रातना
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
रातना पु क्रि॰ अ॰ [सं॰ रक्त, रत्त+हिं॰ ना (प्रत्य॰)]
१. लाल रंग से रँग जाना । लाल हो जाना ।
२. रँग जाना । रंगीन होना । उ॰— रँग राते बहु चीर अमोला ।— जायसी (शब्द॰) ।
३. अनुरक्त होना । आशिक होना । उ॰— (क) जाहि जो भजै सो ताहि रातै । कोउ कछु कहै सब निरस बातैं ।— सूर (शब्द॰) । (ख) रँग राती राते हिये प्रीतम लिखी बनाय । पाती काती बिरह की छाती रही लगाय ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) जिन कर मन इन सन नहिं राता । तिन जग बंचित किए बिधाता । तुलसी (शब्द॰) ।