यव

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

यव संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जौ नामक अन्न । विशेष दे॰ 'जौ' ।

२. एक जौ या १२ सरसों की तौल का एक मान ।

३. लंबाई की एक नाप जो एक इंच की एक तिहाई होती है ।

४. सामुद्रिक के अनुसार जौ के आकार की एक प्रकार की रेखा जो उँगली में होती है और जो बहुत शुभ मानी जाती है । कहते हैं, यदि यह रेखा अँगूठे में हो, तो उसका फल और भी शुभ होता है । इस रेखा का रामचंद्र के दाहिने पैर के अँगूठे में होना माना जाता है ।

५. वेग । तेजी ।

६. वह वस्तु जो दोनों ओर उन्नतोदर हो ।