लार

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

लार ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ लाला]

१. वह पतला लसदार थूक जो कोई बहुत कडु ई खट्टी आदि चीज खाने या मुँह में कोई दवा आदि लगाने पर तार के रूप में निकलता है । मुहा॰—मुँह में लार आना = दे॰ 'मुँह से लार टपकना' । मुँह से लार टपकना = किसी चीज को देखकर उसके पाने की परम लालसा होना । मुँह में पानी भर आना ।

२. कतार । पंक्ति ।

३. लासा । लुआब । उ॰—सो मुख चूमनि महरि यशोदा दूघ लार लपटानी हो ।—सूर (शब्द॰) ।

लार ^२ क्रि॰ वि॰ [ ? मि॰ मरा॰ लैर ( = पीछे)] साथ । पीछे । उ॰—(क) सत्ती जरि कोइला भई मूए मरे की लार । जउँ वह जरती राम सों साँचे सँग भरतार ।—दादू (शब्द॰) । (ख) अंधे अंधा मिल चले दादू वाँधि कतार । कूप पड़े हम देखनाँ अंधे अंधा लार ।—दादु (शब्द॰) । (ग) जो निर्गुण सुमिरन करै दिन में सौ सौ बार । नगर नायका भत करै जरै कौन की लार ।—कबीर (शब्द॰) । मुहा॰—लार लगाना = फँसाना । बझाना । उ॰—(क) षट दरसन पाखंड न्यावने भरमि परचो संसार । वेद पुरान सब मिलि गावैं कर्म लगायो लार ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) जन्म जन्म के दूत तिरोवन कोनहिं लार लगाए ।—सूर (शब्द॰) ।