राह, रास्ता, पथ
वाटणे (क्रि.)—लगना, चाहना
वाट बघणे (क्रि.)—बाट जोहना
वाक्णे (क्रि.)—बढ़ना, बढ़ जाना
वाद (सं.पु.)—वाद, वादविवाद
वापरणे (क्रि.)—प्रयोग करना
वारंवार (क्रि.वि.)—बारबार
वारा (सं.पु.)—हवा
वारी (सं.स्त्री.)—परिक्रमा
वार्ताहर (सं.पु.)—पत्रकार
वाव (सं.पु.)—अवसर
वास्तव (वि.)—वास्तविकता, यथार्थ
वाहता (वि.)—बहता
वाहवा (अ.)—वाह वाह
वाळीत टाकणे (वा.प्र.)—बहिष्कृत करना
विचार (सं.पु.)—विचार, सोच
विचारणे (क्रि.)—पूछना
विजेता (सं.पु.)—विजेता
विडी (सं.स्त्री.)—बीड़ी
विनंती (सं.स्त्री)—बिनंती
विनोदी (वि.)—विनोदी, मज़ाकिया
विभाग (सं.पु.)—विभाग, भाग
विभागणे (क्रि.)—विभाजन
विशेष (वि.)—विशिष्ट
विशेषतः (क्रि.वि)—विशेषकर
विश्रांती (सं.स्त्री.)—आराम, विश्राम
विषबाधा (सं.स्त्री.)—विष का असर
वीज (सं.स्त्री.)—बिजली
वेग (सं.पु.)—गति
वेगळा (वि.)—अलग, निराला
वेचक (वि.)—चुने हुए
वेठबिगारी (सं.स्त्री.)—बेगारी, बंधुआ मजदूर
वेडावाकडा (वि.)—आडातिरछा
वेळ (सं.पु.)—वक्त, समय
वौराण (वि.)—वीरान
वौरी (सं.पु.)—दुश्मन
वौशिष्ट¶ (सं.नपुं.)—विशिष्टता
व्यत्यय (सं.पु.)—बाधा
व्याप (सं.पु.)—झमेला, कामों का क्ेर

श वर्ग

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शक्तिशाली (वि.)—बलवान, शक्तिशाली
शक्य (वि.)—संभव
शपथ (सं.स्त्री.)—शपथ, कसम
शाबासकी (सं.स्त्री.)—शाबाशी
शाब्बास (अ.)—शाबाश
शासन (सं.नपुं.)—शासन
शाळा (सं.स्त्री.)—स्कूल
शांतता (सं.स्त्री.)—शांती
शिकणे (क्रि.)—सीखना
शिकवणे (क्रि.)—सिखाना
शिरणे (क्रि.)—घुसना
शिव (सं.पु.)—शिवजी
शिवणकाम (सं.नपुं.)—सिलाई
शिवणटिपण (सं.नपुं.)—सिलाई आदि
शिवाय (अ.)—अलावा, के सिवाय, अतिरिक्त
शिष्यवृत्ती (सं.स्त्री.)—छात्रवृत्ति
शिक्षण (सं.नपुं.)—शिक्षा
शिक्षा (सं.स्त्री.)—सज़ा
शिंग (सं.नपुं)—सींग
शेकडो (वि.)—सैंकड़ो
शेकोटी (सं.स्त्री.)—अलाव
शेजारी (सं.पु.)—पड़ोसी
शेतकरी (सं.पु.)—किसान
शेवट (सं.पु.)—आखिर, अंत
शेवटचा (वि.)—आखरी
शेवंती (सं.स्त्री.)—सेवंती
शेंगदाणा (सं.पु.)—मूंगफली दाना
शोध (सं.पु.)—खोज
शोधून काक्णे (क्रि.)—खोज निकालना
श्रीखंड (सं.नपुं.)—एक मिठाई जिसे दही और चीनी से बनाया
जाता है। महाराष्ट्र में उसे पुरी के साथ खाते है।

स वर्ग

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सकाळ (सं.स्त्री.)—प्रातःकाल, सवेरा
सक्ती (सं.स्त्री.)—जबरदस्ती
सगळा (वि.)—सारा, सब, सभी
सगेसोयरे (सं.पु.ब.व.)—सगेसंबंधी
सचिव (सं.पु.)—सचिव
सज्जा (सं.पु.)—छज्जा
सत्य (सं.नपुं.)—सत्य, सच्चाई
सध्या (क्रि.वि.)—फिलहाल, आजकल, हालही में
सभा (सं.स्त्री.)—सभा, बौठक
सभोवती (क्रि.वि.)—आसपास
समजणे (क्रि.)—समझना
समजूत (सं.स्त्री.)—धारणा, समझ
समाजकार्य (सं.नपुं.)—समाजकार्य
समाजप्रबोधन (सं.नपुं.)—सामाजिक जागृति
समाधान (सं.नपुं.)—समाधान
समाधी (सं.स्त्री.)—समाधि
समारंभ (सं.पु.)—समारोह
समुद्रकाठ (सं.पु.)—समुद्र का किनारा
समुद्रपट्टी (सं.स्त्री.)—समुद्र का किनारा
समोर (क्रि.वि.)—सामने
सर्व (सर्वनाम)—सब, सारे
सर्वसामान्य (वि.)—जनसाधारण
सल्ला (सं.पु.)—सलाह
सवड (सं.स्त्री.)—फुरसत
सवय (सं.स्त्री.)—आदत
सव्वा (वि.)—सवा
सहन करणे (क्रि.)—सह लेना
सहल (सं.स्त्री.)—सौर, पिकनिक
सही (सं.स्त्री.)—हस्ताक्षर
संकुचित (वि.)—संकुचित, तंगनज़री
संख्या (सं.स्त्री.)—संख्या, अंक
संडास (सं.पु.)—शौचालय
संधी (सं.स्त्री.)—मौका
संध्याकाळ (सं.स्त्री.)—शाम का वक्त, संध्यावेला
संपर्क (सं.पु.)—संपर्क
संमती (सं.स्त्री.)—सहमती
संसार (सं.पु.)—घरगृहस्थी
साठवणे (क्रि.)—संग्रह करना
साधणे (क्रि.)—मुमकिन होना
साधा (वि.)—सादा
सामना करणे (वा.प्र.)—सामना करना
सारखा (वि.)—के समान
सार्थ (वि.)—अर्थसहित
सार्वजनिक (वि.)—सार्वजनिक
सावली (सं.स्त्री.)—छाँव
सासू (सं.स्त्री.)—सास
साहित्यकृती (सं.स्त्री.)—साहित्यकृति
साक्ष (सं.स्त्री.)—गवाही
साक्षर (वि.)—साक्षर
सांगणे (क्रि.)—बताना, कहना
सिद्ध करणे (क्रि.)—कर दिखाना
सिंहीण (सं.स्त्री.)—सिंहनी
सुकणे (क्रि.)—सूखना, सूख जाना
सुखसोयी (सं.स्त्री.)—सुख सुविधाएँ
सुचणे (क्रि.)—सूझना
सुटका (सं.स्त्री.)—छुटकारा
सुट्टी/सुटी (सं.स्त्री.)—छुट्टी
सुन्न (क्रि.वि)—सन्न
सुभाषित (सं.नपुं.)—सुभाषित, शिक्षाप्रद कथन
सुरळीत (वि.)—बिना किसी बाघा के
सुरुवात (सं.स्त्री.)—शुरुवात
सुरू करणे (क्रि.)—शुरु करना
सुरु (वि.)—शुरु
सुलभ (वि.)—आसान
सुवास (सं.पु.)—खुशबू
सुशोभित (वि.)—सुशोभित, सजा हुआ
सुळसुळाट (सं.पु.)—बडी संख्या में
सूचना (सं.स्त्री.)—सुझाव
सूज (सं.स्त्री.)—सूजन
सोडवणे (क्रि.)—सुलझाना, छुडाना
सोनार (सं.पु.)—सुनार
सोनेरी (वि.)—सुनहरा
सोय (सं.स्त्री.)—इंतजाम
स्तब्ध (वि.)—स्तब्ध, चुपचाप
स्थळ (सं.नपुं.)—रिश्ता
स्थाμिाक होणे (क्रि.)—बस जाना
स्थिती (सं.स्त्री.)—स्थिती
स्वच्छ (वि.)—साफ
स्वतः (क्रि.वि.)—खुद
स्वतंत्र (वि.)—अलग
स्वप्ने रंगवणे (वा.प्र.)—सपने संजोना
स्वयंपाक (सं.पु.)—पाक कला
स्वयंपाकघर (सं.नपुं.)—रसोईघर
स्वरूप (सं.नपुं.)—रूप, स्वरूप
स्वर्ग दोन बोटे उरणे (वा.प्र.)—स्वर्ग दो उंगलियों के दुरीपर होना, स्वर्गिय
आनंद होना
स्वस्त (वि.)—सस्ता
स्वार्थी (वि.)—स्वार्थी, खुदगर्ज

ह वर्ग

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हगवण (सं.स्त्री.)—दस्त
हतबल होणे (वा.प्र.)—लाचार हना
हमखास (क्रि.वि.)—जरूर, निश्चय ही
हरभरा (सं.पु.)—चना
हल्ली (क्रि.वि)—आजकल, अभी
हवा (वि.)—चाहिए
हस्तलिखित (सं.नपुं.)—हस्तलिखित
हस्तव्यवसाय (सं.पु.)—हस्तउद्योग
हळूहळू (क्रि.वि)—धीरे धीरे
हा (सर्वनाम)—यह
हात पिवळे करणे (वा.प्र.)—हाथ पीले करना, शादी करना
हातभार लावणे (वा.प्र.)—हाथ बँटाना
हाताबाहेर (क्रि.वि.)—हाथसे निकलना, पहुँच के बाहर
हाताळणे (क्रि.)—निबटाना
हाल (सं.पु.)—तकलीफ
हाल कुत्रा खात नाही (वा.प्र.)—कुत्ते से भी बदतर
हिरवागार (वि.)—हराभरा
हिशेब (सं.पु.)—हिसाब
ही (अ.)—भी
हृदयाला भिडणे (वा.प्र.)—हृदय छू लेना
हो हो (क्रि.वि.)—हां, हां

क्षण (सं.पु.)—पल

सन्दर्भ

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भारतीय भाषा ज्योति - मराठी