विक्षनरी:हिन्दी-हिन्दी/शा
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हिन्दी शब्दसागर |
संकेतावली देखें |
⋙ शांकर (१)
वि० [सं० शाडःकेर] १. शंकर संबंधी। २. शंकराचार्य का। जैसे,—शांकर भाष्य, शांककर व्रत।
⋙ शांकर (२)
संज्ञा पुं० १. वृष। साँड़। २. शंकराचार्य का अनुयायी। ३. आर्द्रा नक्षत्र, जिसके देवता शिव जी माने गए हैं। ४. एक छंद का नाम। ५. सीमलता का भेद।
⋙ शांकरि
संज्ञा पुं० [सं० शाङ्करि] १. शिव के पुत्र, गणेश। २. कार्ति- केय। ३. अग्नि। ४. एक मुनि का नाम। ५. शमी का पेड़।
⋙ शांकरी
संज्ञा स्त्री० [सं० शाङ्करी] शिव द्वारा निर्धारित अक्षरों का क्रम। शिवसूत्र। माहेश्वर सूत्र।
⋙ शांकित
संज्ञा पुं० [सं० शाङ्कत] चोरक नामक गंधद्रव्य।
⋙ शांकुची
संज्ञा स्त्री० [सं० शाङकुची] शकुची मछली।
⋙ शांख (१)
संज्ञा पुं० [सं० शाड्ख] शंख की ध्वनि।
⋙ शांख (२)
वि० शंख संबंधी। शंख का बना हुआ।
⋙ शांखायन
संज्ञा पुं० [सं० शाङ्खायन] एक गृह्य और श्रौत सूत्रकार ऋषि जिनका कौशातकी ब्राह्मण भी है।
⋙ शांखारि
संज्ञा पुं० [सं० शाङ्खारि] शंख बेचनेवाली जाति।
⋙ शांखिक (१)
वि० [सं० शङ्किक] [वि० स्त्री० शांखिकी] १. शंक संबंधी। २. शंख का बना हुआ।
⋙ शांखिक (२)
संज्ञा पुं० १. शंख बनाने और बेचनेवाला। शांखारि। २. शंख बजानेवाला व्यक्ति। ३. एक संकर जाति (को०)।
⋙ शांख्य
वि० [सं० शाङ्ख्य] १. शंख का। शंख संबंधी। २. शंख का बना हुआ।
⋙ शांगुष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं० शाङ्गुष्ठा] गुंफा। दे० 'सांगुष्ठा'।
⋙ शांची
संज्ञा स्त्री० [सं० शाञ्ची] एक प्रकार का शाक।
⋙ शांडदूर्बा
संज्ञा स्त्री० [सं० शाणडदूर्वा] एक प्रकार की दूब। पाक दूर्वा।
⋙ शांडाकी
संज्ञा स्त्री० [सं० शाणडाकी] एक प्रकार का पशु।
⋙ शांडिक
संज्ञा पुं० [सं० शाण्डक] माँद में रहनेवाला साँडा नामक जंतु।
⋙ शांडिली
संज्ञा स्त्री० [सं० शाणिडली] एक ब्राह्मणी जो अग्नि की माता मानकर पूजी जाती थी। (महाभारत)।
⋙ शांडिल्य
संज्ञा पुं० [सं० शाणिडल्य] १. बेल। श्रीफल। २. अग्नि। ३. एक मुनि जिनकी रची एक स्मृति है और जो भक्तिसूत्र के कर्ता माने जाते हैं। ४. शांडिल्य के कुल में उत्पन्न पुरूष। ५. सरयूपारीण ब्राह्मणों के तीन प्रधान गोत्रों में से एक गोत्र। यौ०—शांडिल्य गोत्र = शांडिल्य के कुल में उत्पन्न।
⋙ शांत (१)
वि० [सं० शान्त] १. जिसमें वेग, क्षोभ या क्रिया न हो। ठहरा हुआ। रुका हुआ। बंद। जैसे,—अंधड़ शांत होना, उपद्रव शांत होना, झगड़ा शांत होना। २. (कोई पीड़ा, रोग, मानसिक वेग आदि) जो जारी न हो। बंद। मिटा हुआ। जैसे,—क्रोध शांत होना, पीड़ा शांत होना, ताप शांत होना। ३. जिसमें क्रोध आदि का वेग न रह गया हो। जिसमें जोश न रह गया हो। स्थिर। जैसे,—जब हमने समझाया, तब वे शांत हुए। ४. जिसमें जीवन को चेष्टा न रह गई हो। मृत। मरा हुआ। ५. जो चंचल न हो। धीर। उग्रता या चंचलता से रहिस। सौम्य। गंभीर। जैस,—शांत प्रकृति, शांत आदमी। ६. मौन। चुप। खामोश। ७. जिसने मन और इंद्रियों के वेग को रोका हो। मनोविकारों से रहित। रागादिशून्य। जितेंद्रिय। ८. उत्साह या तत्परतारहित। जिसमें कुछ करने की उमंग न रह गई हो। शिथिल। ढाला। ९. हारा हुआ। थका हुआ। श्रांत। १०. जो दहकता न हो। बुझा हुआ। जैसे,—अग्नि शांत होना। ११. विघ्न-बाधा-रहित। स्थिर। १२. जिसकी घबराहट दूर हो गई हो। जिसका जो ठिकाने हो गया हो। स्वस्यचित्त। १३. जिसपर असर न पड़ा हो। अप्रभावित। १४. निःशब्द। सुनसान। जसे, शांत तपोवन(को०)। १५. पूत। पावत्रोकृत (को०)। १६. शुभ (को०)। १७. (अस्त्र, श्स्त्र, आदि) जिसका प्रभाव नष्ट कर दिया गया हो। प्रभावविहीन किया हुआ (को०)।
⋙ शांत (२)
संज्ञा पुं० १. काव्य के नौ रसों मे से एक रस जिसका स्थायी भाव 'निर्वेद' (काम, क्रोधादि वेगों का शमन) है। विशेष—इस रस में संसार की आनत्यता, दुःखपूर्णता, असारता आदि का ज्ञान अथवा परमात्मा का स्वरूप आलंबन होता है; तपोवन, ऋषि, आश्रम, रमणीय तीर्थादि, साधुओं का सत्सग आदि उद्दीपन, रोमांच आदि अनुभाव तथा निर्वेद, हष, स्मरण, मति, दया आदि संचारी भाव होते हैं। शांत का रस कहने में यह वाधा उपस्थित का जाती है कि यदि सब मनोविकारों का शमन ही शांत रस है, तो विभाव, अनुभाव और संचारी द्वारा उसकी निष्पत्ति कैसे हो सकती है। इसका उत्तर यह दिया जाता है कि शांत दशा में जो सुखादि का अभाव कहा गया, है, वह विषयजन्य सुख का है। योगियों को एक अलौकिक प्रकार का आनंद होता है जिसमें सचारी आदि भावों की स्थिति हो सकता है। नाटक में आठ ही रस माने जाते हैं; शांत रस नहीं माना जाता। कारण यही कि नाटक में आभनय क्रिया ही मुख्य है, अतः उसमें 'शांत' का समावेश (जिसमें क्रिया, मनाविकार आदि की शांति कही जाती है) नहीं हो सकता। पर बाद के विवेचकों ने नाटय में भी शांत रस की स्थिति मान्य ठहराई है।२. इंद्रियनिग्रही। योगी। विरक्त पुरुष। ३. मनु का एक पुत्र। ४. संतोषण। सांत्वन। तुष्टि करना। तोषना। ५. शांति। निस्तबध्ता (को०)।
⋙ शांत (३)
अव्य० बस बस। ऐसा नहीं। छिः छिः। अधिक नहीं आदि अर्थों का सूचक अव्यय [को०]।
⋙ शांतक
वि० [सं० शांतक] तोष करनेवाला। शांत करनेवालाय़ प्रसादक [को०]।
⋙ शांत गुण
वि० [सं० शान्तगुण] मरा हुआ। मृत [को०]।
⋙ शांत चेता
वि० [सं० शांतचेतस्] शांतात्मा। स्तिर मनवाला [को०]।
⋙ शांतता
संज्ञा स्त्री० [सं० शांन्त + ता] १. शांति। शमन। २. खामोशी। नीरवता। ३. रोगादि का अभाव। विराग। ४. हलचल का न होना। उपद्रव आदि का अभाव।
⋙ शांतनव
संज्ञा पुं० [सं० शान्ततव] [स्त्री० शांतनवी] १. राजा शांतनु के पुत्र, भीष्म। २. मेघातिथि का पुत्र।
⋙ शांतनु
संज्ञा पुं० [सं० शांतनु] १. द्वापर युग के इक्कीसवें चंद्रवंशी राजा। विशेष—ये राजा प्रतीप के पुत्र और महाभारत युद्ध के प्रसिद्ध योद्धा भीष्म पितामह के पिता थे। शांतनु के स्त्री गंगादेवी के गर्भ से भीष्म (गांगेय) की उत्पत्त हुई थी। वसुराज नामक धीवर का कन्या सत्यवती के रूप पर मोहित होकर शांतनु ने उसे ब्याहने को इच्छा प्रकट का। वसुराज ने सत्यवती के पुत्र को राज्य देने का प्रतिज्ञा लेकर कन्या ब्याह दी। कन्या के गर्भ से विचित्रवीर्य और चित्रागद। उत्पन्न हुए थे। २. ककड़ी। ३. एक कदन्न (को०)।
⋙ शांता
संज्ञा स्त्री० [सं० शांन्ता] १. अयोध्या के राजा दशरथ को कन्या और महर्षि ऋष्यशृंग की पत्नी। विशेष—दशरथ ने अपने मित्र अंग देश के राजा लोमपाद (रामपाद) को अपनी कन्या शांती पोष्यपुत्रिका के रूप में दी थि। २. रेणुका। ३. दूर्वा। दूब। ४. शमा। छिकुर। ५. अंविला। ६. संगीत में एक श्रुति।
⋙ शांति
संज्ञा स्त्री० [सं० शान्त] १. वेग, क्षाभ या क्रिया का अभाव। किसी प्रकार की गीत, हलचल या उपद्रव का न होना। स्थिरता। २. नीरवता। स्तब्धता। सन्नाटा। ३. चित का ठिकान होना। स्वस्थता। चैन। इतमानान। आराम। ४. राग आदि का दूर होना। मनावेग, पीड़ा, शारीरिक उपद्रव्र या विकार आदि का न रह जाना।—जैसे,—रागशांति, तापशांति, क्रोधशांति। ५. जीवन का चेष्टा का रूक जाना। मृत्यु। मरण। ६. चचलता का अभाव। धारता। गंभीरता। सोभ्यता। ७. रागदि की निवृत्ति। वासनाआ से छुटकारा। तृष्णा का क्षय। विराग। ८. एक गोपी का नाम। ९. दुर्गा। १०. अशुभ या अनिष्ट का निवारण। अमंगल दूर करने का उपचार। जैसे,—ग्रहशांति, पापशांति, मूलशांति। ११. क्षुधातृप्ति। क्षुधानिवृत्ति (को०)। १२. सौभाग्य (को०)। १३. युद्धादि का रूक जाना या न होना (को०)। १४. सांत्वना। ढाढ़स (को०)।
⋙ शांतिक (१)
वि० [सं० शांन्तिक] शांति संबधी। शांति का। शांतिकर।
⋙ शांतिक (२)
संज्ञा पुं० विपत्ति एवं दुष्ट ग्रहों की शांति के लिये किया जानेवाला यज्ञ, पूजन आदि। शांति कर्म।
⋙ शांतिकर
वि० [सं० शांन्तिकर] शांति करनेवाला।
⋙ शांतिकरणिक
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिकरणिक] राजाओं में शांति या संधि करानेवला व्यक्ति।—वर्ण०, पृ० ८।
⋙ शांतिकर्म
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिकर्म] बुरे ग्रह, प्रेतबाधा, पाप आदि द्वारा होनेवाले अमंगल के निवारण का उपचार।
⋙ शांतिकलश
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिकलश] किसी मांगलिक उत्सव या पूजा आदि के समय स्थापित जलपूर्ण घट [को०]।
⋙ शांतिकाम
वि० [सं० शान्तिकाम] शांति का इच्छुक [को०]।
⋙ शांतिकारी
वि० [सं० शान्तिकारिन्] [वि० स्त्री० शातिकारिणी] दे० 'शांतिकर'।
⋙ शांतिकार्य
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शांतिकर्म'।
⋙ शांतिगृह
संज्ञा पुं० [शान्तिगृह] यज्ञ के अंत में पाप तथा अशुभ आदि को शांति के लिये, सान्न करने का स्नानागार।
⋙ शांतिघट
संज्ञा पुं० [ सं० शान्तिघट] दे० 'शांतिकलश'।
⋙ शांतिजल
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिजल] यज्ञ, पूजा आदि में शांतिदायक मंत्रपूत जल, जिससे अभिषेक किया जाता है [को०]।
⋙ शांतिद (१)
वि० [सं० शान्तिद] [वि० स्त्री० शांतिदा] शांति देनेवाला।
⋙ शांतिद (२)
संज्ञा पुं० विष्णु।
⋙ शांतिदाता
वि०, संज्ञा पुं० [सं० शान्तिदातृ] [स्त्री० शांतिदात्री] शांति देनेवाला।
⋙ शांतिदायक
वि, संज्ञा पुं० [सं० शांतिदायक] [स्त्री० शांतिदायिका] शांति देनेवाला।
⋙ शांतिदायी
वि० [सं० शांन्तिदायिन्] [वि० स्त्री० शांतिदायिनी] शांति देनेवाला।
⋙ शांतिनाथ
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिनाथ] जैनों के एक तीर्थकर या अर्हत् का नाम।
⋙ शांतिनिकेतन
संज्ञा पुं० [सं० शान्ति + निकेतन] १. शांतिदायक स्थान। २. पश्चिम बंगाल का बोलपुर स्थान जहाँ विश्वकवि ने अंतर- राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान की स्थापना की थी।
⋙ शांतिपर्व
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिपवत्] महाभारत का बारहवाँ और सबसे बड़ा पर्व जिसमें युद्ध के उपरांत युधिष्ठिर की चित्तशांति के लिये कही हुई बहतु सी कथाएँ, उपदेश और ज्ञानचर्चा है।
⋙ शांतिपात्र
संज्ञा पुं० [सं० शान्तपात्र] वह पात्र जिसमें ग्रह, पाप आदि की शांति के लिये जल रखा जाय।
⋙ शांतिप्रद
वि० [सं० शान्तिप्रद] शांति देनेवाला।
⋙ शांतिप्रिय
वि० [सं० शान्तिप्रिय] शांति का अभिलाषी [को०]।
⋙ शांतिभंग
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिभङ्ग] १. शांति का नाश। शोरगुल २. उपद्रव [को०]।
⋙ शांतिमय
वि० [सं० शान्तिमय] [वि० स्त्री० शांतिमयी] शांति से पूर्ण। शांति से भरा हुआ।
⋙ शांतिमार्ग
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिमार्ग] मोक्ष की ओर ले जानेवाला पथ [को०]।
⋙ शांतिवाचन
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिवाचन] ग्रह, प्रेतबाधा, पाप आदि से होनेवाले अमंगल का दूर करने के लिये मंत्रपाठ।
⋙ शांतिवादी
वि० [सं० शान्ति +वादिन्] विश्व के राष्ट्रों में परस्पर व्यवहार में शांति का मानकर चलनेवाला। उ०—युद्ध के संबंध में हमारा दृष्टकोण सैद्धांतिक दृष्टि से पूँजीवादी, शांतिवादी, अथवा अराजकतावादियों से भिन्न है।—आ० अ० रा, पृ०, २२।
⋙ शांतिसंधि
संज्ञा स्त्री० [सं० शान्ति + सन्धि] परस्पर शांत रहने या संघर्ष न करने का संधि। उ०—शांतिसंधियों और समझौतों में, जिनसे महासमर का अंत होगा। उ०—आ० अ० रा०, पृ० ८।
⋙ शांतिसद्म
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिसद्म] दे० 'शांतिगृह'।
⋙ शांतिहोम
संज्ञा पुं० [सं० शान्तिहोम] अमंगल, पाप, दोषादि के निवारणार्थ किया जानेवाला हवन [को०]।
⋙ शांत्वति
संज्ञा स्त्री० [सं० शान्त्वति] भारंगी। बभनेटी। ब्राह्मण- यष्टिका।
⋙ शांब
संज्ञा पुं० [सं० शाम्ब] १. एक राजा का नाम। २. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम। विशेष दे० 'सांब'।
⋙ शांबर (१)
वि० [सं० शाम्बर] १. शंबर दैत्य संबंधी। २. साँभर मृग का।
⋙ शांबर (२)
संज्ञा पुं० १. लोध्र वृक्ष। लोध। २. एक प्रकार का चंदन (को०)।
⋙ शांबरशिल्प
संज्ञा पुं० [सं० शाम्बर शिल्प] इंद्रजाल। जादू।
⋙ शांबरिक
संज्ञा पुं० [सं० शाम्बारक] जादूगर। मायावी।
⋙ शांबरी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शाम्बरी] १. माया। इंद्रजाल। विशेष—कहते हैं, शंबर दैत्य ने पहले इसका प्रयोग किया था, इसी कारण इसका नाम शांबरी पड़ा। २. जादूगरना। मायावनी।
⋙ शांबरी (२)
संज्ञा पुं० [सं० शाबरिन्] १. एक प्रकार का चंदन। २. लाध्र। लाध। ३. मूसाकानो नाम को लता।
⋙ शांबविक
संज्ञा पुं० [सं० शाम्बविक] शंख का व्यवसाय करनेवाला।
⋙ शांबव्य
संज्ञा पुं० [सं० शाम्बव्य] गृह्यसूत्रों में से एक सूत्र। उ०— शांबव्य सूत्र और आश्वलायन गृह्यसूत्र में भारत एवं महाभारत का उल्लेख हैं।—हिंदु० सं०, पृ० १५३।
⋙ शांबुक
संज्ञा पुं० [सं० शाम्बुक] घाघा।
⋙ शांबूक
संज्ञा पुं० [सं० शाम्बुक] घोघा।
⋙ शांभर (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शाम्भर] राजपूताने की एक झोल जिसमें साँभर नमक होता है। साँभर झील।
⋙ शांभर (२)
संज्ञा पुं० साँभर नमक।
⋙ शांभव (१)
वि० [सं० शाम्भब] शंभु संबंधी। शिव का।
⋙ शांभव (१)
संज्ञा पुं० १. देवदार वृक्ष। २. कपूर। ३. शिवमल्लिका का पौधा। वसु। ४. गुगल। गुग्गुल।
⋙ शांभवी
संज्ञा स्त्री० [सं० शाम्भवी] १. नीला दूब। २. दूर्गा। ३. ब्रह्मरंध्र (को०)। ४. तंत्र के अनुसार एक प्रकार को मुद्रा- जिसमें नेत्र अपलक खुले रहते हैं किंतु बाहय विषयों के ज्ञान से वे शून्य होते हैं [को०]।
⋙ शांभवीय
वि० [सं० शाम्भवीय] शिव से संबंधीत [को०]।
⋙ शाइर
संज्ञा पुं० [अ०] [स्त्री० शाइरा] दे० 'शायर'। उ०—कई तो शाइर जो शेर और गजल बनाते हैं।—प्रेमघन०, भा० २, पृ० ८७।
⋙ शाइरी
संज्ञा स्त्री० [अ०] दे० 'शायरी'।
⋙ शाइस्तगी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. शिष्टता। सभ्यता। तहजीब। २. भलमनसी। आदमीयत। मनुष्यत्व। ३. योग्यता। पात्रता (को०)। ४. संस्कृति। संस्कार (को०)।
⋙ शाइस्ता
वि० [फ़ा० शाइस्तह्] १. शिष्ट। सभ्य। तहजीबवाला। २. विनीत। नम्र। ३. जो अच्छी चाल सीखा हो। अदब कायदा जाननेवाला। शिक्षित। जैसे,—शाइस्ता घोड़ा। ४. उत्तम। श्रेष्ठ (को०)। ५. योग्य। काबिल। पात्र।
⋙ शाकंट
संज्ञा पुं० [सं० शाकणट] बथुआ नाम का साग।
⋙ शाकंभरी
संज्ञा स्त्री० [सं० शाकम्भरी] १. दुर्गा। २. साँभर नामक प्रदेश या नगर।
⋙ शाकंभरीय (१)
वि० [सं० शाकम्भरीय] साँभर झील से उत्पन्न।
⋙ शाकंभरीय (२)
संज्ञा पुं० साँभर नमक।
⋙ शाक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. पत्ती, फूल, फल आदि जो पकाकर खाए जायँ। भाजी। तरकारी। साग। विशेष—शाक छहु प्रकार का कहा गया है—(१) पत्रशाक- चौलाई, बथुआ, मेथी आदि; (२) पुष्पशाक—केले का फूल, अगस्त का फूल आदि; (३) फलशाक—बैगन, करेला आदि; (४) नालशाक—करेमू आदि; (५) कंदशाक—जमींकंद, कच्चू आदि; (६) संस्वेदज शाक—ढिंगरी, भुइँफोड़, गोबर- छत्ता आदि। ये शाक अनुक्रम से एक दूसरे से भारी होते हैं। सब प्रकार के पत्रशाक विष्टंभकारक, भारी, रूखे, मलकारक, अधोगत, वातकारी तथा शरीर, हड्डी, नेत्र, रूधिर, वीर्य, बुद्धि, स्मरणशक्ति और गति शक्ति का नाश करनेवाले तथा समय से पहले बालों को सफेद करनेवाले कहे गए हैं। परंतु जीवंती, बधुआ और चौलाई हानिकारक नहीं हैं। २. सागौन का पेड़। ३. भोजपत्र। भूर्ज वृक्ष। ४. सिरिस का पेड़। ५. पुराणानुसार सात द्वीपों में से एक द्वीप। विशेष दे० 'शाकद्वीप'। ६. एक प्राचीन जाती। विशेष दे० 'शक' (को०)। ७. शक राजा शालिवाहन का संवत्। ८. शक्ति। बल। ताकत।
⋙ शाक (२)
वि० [सं०] १. शक जाति संबंधी। २. शक राजा का। जैसे,—शाक संवत्।
⋙ शाक (३)
वि० [अ० शाक] १. भारी। दूभर। कठिन। मुहा०—शाक गुजरना = कष्टकर होना। खलना। २. दुःख देनेवाला। कडा़। (काम)।
⋙ शाककलंबक
संज्ञा पुं० [सं० शाककलम्बक] १. प्याज। २. लहसुन।
⋙ शाकचुक्रिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अमलोनी का साग। नोनिया। २. इमली।
⋙ शाकट (१)
वि० [सं०] १. शकट या गाड़ी संबंधी। गाड़ी का। २. गाड़ी में लदा हुआ या जाता हुआ (को०)।
⋙ शाकट (२)
संज्ञा पुं० १. गाड़ी का बैल या जानवर। २. गाड़ी का बोझ। ३. लिसोड़ा। लगेरा। ४. धव वृक्ष। ५. खेत। क्षेत्र। जैसे,—शाकशाकट।
⋙ शाकटपोतिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] पोई या पोय का पौधा।
⋙ शाकटायन
संज्ञा पुं० [सं०] १. शकट का पुत्र। २. एक बहुत प्राचीन वैयाकरण जिनका उल्लेख पाणिनि एवं निरुककार यास्क ने किया है। ३. एक दूसरे अर्वाचीन वैयाकरण जिनके व्याकरण का प्रचार जैनों में है।
⋙ शाकटिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. गाड़ीवाला। २. गाड़ीवान।
⋙ शाकटिक (२)
वि० [ वि० स्त्री० शाकटिकी] दे० 'शाकट (१)' [को०]।
⋙ शाकटीन
संज्ञा पुं० [सं०] १. गाड़ी का बोझ। २. प्राचीन काल की एक तौल जो बीस तुला या दो सहस्र पल की होती थी।
⋙ शाकतरू
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शाकद्रुम' [को०]।
⋙ शाकदीक्षा
संज्ञा स्त्री० [सं०] केवल शाक के आधार पर रहना।
⋙ शाकद्रुम
संज्ञा पुं० [सं०] १. वरुण वृक्ष। २. सागौन का पेड़।
⋙ शाकद्वीप
सज्ञा पुं० [सं०] १. पुराणानुसार सात द्वीपों में से एक द्वीप। विशेष—इसमें एक बहुत बड़ा शाक या सागौन का पेड़ माना गया है और यह चारों ओर क्षीरसमुद्र से घिरा हुआ कहा गया है। कहते हैं, इसमें ऋतुव्रत, सत्यव्रत, दानव्रत और अनुव्रत बसते हैं। २. ईरान और तुर्किस्तान के बीच में पड़नेवाले उस प्रदेश का नाम जिसमें होकर वंक्षु नद या आक्सस नदी बहती है। इस प्रदेश में आर्य और शक जातियाँ बसती थीं।
⋙ शाकद्वीपीय (१)
वि० [सं०] शाकद्वीप का रहनेवाला।
⋙ शाकद्वीपीय (२)
संज्ञा पुं० ब्राह्मणों का एक भेद। मग ब्राह्मण। विशेष—शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के जंबूद्वीप में आने की कता हरिवंश में इस प्रकार मिलती है—एक बार कृष्ण के पुत्र सांब ने सूर्य का मंदिर जनवाया और सौर यज्ञ करना चाहा। जब उन्हें यह मालूम हुआ कि सूर्य की उपासनाविधि के अच्छे जाननेवाले शाकद्वीप में मिलेंगे, तब उन्होंने वहाँ से कुछ ब्राह्मण बुलवाए। यह उस समय की बात है जब भारत और ईरान में एक ही आर्य सभ्यता प्रचलित थी और एक देश के ऋत्विज दूसरे देश में जाकर बराबर यज्ञ कराया करते थे। फारस में यज्ञ करनेवाले पुरोहित 'मग' कहलाते थे, इसी से इस शाकद्वीपीय ब्रह्मणों को 'मग ब्राह्मण' भी कहते थे।
⋙ शाकरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक मुट्ठी का परिमाण। २. एक मुट्ठी शाक या सब्जी [को०]।
⋙ शाकपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] सहिजन। शोभांजन वृक्ष।
⋙ शाकपार्थिव
संज्ञा पुं० [सं०] संवत् चलाने का इच्छुक एक राजा।
⋙ शाकपूणि, शाकपूर्णि
संज्ञा पुं० [सं०] वेद का भाष्य करनेवाले एक प्राचीन ऋषि।
⋙ शाकवालेय
संज्ञा पुं० [सं०] ब्रह्मयष्टि। भारंगी [को०]।
⋙ शाकबिल्व, शाकबिल्वक
संज्ञा पुं० [सं०] बैगन। भंटा। भाँटा।
⋙ शाकभक्ष
वि० [सं०] मांस न खानेवाला। शाकाहारी।
⋙ शाकयोग्य
संज्ञा स्त्री० [सं०] धनिया। धान्याक।
⋙ शाकराज
संज्ञा पुं० [सं०] बथुआ। वास्तुक साग। विशेष—निर्दोष होने के कारण बथुआ शाकों का राजा कहा गया है।
⋙ शाकरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शाकारी'।
⋙ शाकल (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शाकली] १. शाकल नामक द्रव्य से रँगा हुआ। २. खंड या अंश संबंधी।
⋙ शाकल (२)
संज्ञा पुं० १. खंड। टुकड़ा। चिप्पड़। २. एक प्रकार का साँप। ३. ऋग्वेद की एक शाखा या संहिता। ४. लकड़ी का बना हुआ तावीज। ५. मद्र देश का एक नगर। ६. पातंजलि महाभाष्य के अनुसार वाहीक्र (पंजाब) देश का एक ग्राम। ७. उक्त ग्राम या नगर का निवासी। ८. एक प्रकार का पीताभ चंदन (को०)। ९. हवन की सामग्री जिसमें जौ, तिल, घी, मधु, आदि का मेल रहता है।
⋙ शाकल पातिशाख्य
संज्ञा पुं० [सं०] ऋग्वेद का एक प्रातिशाख्य।
⋙ शाकल शाखा
संज्ञा स्त्री० [सं०] ऋग्वेद की वह शाखा या संहिता जो शाकल्य ऋषि के गोत्रजों में चली। विशेष—आजकल ऋग्वेद की यही शाखा मिलती और प्रचलीत है।
⋙ शाकलहोम
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का हवन [को०]।
⋙ शाकलि
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शाकली'।
⋙ शाकलिक
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शाकलिकी] १. टुकड़ा या खंड़ संबंधी। अश संबंधी। २. शाकल से संबंध रखनेवाला [को०]।
⋙ शाकली
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली।
⋙ शाकल्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक बहुत प्राचीन ऋषि जो ऋग्वेद की एक शाखा के प्रचारक थे और जिन्होंने पहले पहले उसका पदपाठ ठीक किया था।
⋙ शाकवर
संज्ञा पुं० [सं०] जीवशाक।
⋙ शाकवरा
संज्ञा पुं० [सं०] जीवंती या डोडी नामक लता।
⋙ शाकवल्ली
संज्ञा स्त्री० [सं०] लताकरंज। सागर। गोटा।
⋙ शाकवालेय
संज्ञा पुं० [सं०] बभनेटी। भारंगी। ब्राह्मणयष्टिका।
⋙ शाकवाट, शाकवाटक
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० शाकवाटी, शाकवाटिका] साग सब्जी आदि के लगाने का घेरा हुआ क्षेत्र [को०]।
⋙ शाकविंदक
संज्ञा पुं० [सं० शाकविन्दक] बेल का पेड़।
⋙ शाकवीर
संज्ञा पुं० [सं०] १. बथुआ। वास्तूक शाक। २. पूनर्नवा। गदहपूरना। ३. जीवशाक।
⋙ शाकवृक्ष
संज्ञा पुं० सागौत। शाकद्रुम [को०]।
⋙ शाकशाकट, शाकशाकिन
संज्ञा पुं० [सं०] शाकसब्जी का खेत। शाकवाट [को०]।
⋙ शाकशाल
संज्ञा पुं० [सं०] बकायन। महानिंब वृक्ष।
⋙ शाकश्रेष्ठ
संज्ञा पुं० [सं०] बथुआ। वास्तूक शाक।
⋙ शाकश्रेष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. जीवंती। डाडी शाक। २. डोडी। ३. भंटा। बैगन। ४. पेठा। भतुआ। ५. तरबूज।
⋙ शाकांग
संज्ञा पुं० [सं० शाकाङ्ग] गोल मिर्च। काली मिर्च।
⋙ शाका (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] हरीतकी। हड़। हरें।
⋙ शाका (२)
संज्ञा पुं० [सं० शाक (=शक संबंधी)] शक संवत्। उ०— जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण उनका शाका और संवत् है।—प्रेमघन०, भा० २, पृ० २२६।
⋙ शाकाख्य
संज्ञा पुं० [सं०] सागौन का पेड़।
⋙ शाकाम्ल
संज्ञा पुं० [सं०] १. महादा। वृक्षाम्ल। २. इमली।
⋙ शाकाम्लभेद, शाकाम्लभेदक
संज्ञा पुं० [सं०] चुक। चुक।
⋙ शाकारी
संज्ञा स्त्री० [सं०] शकों अथवा शकारों की भाषा, जो प्राकृत का एक भेद है। इसका प्रयोग मृच्छकटिक में द्रष्टव्य है।
⋙ शाकाष्टका
संज्ञा स्त्री० [सं०] फाल्गुन कृष्ण पक्ष की अष्टमी। विशेष—इस दिन पितरों के उद्देश्य से शाक दान किया जाता है।
⋙ शाकाष्टमी
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शाकाष्टका'।
⋙ शाकाशन
संज्ञा पुं० [सं०] 'शाकाहार'।
⋙ शाकाहार
संज्ञा पुं० [सं०] अनाज अथवा, फल, फूल, पत्ते आदि का भोजन। मांसाहार का उलटा।
⋙ शाकाहारी
वि० [सं० शाकाहारिन्] [वि० स्त्री० शाकाहरिणी] केवल अनाज या साग भाजी खानेवाला। मांस न खानेवाला।
⋙ शाकिन
संज्ञा पुं० [सं०] खेत। बाडी। जैसे, शाकशाकिन = साग का खेत।
⋙ शाकिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. वह भूमि जिसमें शाक बोया हुआ हो। साग की क्यारी। २. एक पिशाची या देवी जो दुर्गा के गणों में समझी जाती है। डाइन। चुड़ैल।
⋙ शाकिर
वि० [अ०] १. कृतज्ञता प्रकाशित करनेवाला। शुक्रगुजार। २. संतोष रखनेवाला।
⋙ शाकी
वि० [अ०] १. शिकायत करनेवाला। २. नालिश करनेवाला। ३. चुगली खानेवाला।
⋙ शाकुंतल
वि० संज्ञा पुं० [सं० शाकुन्तल] दे० 'शाकुंतलेय'। जैसे, अभि- ज्ञान शाकुंतल।
⋙ शाकुंतलेय (१)
संज्ञा पुं० [सं० शाकुन्तलेय] १. शकुंतला का पुत्र, भरत। २. कालिदासविरचित एक नाटक का नाम।
⋙ शाकुंतलेय (२)
वि० शकुंलता संबंधी। शकुंतला का।
⋙ शाकुंतिक
संज्ञा पुं० [सं० शाकुन्तिक] चिड़ीमार। बहेलिया।
⋙ शाकुण
वि० [सं०] [स्त्री० शाकुणी] १. अनुतापयुक्त। अनुतप्त। २. दूसरे को पीड़ित करने या ताप देनेवाला। परोपतापी। परतापक [को०]।
⋙ शाकुन (१)
वि० [सं०] १. पक्षी संबंधी। चिड़ियों का। २. शुभाशुभ लक्षण संबंधी। सगुनवाला।
⋙ शाकुन (२)
संज्ञा पुं० १. चिड़िया पकड़नेवाला। बहेलिया। २. यात्रा आदि में कुछ विशेष पक्षियों, जंतुओं या और पदार्थों के मिलने से शुभाशुभ का निर्णय। शकुन। सगुन। ३. शुभाशुभ निर्णय या सगुन विचार करनेवाला शकुनज्ञ (को०)।
⋙ शाकुनि
संज्ञा पुं० [सं०] बहेलिया।
⋙ शाकुनी
संज्ञा पुं० [सं० शाकुनिन्] १. मछवाहा। मछली पकड़नेवाला। २. एक प्रकार का प्रेत। ३. सगुन विचारनेवाला।
⋙ शाकुनेय (१)
वि० [सं०] पक्षी संबंधी।
⋙ शाकुनेय (२)
संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का छोटा उल्लू। २. बकासुर नामक दैत्य। ३. एक मुनि का नाम।
⋙ शाकुस
वि० संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शाकुलिक' [को०]।
⋙ शाकुलिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. मछवाहा। ५. मछलियों का समूह।
⋙ शाकुलिक (२)
वि० मछली संबंधी। मछली का [को०]।
⋙ शाकेंद्र
संज्ञा पुं० [सं० शाकेन्द्र] शाकाप्रवर्तक। दे० 'शाकेश्वर' [को०]।
⋙ शाकेक्षु
संज्ञा पुं० [सं०] ईख का एक भेद।
⋙ शाकेश्वर
संज्ञा पुं० [सं०] वह राजा जिसके नाम से संवत् चले। जैसे,—युधिष्ठिर, विक्रमादित्य, शालिवाहन।
⋙ शाकोल
संज्ञा पु० [सं०] एक प्रकार की लता।
⋙ शाक्कर
संज्ञा पुं० [सं०] बैल। वृष। दे० 'शाक्वर'।
⋙ शाक्की
संज्ञा स्त्री० [सं०] पाँच विभाषाएँ।
⋙ शाक्त (१)
वि० [सं०] १. प्रभाव, प्रताप या शक्ति संबंधी। २. दैविक शक्ति (देवी) संबंधी।
⋙ शाक्त (२)
संज्ञा पुं० शक्ति का उपासक। तंत्रपद्धति से देवी की पूजा करनेवाला। विशेष—शाक्तों के पूजन का विधान वैदिक पूजनविधि से भिन्न होता है। ये ईश्वर को शक्ति का शिव की पत्नी दुर्गा के रूप में उपासना करते हैं। यह उपासनापद्धति दो प्रकार की है— दक्षिणाचार। और वामाचार। वामाचारियों या वाममार्गियों की पूजा में मद्य, मांस, स्त्री आदि पंचमकार का व्यवहार होता है। स्त्रियों की जननेंद्रिय को शक्ति का प्रतीक मानकर ये लोग उसकी विशेष रीति से पूजा करते हैं।
⋙ शाक्तमत
संज्ञा पुं० [सं०] शक्ति के उपासकों का मत या सिद्धांत। विशेष दे० 'शाक्त'।
⋙ शाक्तागम
संज्ञा पुं० [सं०] तंत्रशास्त्र।
⋙ शाक्तिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. शक्ति का उपासक। शाक्त। २. शक्ति नाम का अस्त्र या भाला बाँधनेवाला।
⋙ शाक्तीक (१)
वि० [सं०] शक्ति या भाला संबंधी।
⋙ शाक्तीक (२)
संज्ञा पुं० भाला चलानेवाला।
⋙ शाक्तेय, शाक्त्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. शक्ति का उपासक। २. पराशर ऋषि का एक नाम (को०)।
⋙ शाक्य
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन क्षत्रिय जाति जो नेपाल की तराई में बसती थी और जिसमें गौतम बुद्घ उत्पन्न हुए थे। विशेष—बौद्ध ग्रंथों में शाक्य इक्ष्वाकुवंशी कहे गए हैं। जिस स्थान में वे रहते थे, उसमें 'शाक' या सागौन के पेड़ अधिक थे; इसी से उसका 'शाक्य' नाम पड़ा। विद्वानों का अनुमान है कि लिच्छवियों के समान शाक्य भी व्रात्य क्षत्रिय थे। २. बुद्ध का एक नाम (को०)। ३. शाक्यनरेश शुद्धोदन जो बुद्ध के पिता थे (को०)। ४. बौद्ध भिक्षु (को०)। यौ०—शाक्यकेतु = बुद्ध। शाक्यपुंगव = दे० 'शाक्यमुनि'। शाक्य- पुत्रीय = बौद्ध यति। शाक्यभिक्षु, शाक्यभिक्षुक = बौद्ध मता- नुयायी संन्यासी। शक्यमुनि। शाक्यसिंह। शाक्यशासन = बुद्ध का उपदेश।
⋙ शाक्य मुनि, शाक्य सिंह
संज्ञा पुं० [सं०] गौतम बुद्ध।
⋙ शाक्र१
संज्ञा पुं० [सं०] १. ज्येष्ठा नक्षत्र जिसके अधिपति इंद्र हैं। २. इंद्र के निमित्त अर्पित हवि आदि (को०)।
⋙ शाक्र (२)
वि० शक्र संबंधी। इंद्र संबंधी। शक्र का [को०]।
⋙ शाक्री
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दुर्गा। २. इंद्राणी। शक्रपत्नी। शची।
⋙ शाक्वर (१)
वि० [सं०] शक्तिशाली। पराक्रमी। बलवान्।
⋙ शाक्वर (२)
संज्ञा पुं० १. इंद्र। २. इंद्र का वज्र। ३. साँड़। बैल। ४. प्राचीन काल की एक रीति या संस्कार।
⋙ शाख (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. कृत्तिका का पुत्र। कार्तिकेय। २. भाग। ३. करंज।
⋙ शाख (२)
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० शख] १. टहनी। डाल। डाली। मुहा०—शाख लगाना = (१) कलम लगाना। टहनी लगाना। (२) सिंगी लगाना। (३) पद बढ़ाना। संमान करना। शाख लगना = घमंड होना। इतराना। शाख निकालना = दोष देना। कलंक लगाना। नुक्ताचीनी करना। झगड़ा खड़ा करना। शाख निकालना = ऐब निकालना। झगड़ा निकालना। बखेड़ा निकालना। २. सींग। ३. लगा हुआ टुकड़ा। खंड। फाँक। ४. कमान की लकड़ी (को०)। ५. एक पकवान (को०)। ६. वंश। कुल- परंपरा। ७. नदी आदि की बड़ी धारा में से निकली हुई छोटी धारा।
⋙ शाखचा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाखचह्] छोटी शाखा। टहनी। डाली। कौंचा [को०]। यौ०—शाखचाबंदी = (१) लांछन लगाना। दोषारोपण। २. पेड़ की कलम लगाना।
⋙ शाखदार (१)
वि० [फ़ा० शाखदार] १. जिसमें बहुत सी शाखाएँ हों। टहनीदार। २. सींगवाला। सींगदार।
⋙ शाखदार (२)
संज्ञा पुं० वह व्यक्ति जो स्त्री की कमाई खाय [को०]।
⋙ शाखशाना
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाखशानह्] १. बाधा। अड़चन। पख। २. बात में बात। बात का ढंग। ३. बहस मूबाहिसा। ४. एक प्रकार के फकीर जो अपने को घायल कर देने की धमकी देकर भीख माँगते हैं [को०]।
⋙ शाखा (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. पेड़ के धड़ से चारों ओर निकली हुई लकड़ी या छड़। टहनी। डाल। २. शरीर का अवयव। हाथ और पैर। ३. उँगली। ४. चौखट। बृहत्०, पृ० २८१। ५. घर का पाख। ६. किसी मूल वस्तु से निकली हुए उसके भेद। प्रकार। ७. विभाग। हिस्सा। ८. अंग। अवयव। ९. किसी शास्त्र या विद् या के अंतर्गत उसका कोई भेद। १०. वेद की संहिताओं के पाठ और क्रमभेद जो कई ऋषियों ने अपने गोत्र या शिष्यपरंपरा में चलाए। विशेष—शौनक ने अपने 'चरणव्यूह' में वेदों की जो शाखाएँ गिनाई हैं, उसके अनुसार ऋग्वेद की पाँच शाखाएँ हैं— शाकल्य, वाष्कल, आश्र्वलायन, शांखायन और मांडूक्य। वायु- पुराण में यजुर्वेद की ८६ शाखाएँ कही गई हैं जिनमें ४३ के नाम चरणव्यूह में आए हैं। इन ४३ में माध्यंदिन और कणव को लेकर ३७ शाखाएँ वाजसनेयी के अंतर्गत हैं। सामवेद की सहस्त्र शाखाएँ कही जाती हैं जिनमें १५ गिनाई गई हैं। इसी प्रकार अथर्ववेद की भी बहुत सी शाखाओं में से पिप्पलादा- शौनकीया आदि केवल नौ गिनाई गई हैं। ११. संप्रदाय। पंथ (को०)। १२. ग्रंथ का परिच्छेद। अध्याय (को०)। १३. पक्षांतर। प्रतिपक्ष (को०)। १४. भुजा। बाहु। हस्त (को०)।
⋙ शाखा (२)
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाखहू] अपराधी को दंड देने का काष्ठ का एक यंत्र [को०]।
⋙ शाखाकंट
संज्ञा पुं० [सं० शाखाकण्ट] थूहर। स्नुही वृक्ष।
⋙ शाखाचंक्रमण
संज्ञा पुं० [सं० शाखाचङ्क्रमण] १. एक डाल पर से दूसरी डाल पर कूद जाना। २. एक विषय अधूरा छोड़कर दूसरा विषय हाथ में लेना। एक विषय पर स्थिर न रहना। ३. कोई विषय पूरा अध्ययन न करके थोड़ा यह, थोड़ा वह पढ़ना।
⋙ शाखाचंद्र न्याय
संज्ञा पुं० [सं० शाखाचन्द्रन्याय] एक न्याय या कहा- वत जो ऐसी बात के संबंध में कही जाती है जो केवल देखने में जान पड़ती है, वास्तव में नहीं होती। विशेष—चंद्रमा कभी कभी देखने में ऐसा जान पड़ता है मानों पेड़ की डाल पर है। इसी से इस कहावत या न्याय की रचना हुई है।
⋙ शाखादंड
संज्ञा पुं० [सं० शाखादण्ड] दे० 'शाखारंड'।
⋙ शाखाद
संज्ञा पुं० [सं०] पेड़ों की डाल या टहनी खानेवाले पशु। जैसे—गौ, बकरी, हाथी।
⋙ शाखानगर, शाखानगरक
संज्ञा पुं० [सं०] बड़े नगर का वसातिस्थान या मुहल्ला। उपनगर। उ०—शाखानगर शृंगाटक आक्री- डंते।—कीर्ति, पृ० २८।
⋙ शाखापित्त
संज्ञा पुं० [सं०] एक रोग जिसमें हाथ और पैर में जलन और सूजन होती है।
⋙ शाखापुर
संज्ञा पु० [सं०] [संज्ञा स्त्री० शाखापुरी] किसी नगर के आसपास फैली हुई बस्ती।
⋙ शाखाप्रकृति
संज्ञा स्त्री० [सं०] मनु के अनुसार अपने राज्य के कुछ दूर पर के आठ प्रकार के राजा जिनका विचार किसी राजा को युद्ध के समय रखना चाहिए।
⋙ शाखाबा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाखाबहू] खाड़ी [को०]।
⋙ शाखाबाहु
संज्ञा पुं० [सं०] १. शाखा के समान बोहु या भुजा। २. वह जिसकी भुजा शाखा के समान हो।
⋙ शाखाभृत्
संज्ञा पुं० [सं०] वृक्ष। शाखो [को०]।
⋙ शाखामृग
संज्ञा पुं० [सं०] १. बानर। बंदर। २. गिलहरी।
⋙ शाखाम्ल
संज्ञा पुं० [सं०] जलबेंत।
⋙ शाखाम्ला
संज्ञा स्त्री० [सं०] इमली।
⋙ शाखायन
संज्ञा पुं० [सं०] ऋग्वेद के एक ब्राह्मण ग्रंथ का नाम। उ०—ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण के पहले पाँच भाग और कौषीतकि या शाखायन ब्राह्मण बने—हिंदु० स०, पृ० ७६।
⋙ शाखारंड
संज्ञा पुं० [सं० शाखारण्ड] वह ब्राह्मण जो अपनी शाखा को छोड़कर दूसरो शाखा का अध्ययन करे। शाखादंड।
⋙ शाखारथ्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] छोटी गली या सड़क जो बड़ी सड़क से मिलती हो [को०]।
⋙ शाखाल
संज्ञा पुं० [सं०] जलबेंत।
⋙ शाखावात
संज्ञा [सं०] हाथ पैर में होनेवाला वातरोग।
⋙ शाखाशिफा
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह डाल जो नीचे की ओर बढ़कर जड़ पकड़ ले और एक अलग पेड़ के धड़ के रूप में हो जाय। जैसे—बट की जटा या बरोह।
⋙ शाखिमूल
संज्ञा पुं० [सं०] रंधि वृक्ष।
⋙ शाखी (१)
वि० [सं० शाखिन्] शाखाओं से युक्त। शाखावाला।
⋙ शाखी (२)
संज्ञा पुं० १. पेड़। वृक्ष। २. वेद। ३. वेद को किसी शाखा का अनुयायी। ४. पीलु का पेड़। ५. तुर्किस्तान का निवासी।
⋙ शाखुल
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाखुल] अरहर नाम से प्रसिद्ध द्विदल अन्न [को०]।
⋙ शाखोच्चार
संज्ञा पुं० [सं०] विवाह के समय वंशावली का कथन।
⋙ शाखोट, शाखोटक
संज्ञा पुं० [सं०] सिहोर का पेड़। पीत वृक्ष। विशेष—वेद्यक में यह कड़ुआ, गरम पित्तकारक और वातहारी माना गया है।
⋙ शाख्य
वि० [सं०] १. शाखा के समान। शाखा तुल्य। २. शाखा संबंधी [को०]।
⋙ शागर पु †
संज्ञा पुं० [सं० सागर] सागर। उ०—रुकुमिनिहरन सुने जो हृदै विचारइ। आप तरै भव शागर कुल निस्तारइ।— अकबरी०, पृ० १५०।
⋙ शागिर्द
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. किसी से विद्या प्राप्त करने का संबंध रखनेवाला। विद्यार्थी। २. शिष्य। चेला। मुहा०—शागिर्द करना = किसी को कुछ सिखाने का काम अपने ऊपर लेना। चेला बनाना।
⋙ शागिर्दपेशा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शागिर्दपेशह्] १. मातहत। उ०— विशेषतः अंगरेजों के शागिर्दपेशे लोग।—प्रेमघन०, भा० १, पृ० ३८३। २. अहलकार। कर्मचारी। ३. खिदपतगार। सेवक। ४. शागिर्द। विद्यार्थी। ५. बड़ी काठी के पास नौकरों के लिये अलग बने हुए घर।
⋙ शागिर्दाना
वि० [फ़ा० शागिर्दानह्] १. शिष्योचित। २. शागिर्द होने के एवज में गुरु को दिया जानेवाला (द्रव्य)।
⋙ शागिर्दी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. शिक्षा प्राप्त करने के निमित्त किसी गुरु के अधीन रहने का भाव। शिष्यता। २. सेवा। टहल।
⋙ शाचि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] दलकर भूसी निकाला हुआ जौ।
⋙ शाचि (२)
वि० १. प्रसिद्ध। विख्यात। विश्रुत। २. प्रतापी। शक्तिशाली [को०]।
⋙ शाट
संज्ञा पुं० [सं०] १. कपड़े का टुकड़ा। २. वह कपड़ा जो कमर में लपेटकर पहना जा सके। धोती। परदनी। ३. एक प्रकार की कुरती। ४. ढीलाढाला पहनावा।
⋙ शाटक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वस्त्र। पट। २. दे० 'शाट'।
⋙ शाटिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. साड़ी। धोती। २. कचुर।
⋙ शाटी
संज्ञा स्त्री० [सं०] साड़ी। धोती।
⋙ शटचायन
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्राचीन ऋषि का नाम। २. एक प्रकार का कृत्य जिसे यज्ञकार्य में हुए दोषों की निवृत्ति के निमित्त करने का विधान है (को०)।
⋙ शाट्चायनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक उपनिषद् का नाम।
⋙ शाठ्च
संज्ञा पुं० [सं०] १. शठता। दुष्टता। बदमाशी। २. कपट। दंभ। छल।
⋙ शाड्वल
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शाद्वल'।
⋙ शाण (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. हथियारों की धार तेज करने का पत्थर। सान। उ०—कृश होकर भी अंग वीर के सुगठित शाण चढ़े से थे। —साकेत, पृ० ३७२। २. कसौटी। कषपाट्टका। ३. चार माशे की एक तोल। ४. आरा। करपत्र (को०)।
⋙ शाण (२)
वि० [सं०] १. सन के पौधे से संबंध रखनेवाला। २. सन का बना हुआ।
⋙ शाण (३)
संज्ञा पुं० १. सन के रेशे का बना हुआ कपड़ा। भँगरा। २. मोटा कपड़ा (को०)।
⋙ शाणक
संज्ञा पुं०[सं०] पटसन का बना कपड़ा। भँगरा [को०]।
⋙ शाणवास
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो सन का बना हुआ वस्त्र पहने। २. एक मुर्तहू का नाम।
⋙ शाणाजीव
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो शस्त्रों पर सान देने का काम करके जीविकार्जन करता हो। हथियार की सफाई का काम करनवाला व्यक्ति [को०]।
⋙ शाणाश्मा
संज्ञा पुं० [सं० शाणाश्मन्] सान चढ़ाने का पत्थर [को०]।
⋙ शाणि
संज्ञा पुं० [सं०] पटुआ।
⋙ शाणित
वि० [सं०] १. सान रखा हुआ। तीखा या तेज किया हुआ। २. कसौटी पर कसा हुआ।
⋙ शाणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सन के रेशों से बुना हुआ कपड़ा। भँगरा। २. फटा हुआ वस्त्र। चीथड़ा। ३. वह छोटा कपड़ा जो यज्ञोपवीत के समय ब्रह्मचारी को पहनने के लिये दिया जाता है। ४. सान। ५. कसौटी। ६. छोटा खेमा या पर्दा। ७. चार माशे की तौल (को०)। ८. आरा (को०)। ९. हाथ या आँख आदि से संकेत करना (को०)।
⋙ शाणीर
संज्ञा पुं० [सं०] शोण (सोन) नदी का किनारा या उसका भूभाग [को०]।
⋙ शाणोपल
संज्ञा पुं० [सं०] १. सान चढ़ाने का प्रस्तर। २. कसौटी [को०]।
⋙ शात (१)
वि० [सं०] १. सान रखा हुआ। तेज किया हुआ। २. दुबला पतला। क्षीण। कृश। जैसे,—शातोदरी = कृशोदरी। ३. दुर्बल। कमजोर (को०)। ४. सुंदर। मनोहर (को०)। ५. प्रसन्न। प्रफुल्ल (को०)। ६. गिरा हुआ। पतित (को०)। ७. दीप्तिशाली। चमकदार (को०)।
⋙ शात (२)
संज्ञा पुं० १. धतूरा। २. खुशी। आनंद। प्रसन्नता (को०)।
⋙ शातकर्णि
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक ऋषि। २. सातवाहन राजाओं का एक नाम। उ०—सातवाहनों ने अपने अभिलेखों में अपने को 'सातवाहन' अथवा 'शातकर्णि' कहा है।—आदि०, पृ० २८६।
⋙ शातकुंभ
संज्ञा पुं० [सं० शातकुम्भ] १. कचनार का वृक्ष। २. कनक। धतूरा। ३. कनेर का वृक्ष। ४. सोना। स्वर्ण।
⋙ शातकौंभ (१)
संज्ञा पुं० [सं० शातकौम्भ] सोना। सुवर्ण।
⋙ शातकौंभ (३)
सं० स्वर्णनिर्मित। सोने का बना हुआ [को०]।
⋙ शातक्रतव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्रधनुष।२. इंद्र। वह जिसमे शतक्रतु पद प्राप्त किया हो। उ०—मधुरतर से मधुरतम होती हुई, रूप से गुण, पुष्प से मधु की तरह, साथ, शातक्रतव के पाथेय का।—आराधना, पृ० ९१।
⋙ शातक्रतव (२)
वि० देवराज इंद्र का या इंद्र संबंधो। इंद्र से सबध रखनेवाला [को०]।
⋙ शातन
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० शातनीय, शातित] १. सान पर धार तेज करना। चोखा करना। २. कटवाना। (पेड़ आदि)। ३. नष्ट करना। काट गिराना। जैसे,—पक्षशातन। ४. काटना। तराशना। छीलना। ५. क्षीण या लघु होना (को०)। ६. विच्छेद। विलगाव। झड़ना (को०)। ७. सतह बराबर करना। रंदना।
⋙ शातपत्रक
संज्ञा पुं० [सं०] [सं० स्त्री० शातपत्रकी] चंद्रिका। चाँदनी।
⋙ शातभिष
वि० [सं०] शतभिषा नक्षत्र संबंधी या उसमें उत्पन्न [को०]।
⋙ शातभीरु
संज्ञा पुं० [सं०] भद्रवल्ली। मदनमाली।
⋙ शातमन्यव
वि० [सं०] शतमन्यु अर्थात् इंद्र से संबंध रखने- बाला [को०]।
⋙ शातमान
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शातमानी] जो सौ के मूल्य से क्रीत हो। एक शत में खरीदा हुआ [को०]।
⋙ शातला
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का थूहर का वृक्ष। विशेष दे० 'सातला'।
⋙ शातवाहन
संज्ञा पुं० [सं०] एक राजा का नाम। विशेष दे० 'शालिवाहन'।
⋙ शातह्रद
वि० [सं०] विद्युत् संबंधी। वैद्युतिक। विद्युत् जन्य [को०]।
⋙ शातातप
संज्ञा पुं० [सं०] एक स्मृतिकार ऋषि का नाम।
⋙ शातित
वि० [सं०] जो नष्ट या ध्वस्त किया गया हो। जो काटकर गिराया हुआ हो [को०]।
⋙ शातिर (१)
वि० [अ०] १. चालाक। चतुर। उस्ताद। काइयाँ। २. चपल। चंचल (को०)। ३. पृष्ठ (को०)। ४. निपुण। दक्ष।
⋙ शातिर (२)
संज्ञा पुं० १. दूत। २. शतरंज का खिलाड़ी।
⋙ शातिराना
वि० [फ़ा०] धूर्ततापूर्ण। शातिरों जैसा [को०]।
⋙ शात्
संज्ञा पुं० [सं०] सीढ़ी। सोपान। निःश्रेणी [को०]।
⋙ शातोदर
संज्ञा पुं० [सं०] [वि० स्त्री० शातोदरी] १. पतली कमरवाला। २. क्षीण। पतला।
⋙ शात्रव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शत्रुत्व। शत्रुता। २. शत्रु। ३. शत्रुओं का समूह।
⋙ शात्रव (२)
वि० १. शत्रु संबंधी। २. शत्रुतापूर्ण। विरोधी [को०]।
⋙ शात्रवीय
वि० [सं०] दे० 'शात्रव (२)'।
⋙ शाद (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. पतन। गिरना। पड़ना। २. कर्दम। कीचड़। ३. घास। दूब। यौ०—शादहरित = जमी हुई दूब के कारण हरा भरा भूखंड या भूमि। हरे धास से भरी हुई भूमि। हरी भरी जमीन।
⋙ शाद (२)
वि० [फ़ा०] खुश। प्रसन्न। २. परिपूर्ण। भरा पूरा। यौ०—शादकाम = (१) प्रसन्न। खुश। (२) कामयाब। सफल- मनोरथ। शादकामी = (१) खुशी। प्रसन्नता। (२) कामयाबी। सफलता। शादगूना = (१) गायिका। डोमनी। (२) तोशक। शादमाँ = हर्षित। शादमान। शादमानी।
⋙ शादमान
वि० [फ़ा०] प्रसन्न। खुश। हर्षित। उ०—जबाँ पर उसे याद है सब कुरान। फसाहत पर उसके हुआ शादमान।— दक्खिनी०, पृ० ७८।
⋙ शादमानी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] प्रसन्नता। खुशी।
⋙ शादा
संज्ञा स्त्री० [सं०] ईंट।
⋙ शादाब
वि० [फ़ा०] १. हरा भरा। सरसब्ज। तरोताजा। २. सींचा हुआ। सिक्त (को०)। ३. प्रफुल्ल (को०)।
⋙ शादाबी ‡
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. तरोताजगी। हरियाली। २. प्रफुल्लता [को०]।
⋙ शादियाना
संज्ञा पुं० [फ़ा० शादियानह्] १. खुशी का बाजा। आनंद- मंगल-सूचक वाद्य। क्रि० प्र०—बजना।—बजाना।२. वह धन जो किसान जमींदार को ब्याह के अवसर पर देते हैं। ३. बधावा। बधाई। क्रि० प्र०—देना। ४. खुशी या शादी के मौके पर गाया जानेवाला मांगलिक गीत।
⋙ शादी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. खुशी। प्रसनन्ता। हर्ष। आनंद। २. आनंदोत्सव। यौ०—शादीगमी। ३. विवाह। ब्याह।
⋙ शाद्वल (२)
वि० [सं०] १. हरित तृण या दूर्वा से युक्त। २. हरी हरी घास से ढँका हुआ। हरा भरा। ३. हरा (को०)।
⋙ शाद्वल
संज्ञा पुं० १. हरी घास। दूब। २. साँड़। बैल। ३. रेगिस्तान के बीच की वह थोड़ी सी हरियाली जहाँ कुछ हलकी बस्ती भी हो। नखलिस्तान। ओसिस। यौ०—शाद्वलस्थली = हरीभरी भूमि। दूर्वाच्छादित भूमि।
⋙ शाद्वलाभ
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का हरा कीड़ा।
⋙ शाद्वलित
संज्ञा पुं० [सं०] दूब से भरा हुआ होना। खुब हरा भरा होना [को०]।
⋙ शान (१)
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. तड़क भड़क। ठाट बाट। सजावट। जैसे,—कल बड़ी शान से सवारी निकली थी। यौ०—शान व शौकत = दे० शानशौकत। उ०—वह उनकी शान व शौकत का कायल होगा।—प्रेमघन०, भा०, २, पृ० १७६। शान शौकत। २. गर्वीली चेष्टा। ठसक। जैसे,—यह घोड़ा बड़ी शान से चलता है। ३. भव्यता। विशालता। चमत्कार । ४. शक्ति। करामात। विभूति। ऐश्र्वर्य। जैसे—खुदा की शान। ५. श्रेष्ठता। बुजुर्गी। गौरव (को०)। ६. प्रतिष्ठा। इज्जत। मानमर्यादा। मुहा०—शान जाना = अप्रतिष्ठा होना। मान भंग होना। शान घटना = इज्जत में कमी होना। बड़प्पन में कमी होना। शान बरसना = गौरव व्यक्त होना। शान मारी जाना = दे० 'शान जाना'। शान में बट्टा लगना = दे० 'शान घटना'। किसी की शान में = किसी बड़े के संबंध में। किसा के प्रति या किसी के बिषय में। जैसे,—उनकी शान में ऐसी बात नहीं कहनी चाहए।
⋙ शान (२)
संज्ञा पुं० [सं०] शरण। सान। २. कसौटी। निकषोपल (को०)।
⋙ शानच्
प्रत्य० [सं०] एक कृदत प्रत्यय जो पाणिन व्याकरण में प्रयुक्त है।
⋙ शानदार
वि० [अ० शान + फ़ा० दार] १. भड़कीला। तड़क भड़कवाला। ठाट बाट का। जो बड़ी सजावट और तैयारी के साथ हो। २. भव्य। विशाल। चमत्कारपूर्णा। ३. ऐश्वर्ययुक्त। वैभव से पूर्ण। ४. गर्वीली चेष्टा से युक्त। ठसकवाला।
⋙ शानपाद
संज्ञा पुं० [सं०] १. चंदन घिसने का पत्थर। २. पारियात्र पर्वत।
⋙ शानशौंकत
संज्ञा स्त्री० [अ०] तड़क भड़क। ठाट बाट। तैयारी। सजावट।
⋙ शाना
संज्ञा पुं० [फ़ा० शानह्] १. कंघा। कंघी। उ०—हो परेशानी सरेमू भी न जुल्फेयार को। इसलिये मेरा दिले सद-चाक शाना हो गया।—भारतेंदु ग्रं०, भा० २, पृ० ८५१। २. मोढ़ा। कंधा। खवा। ३. जुलाहों का राछ। कंघी (को०)। ४. एक हाथियार (को०)।
⋙ शानी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] इनारुन। इंद्रवारुणी।
⋙ शानी (२)
वि० [अ०] शत्रुता करनेवाला। बैर करनेवाला। बैरी [को०]।
⋙ शानी † (३)
वि० [अ० शान] शानवाला। शानदार।
⋙ शानीला †
वि० [अ० शान] दे० 'शानी'।
⋙ शानैश्र्वर
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शानैश्चरी] १. शनिग्रह संबंधी। शनि का। २. शनिवार को पड़ने या होनेवाला [को०]।
⋙ शाप
संज्ञा पुं० [सं०] १. अहित-कामना-सूचक शब्द। तुम्हारा कुछ अनिष्ट हो, इस प्रकार का वचन। कोसना। बद दुआ। जैसे,— ऋषि के शाप से वह राक्षस हो गया। २. धिक्कार। फटकारना। भर्त्सना। क्रि० प्र०—देना। ३. ऐसी शपथ जिसके न पालन करने का कोई अनिष्ठ परिणाम कहा जाय। बुरी क्सम। ४. प्रतिषेघ। प्रत्याख्यान । वर्जन (को०)। ५. कठिनाई। बाधा। उपद्रव (को०)।
⋙ शापग्रस्त
वि० [सं०] जिसे शाप दिया गया हो। शापित।
⋙ शापज्वर
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का ज्वर जो माता, पिता, गुरु आदि बड़ों के शाप के कारण कहा गया है।
⋙ शापटिक, शापठिक
संज्ञा पुं० [सं०] मयूर। मोर।
⋙ शापना पु
क्रि० स० [सं० शाप से नाम धा०] श्राप देना। शाप देना।
⋙ शापनिवृत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] शाप से छुटकारा या मुक्ति [को०]।
⋙ शापप्रद
वि० [सं०] श्राप देनेवाला [को०]।
⋙ शापमुक्त
वि० [सं०] जिसका शाप छूट गया हो। जिसके ऊपर से शाप का बुरा प्रभाव हट गया हो।
⋙ शापमुक्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] शाप से छुटकारा। शापनिवृत्ति [को०]।
⋙ शापमोक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शापनिवृत्ति' [को०]।
⋙ शापयंत्रित
वि० [सं० शापयन्त्रित] शाप के कारण नियंत्रित या बँधा हुआ (को०)।
⋙ शापांत
वि० [सं० शापान्त] शाप का अंत या परिसमाप्ति [को०]।
⋙ शापांबु
संज्ञा पुं० [सं० शापाम्बु] वह जल जिसे हाथ में लेकर शाप दिया जाय।
⋙ शापावसान
संज्ञा पुं० [सं०] शाप की निवृत्ति या अंत [को०]।
⋙ शापास्त्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह व्यक्ति जिसके पास अस्त्रों के स्थान पर शाप ही हो। २. एक मुनि का नाम। दुर्वासा।
⋙ शापित
वि० [सं०] १. जिसे शाप दिया गया हो। शापग्रस्त। २. शपथयुक्त। सौगंध से बँधा हुआ। जिसने शपथ ले ली हो (को०)।
⋙ शापोत्सर्ग
संज्ञा पुं० [सं०] शाप का उच्चारण। शाप छोड़ना। शाप देना।
⋙ शापोद्धार
संज्ञा पुं० [सं०] शाप या उसके प्रभाव से छुटकारा। शापमुक्ति।
⋙ शाफरिक
संज्ञा पुं० [सं०] मछुआ। धीवर।
⋙ शाफी
वि० [अ० शाफ़ी] १. रोगमुक्त करनेवाला। २. भरोसा या संत्वना देनेवाला [को०]।
⋙ शाफेय
संज्ञा पुं० [सं०] यजुर्वेद की एक शाखा।
⋙ शाबर (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शाबरी] १. दुष्ट। कपटी। २. असभ्य। जंगली (को०)। ३. नीच कमीना। अधम (को०)।
⋙ शाबर (२)
संज्ञा पुं० १. बुराई। हानि। दुःख। २. लोध्र वृक्ष। लोध का पेड़। ३. ताँबा। ४. अंधकार। ५. एक प्रकार का चदन। ६. अपराध। दोष। पाप (को०)। ७. दुष्टता (को०)। ८. जैमिनिमीमांसा सूत्रों के एक भाष्यकार का नाम (को०)।
⋙ शाबर भाष्य
संज्ञा पुं० [सं०] मीमांसासूत्र पर प्रसिद्ध भाष्य या व्याख्या जिसके कर्ता शबर स्वामी थे।
⋙ शाबरभेदाक्ष, शाबरभेदाख्य
संज्ञा पुं० [सं०] ताँबा।
⋙ शाबरिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की जोंक।
⋙ शाबरी
संज्ञा पुं० [सं०] शबरों की भाषा। एक प्रकार की प्राकृत भाषा।
⋙ शाबल्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. कई रंगों का मेल। शबलता। कबरा- पन। चितकबरापन। २. एक साथ भिन्न भिन्न कई वस्तुओं का मेल।
⋙ शाबस्त
संज्ञा पुं० [सं०] भागवत के अनुसार राजा युवनाश्व का एक पुत्र जिसने शाबस्ती या श्रावस्ती नगरी बसाई थी।
⋙ शाबस्ती
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'श्रावस्ता'।
⋙ शाबान
संज्ञा पुं० [अ०] मुसलमानों का आठवाँ महीना [को०]।
⋙ शाबाश
अव्य० [फ़ा०] 'शादबाश' का संक्षिप्त रूप। एक प्रशसा- सूचक शब्द। खुश रहो। वाह वाह। धन्य हो। क्या कहना।
⋙ शाबाशी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] कोई कार्य करने पर प्रशंसा। वाह- वाही। साधुवाद। कि० प्र०—देना।—पाना।—मिलना।
⋙ शाब्द (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शाब्दी] १. शब्द संबंधी। शब्द का। २. शब्द विशेष पर निर्भर। ३. शब्दमय (को०)। मौखिक। वाचाकथित या उक्त (को०)। ५. मुखर। ध्वनियुक्त (को०)।
⋙ शाब्द (२)
संज्ञा पुं० शब्दशास्त्री। वंयाकरण।
⋙ शाब्दबोध
संज्ञा पुं० [सं०] शब्दों के प्रयोग द्वारा अर्थ का ज्ञान। वाक्य के तात्पर्य का ज्ञान।
⋙ शाब्द व्यंजना
संज्ञा स्त्री० [सं० शाब्दव्यञ्जना] दे० 'शाब्दी व्यंजना'।
⋙ शाब्दिक (१)
वि० [सं०] १. शब्द सबंधी। शब्द का। २. मौखिक। जबानी (को०)। ३. निनादी (को०)।
⋙ शाब्दिक (२)
संज्ञा पुं० १. शब्दशास्त्र का जाननेवाला। वैयाकरण। ३. अभिधान बनानेवाला। शब्दकोश का निर्माता।
⋙ शाब्दी
वि० स्त्री० [सं०] १. शब्द संबंधिनी। २ केवल शब्दविशेष पर निर्भर रहनेवाली। जैसे,—शाब्दी व्यंजना।
⋙ शाब्दी व्यंजना
संज्ञा स्त्री० [सं० शाब्दी व्यञ्जना] साहित्य में व्यंजना के दो भेदों में से एक। वह व्यंजना जो शब्दविशेष के प्रयोग पर ही निर्भर हो। अर्थात् उसका पर्यायवाची शब्द रखने पर न रह जाय। आर्थी व्यंजना का उलटा।
⋙ शाम (१)
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] सूर्य अस्त होने का समय। रात्रि और दिवस के मिलने का समय। साँझ। सायम्। संध्या। मुहा०—शाम फूलना = संध्या समय पश्तिम की ललाई का प्रकट होना। यौ०—शामगाह = संध्याकाल।
⋙ शाम पु (२)
वि०, संज्ञा पुं० [सं० श्याम] दे० 'श्याम'। यौ०—शामकरण।
⋙ शाम (३)
वि० [सं०] शम संबंधी। शम का।
⋙ शाम (४)
संज्ञा पुं० [सं० शामन्] साम गान।
⋙ शाम (५)
संज्ञा स्त्री० [देश०] लोहे, पीतल आदि धातु का बना हुआ वह छल्ला जो हाथ में ली जानेवाली लकड़ियों या छड़ियों के निचले भाग में अथवा औजारों के दस्ते में लकड़ी को घिसने या छीजने से बचाने के लिये लगाया जाता है। क्रि० प्र०—जड़ना।—लगाना।
⋙ शाम (६)
संज्ञा पुं० एक प्रसिद्ध प्राचीन देश जो अरब के उत्तर में है। कहते हैं, यह देश हजरत नूह के पुत्र शाम ने बसाया था। इसका राजधानी का नाम दमिश्क है। आजकल यह प्रदेश सारिया कहलाता है।
⋙ शामकरण पु
संज्ञा पुं० [सं० श्यामकर्ण] वह घोड़ा जिसका कान श्याम रंग का हो।
⋙ शामल
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. बदकिस्मती। दुर्भाग्य। २. विपत्ति। आफत। ३. दुर्दशा। दुरवस्या। क्रि० प्र०—आना।—में पड़ना या फँसना। मुहा०—शामत का घेरा या मारा = जिसकी दुर्दशा का समय आया हुआ हो। जिसकी दुर्दशा होने को हो। शामत की मार = अभाग्य। बदकिस्मती। कमबख्ता। शामत सवार होना या सिर पर खेलना = शामत आना। दुर्दशा का समय आना।
⋙ शामतजदा
वि० [अ० शामत + फ़ा० जदह्] कमख्त। बदनसीब। अभागा।
⋙ शामती
वि० [अ० शामत + फ़ा० ई (प्रत्य०)] जिसकी शामत आई हो। जिसकी दुर्दशा होने को हो। शामत का मारा।
⋙ शामन
संज्ञा पुं० [सं०] १. शमन। २. शांति। ३. मारण। हत्या करना। ४. यमराज (को०)। ५. समाप्त। अंत (को०)।
⋙ शामनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. दक्षिण दिशा जिसके अधिपति यम माने गए हैं। २. शांति। स्तब्धता। ३. अंत। समाप्ति। ४. वध। हत्या।
⋙ शामा (१)
संज्ञा स्त्री० [?] एक प्रकार का पौधा, जिसकी पत्तियाँ और जड़ कोढ़ रोग के लिये लाभदायक मानी जाती हैं।
⋙ शामा (२)
संज्ञा स्त्री० [सं० श्यामा] दे० 'श्यामा'।
⋙ शामित्र (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. यज्ञ में मांस पकाने के निमित्त प्रज्वलित की हुई अग्नि। २. वह स्थान जहाँ ऐसी अग्नि प्रज्वलित की जाय। ३. यज्ञ। ४. यज्ञपात्र। ५. यज्ञ के लिये पशूओं की हत्या। ६. वधस्थान। बलि करने की जगह (को०)। ७. बलि के निमित्त युपकाष्ठ में पशुबंधन (को०)। ८. धातक प्रहार या चोट (को०)।
⋙ शामित्र (२)
वि० यज्ञबलि करनेवाले से संबद्ध [को०]।
⋙ शामियाना
संज्ञा पुं० [फ़ा० शामियानह्] एक प्रकार का बड़ा तंबू। उ०—खाकसारी ने दिखाया बाद मुर्दन भी उरुज। आसमाँ तुरबत पे मेरे शामियाना हो गया।—भारतेंदु ग्रं०, भा० २, पृ० ८५०। विशेष—इसमें प्रायः ऊपर की ओर लंबा चौड़ा कपड़ा होता है जो बाँसों पर तना रहता है। इसके नीचे चारों ओर प्रायः खुला ही रहता है । पर कभी कभी इसके चारो ओर कनात भी खड़ी की जाती है। क्रि प्र०—खड़ा करना।—गाड़ना।—लगाना।
⋙ शामिल
वि० [फ़ा०] १. जो साथ में हो। मिला हुआ। समिलित। जैसे,—(क) ये कागज मिसिल में शामिल कर दो। (ख) अब तो तुम भी उन्हीं लोगों में शामिल हो गए। २. भागीदार। साझी (को०)। ३. मददगार। सहकारी (को०)। ४. एकत्र। इकट्ठा (को०)। यौ०—शामिल हाल।
⋙ शामिल हाल
वि० [अ० शामिल + हाल] जो दुःख सुख आदि सब अवस्थाओं में साथ रहे। साथी। शरीक।
⋙ शामिलात
संज्ञा स्त्री० [अ० शामिल] १. हिस्सेदारी। साझा। शराकत। दे० 'शामिल'। २. धन संपत्ति, जायदाद आदि जो साझे की हो।
⋙ शामिली
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्त्रुवा [को०]।
⋙ शामी (१)
संज्ञा स्त्री० [देश०] लोहे या पीतल का वह छल्ला जो लकड़ियों आदि के नीचे के भाग में अथवा औजारों के दस्ते के सिरे पर उसकी रक्षा के लिये लगाया जाता है, शाम। क्रि० प्र०—जड़ना। लगाना।
⋙ शामी (२)
वि० [अ० शाम (देश)] शाम देश का। शाम देश संबंधी। जैसे,—शामी कबाब।
⋙ शामी कबाब
संज्ञा पुं० [हिं० शामी + कबाब] एक प्रकार का कबाब जो मांस को मसाले के साथ भूनने के उपरांत पीसकर गोलियों या टिकियों के रूप में बनाया जाता है।
⋙ शामीन
संज्ञा पुं० [सं०] १. भस्म। २. यज्ञ करने का एक उपकरण। स्त्रुवा [को०]।
⋙ शामील
संज्ञा पुं० [सं०] भस्म। खाक। राख।
⋙ शामीली
संज्ञा स्त्री० [सं०] स्रक्। माला।
⋙ शामुल्य
संज्ञा पुं० [सं०] गले में पहनने का कोई ऊनी कपड़ा।
⋙ शामूल
संज्ञा पुं० [सं०] ऊनी कपड़ा।
⋙ शामेय
संज्ञा पुं० [सं०] एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम।
⋙ शाम्य (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. शाम का भाव। २. बंधुत्व। भाई चारा। ३. शांति।
⋙ शाम्य (२)
वि० शमसंबंधी [को०]।
⋙ शाम्यप्रास
संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ की बलि।
⋙ शाय
संज्ञा पुं० [सं०] शयन करना। लेटना। सोना [को०]।
⋙ शायक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बाण। तीर। शर। २. खड्ग। तलवार।
⋙ शायक (२)
वि० [अ० शायक़] [बहु० शायकीन] १. शौक करने या रखनेवाला। शौकीन। २. ख्वाहिशमंद। इच्छुक। आकांक्षी।
⋙ शायद
अव्य० [फ़ा०] कदाचन। कदाचित्। संभव है। स्यात्। जैसे—शायद वह आज आएगा।
⋙ शायर
संज्ञा पुं० [अ०] [संज्ञा स्त्री० शायरा] वह जो शेर आदि बनाता हो। काव्य करनेवाला। कवि।
⋙ शायराना
वि० [अ० शायर + फ़ा० आनह्] १. कवियों जैसा। कवियों के लहजेवाला। २. कवित्वमय। अतिरंजित।
⋙ शायरी
संज्ञा स्त्री० [अ०] १. कविता करने का कार्य या भाव। २. काव्य। कविता। ३. अतिरंजना।
⋙ शायाँ
वि० [अ०] योग्य। तुल्य। मुनासिब [को०]।
⋙ शाया
वि० [अ०] १. प्रकट। जाहिर। २. प्रकाशित। छपा हुआ। क्रि० प्र०—करना।—होना।
⋙ शायिक
संज्ञा पुं० [सं०] [संज्ञा स्त्री० शायिका] वह जो शय्यारचना का जानकार हो। वह जो शय्या द्वारा अपनी जीविका का निर्वाह करता हो।
⋙ शायिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. नींद। निद्रा। २. लेटने की क्रिया। शयन [को०]।
⋙ शायित
वि० [सं०] [स्त्री० शायिता] १. सुलाया या लेटाया हुआ। उ०—अशनिपात से शायित उन्नत शत शत वीर, क्षत विक्षत हत अचल शरीर।—अपरा, पृ, २१। २. गिरा हुआ। पतित। ३. सोया हुआ। लेटा हुआ। उ०—शायित जन जगे सकल। कला के खुले उत्पल।—बेला, पृ० ७२।
⋙ शायिता
संज्ञा स्त्री० [सं०] शयन। सोना।
⋙ शायिनी
वि० स्त्री० [सं० शायिन्=शायी का स्त्री०] शयन करनेवाली। उ०—वह नहीं, पर्यंक, पिय की अंक की जो शायिनी थी।— मिट्टी०, पृ० १३४।
⋙ शायी
वि० [सं० शायिन्] [वि० स्त्री० शायिनी] शयन करनेवाला। सोनेवाला।
⋙ शारंग
संज्ञा पुं० [सं० शारङ्ग] दे० 'सारंग'।
⋙ शारंगक
संज्ञा पुं० [सं० शारङ्गक] एक प्रकार का पक्षी।
⋙ शारंगधनुष
संज्ञा पुं० [सं० शारङ्ग धनुष] शारंग नामक धनुष से सुशोभित, अर्थात् विष्णु। उ०—विष्णु के हाथ में गदा कौमदीऔर चक्र सुदर्शन और शारंगधनुष और शंख आदि रहता है। कबीर मं०, पृ० ४१। २. कृष्ण।
⋙ शारंगपाणि
संज्ञा पुं०। [सं० शारङ्गपाणि] १. हाथ में शारंग नामक धनुष धारण करनेवाले विष्णु। २. कृष्ण। ३. राम।
⋙ शारंगपानी पु
संज्ञा पुं० [सं० शारङ्गपाणि] दे० 'शारंगपाणि'।
⋙ शारंगभृत
संज्ञा पुं० [सं० शारङ्गभृत्] १. शारंग नामक धनुष धारण करनेवाले, विष्णु। २. कृष्ण।
⋙ शारंगवत
संज्ञा पुं० [सं० शारङ्गवत] कुरुवर्ष नामक देश।
⋙ शारंगष्टा
संज्ञा स्त्री० [सं० शारङ्गष्टा] १. काकजंघा। २. मकोय। ३. गुंजा। चौंटली। करजनी।
⋙ शारंगाष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं० शारङ्गाष्ठा] १. मकोय। २. कठकरंज। लताकरंज।
⋙ शारंगी
संज्ञा स्त्री० [सं० शारङ्गी] सारंगी नामक बाजा। विशेष दे० 'सारंगी'।
⋙ शारंगेष्टा
संज्ञा स्त्री० [सं० शारङ्गीष्टा] दे० 'शारंगाष्ठा'।
⋙ शारंबर
संज्ञा पुं० [सं० शारम्बर] राजतरंगिणी के अनुसार एक प्राचीन जनपद का नाम।
⋙ शार (१)
वि० [सं०] १. चितकबरा। कई रंगों का। २. पीला। ३. नीले, पीले और हरे रंग का।
⋙ शार (२)
संज्ञा पुं० १. एक प्रकार का पासा। अक्ष। २. वायु। हवा। ३. हिंसा। ४. चितकबरा रंग (को०)।५. हरा रंग (को०)।
⋙ शारणिक (१)
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो शरण में आए हुए की रक्षा करता हो। रक्षक।
⋙ शारणिक (२)
वि० शरण चाहनेवाला। रक्षा चाहनेवाला। शरणार्थी [को०]।
⋙ शारतल्पिक
संज्ञा पुं० [सं०] वाणों की शय्या पर सोनेवाले भीष्म पितामह [को०]।
⋙ शारद (१)
वि० [सं०] १. शरद् काल संबंधी। शरद् काल का। २. नवीन। नया। ३. लज्जावान। शालीन। ४. वार्षिक। वर्ष से सबंध रखनेवाला (को०)। ५. अभिनव। ६. योग्य। चतुर (को०)।
⋙ शारद (२)
संज्ञा पुं० १. वर्ष। साल। २. मेघ। बादल। ३. सफेद। कमल।४. मौलसिरी का वृक्ष। कास तृण। ६. हरी मूंग। ७. एक प्रकार का रोग। ८. शरत् का समय (को०)। ९. शरत् की धूप (को०)। १०. शरत्कालीन अन्न (को०)। यौ०—शारदचंद्र = शरद् ऋतु का निर्मल तंद। शारद- ज्योत्सना = शरत्काल की शुभ्र चाँदनी। शारदनिशा = शरद् ऋतु की रात। शारदपूर्णिमा = शरत्पुर्णिमा। आश्विन महीने की पुनो। शरदमेघ = जलरहित होने से निर्मल और श्वेत बादल। शारदयामिनी। शारदरात्रि, शारदशर्वरी = शरद् ऋतु की आहूलादक रात्रि।
⋙ शारदक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कुश [को०]।
⋙ शारदांबा
संज्ञा स्त्री० [सं० शारदाम्बा] सरस्वती।
⋙ शारदा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. एक प्रकार की वीणा। २. ब्राह्मी। ३. अनंतमूल। शारिवा। ४. सरस्वती। ५. दुर्गा। ६. प्राचीन काल की एक प्रकार की लिपि। विशेष—कश्मीर देश की अधिष्ठात्री देवी शारदा मानी जाती हैं दिससे वह देश 'शारदादेश' या 'शारदमंडल' कहलाता है और इसी से वहाँ की लिपि को 'शारदालिपि' कहते हैं। पीछे से उसको (कश्मीर को) 'देवदेश' भी कहते थे। मूल शारदालिपि ईस्वी सन् की दसवीं शताब्दी के आस पास कुटिल लिपि से निकली है और उसका प्रचार कश्मीर तथा पंजाब में रहा। उस में परिवर्तन होकर वर्तमान शारदा लिपि बनी जिसका प्रचार अब कश्मीर में बहुत कम रह गया है। उसका स्थान बहुधा नागरी, गुरुमुखी या टाकरी ने ले लिया है।
⋙ शारदिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. शरद ऋतु में होनेवाला ज्वर। २. रोग। बीमारी। ३. शरद् ऋतु में होनेवाला अथवा वार्षिक श्राद्ध। ४. शरद् ऋतु की धूप (को०)।
⋙ शारदी
संज्ञा स्त्री० [सं०] जलपीपल। २. छतिवन। सप्तपर्ण। ३. आश्विन मास की पूर्णिमा। कोजागर पूर्णिमा। ४. कार्तिक मास की पूर्णिमा (को०)।
⋙ शारदी (२)
वि० शरद् काल का। शरद् काल संबंधी।
⋙ शारदी (३)
संज्ञा पुं० [सं० शारदिन्] १. अपराजिता। कोयल। २. सफेदा कमल। ३. अन्न या फल आदि।
⋙ शारदीय
वि० [सं०] शरद् काल का। शरद् ऋतु संबंधी।
⋙ शारदीयपूजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शारदीय महापूजा। शरद् ऋतु में नवरात्र की दुर्गापूजा। उ०—नहीं तो वे स्वदेशाचारानुसार प्रायः शारदीय पूजा ही में हंस लिया करते थे।—प्रेमधन०, भा० २, पृ० १५७।
⋙ शारदीय पूर्णिमा
संज्ञा स्त्री० [सं०] आश्विन पूर्णिमा। कोजागर पूर्णिमा।
⋙ शारदीय महापूजा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शरत्काल में होनेवाली दूर्गा की पूजा। नवरात्र की दुर्गापूजा।
⋙ शारद्य (१)
वि० [सं०] शरद् काल का। शरद् ऋतु संबंधी।
⋙ शारद्य (२)
संज्ञा पुं० शरत् ऋतु में होनेवाला अन्न [को०]।
⋙ शारद्वत
संज्ञा पुं० [सं०] १. कृपाचार्य का एक नाम। २. गौतम [को०]।
⋙ शारद्वती
संज्ञा स्त्री० [सं०] कृपाचार्य की पत्नी। कृपी [को०]।
⋙ शारि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. पासा आदि खेलने की गोट। २. शतरंज का मुहरा (को०)। ३. छोटी गोल गेँद (को०)।
⋙ शारि (२)
संज्ञा स्त्री० १. मैना। २. कपट। छल। धोखा। ३. एक प्रकार का गीत। ४. हाथी की झूल (को०)।
⋙ शारिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मैना नाम की चिड़िया। २. शतरंज या चौपड़ खेलते की क्रिया। ३. सारंगी आदि बजाने की कमानी। ४. वीणा या सारंगी आदि बजाने की क्रिया। ५. दुर्गा देवी का एक नाम। शतरंज की गोटी (को०)। ६. कोण। मिजराब (को०)।
⋙ शारिकाकवच
संज्ञा पुं० [सं०] दुर्गा का एक कवच जो रुद्रयामल तंत्र में है।
⋙ शारित
वि० [सं०] रंगीन। चित्रविचित्र।
⋙ शारिपट्ट
संज्ञा पुं० [सं०] शतरंज या चौसर आदि खेलने की बिसात।
⋙ शारिपुत्र
संज्ञा पुं० [सं०] गौतम बुद्ध के एक प्रधान शिष्य [को०]।
⋙ शारिफल, शारिफलक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शारिपट्ट'।
⋙ शरिवा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. अनंतमूल। सालसा। दुरालभा। २. जवासा। धमासा।
⋙ शारिशृंग
संज्ञा पुं० [सं० शारिश्रृङ्ग] जुआ खेलने का एक प्रकार का पासा या गोट।
⋙ शारी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. कुशा नाम की घास। २. एक प्रकार का पक्षी। ३. मूँज। काँडा।
⋙ शारी (२)
संज्ञा पुं० १. शतरंज की गोट। २. गेंद।
⋙ शारीर (१)
वि० [सं०] १. शरीर संबंधी। शरीर का। २. शरीर से उत्पन्न।
⋙ शारीर (२)
संज्ञा पुं० १. शरीर को होनेवाले दुःख जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक, तीन प्रकार के होते हैं। २. वृष। साँड़। ३. जीवात्मा। आत्मा (को०)। ४. मल (को०)। ५. शरीररचना (को०)। ६. एक प्रकार की ओषधि (को०)।
⋙ शारीरक (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शारीरकी] १. शरीर से उत्पन्न। २. शरीर से संबंधित (को०)। ३. मूर्तिमान्। शरीरधारी (को०)।
⋙ शारीरक (२)
संज्ञा पुं० १. मूर्तिमान् जीव। २. दे० 'शारीरक भाष्य'।
⋙ शारीरक भाष्य
संज्ञा पुं० [सं०] शंकराचार्य का किया हुआ ब्रह्मसूत्र का भाष्य।
⋙ शारीरक सूत्र
संज्ञा पुं० [सं०] वेदव्यास का बनाया हुआ वेदांतसूत्र।
⋙ शारारकीय
वि० [सं०] मूर्तिमान। शरीरधारी [को०]।
⋙ शारीरतत्व
संज्ञा पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमें शरीर के तत्वों और रचना आदि का विवेचन होता है।
⋙ शारीर विद्या
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शारीर विधान'।
⋙ शारीर विधान
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह शास्त्र जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि जीव किस प्रकार उत्पन्न होते और बढ़ते हैं। २. वह शास्त्र जिसमें जीवों के शरीर के भिन्न भिन्न अंगों और उनके कार्यों का विवेचन होता है।
⋙ शारीर व्रण
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग। विशेष—यह वात, पित्त कफ और रक्त से उत्पन्न होता है। परंतु रक्त के संबंध से द्विदोषज और त्रिदोषज होने के कारण आठ प्रकार का हो जाता है—(१) वातव्रण, (२) पित्तव्रण, (३) कफव्रण, (४) रक्तव्रण, (५) वातपित्तज व्रण, (६) वातकफज व्रण, (७) कफपित्तज व्रण, और (८) संनिपातज व्रण।
⋙ शारीर शास्त्र
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शारीर विधान'।
⋙ शारीरिक
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शारीरिक] १. शरीर संबंधी। कालेवरिक। कायिक। दैहिक। जिस्मानी। जैसे, शारीरिक कष्ट। २. आध्यात्मिक (को०)।
⋙ शारुक
वि० [सं०] १. हत्या या नाश करनेवाला। २. कष्ट देनेवाला। दुष्ट।
⋙ शारुँ पु †
संज्ञा स्त्री० [सं० शारि] मैना। उ०—वो शारुँ के मूँ ते सुने यो बैन। नसीहत पर उसकी गजब में हों ऐन।—दक्खिनी०, पृ० ८४।
⋙ शार्क (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. चीनी। शर्करा। २. एक प्राचीन गोत्र- प्रवर्तक ऋषि का नाम।
⋙ शार्क (२)
संज्ञा पुं० [अं०] एक विशालकाय मछली। विशेष—यह शिकारी मछली है जो समुद्रों में रहती है। इसका शिकार करना बहुत खतरनाक होता है। यह समुद्री जीवों को खाती है। कभी कभी छोटी मोटी नावों को उलट देती है। इसके शरीर का तेल दवा के काम आता है।
⋙ शार्कक
संज्ञा पुं० [सं०] १. दूध का फेन। दुग्धफेन। मलाई। २. चीनी का ढेला। शर्करापिंड। ३. गोश्त का टुकड़ा।
⋙ शार्कर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. दूध का फेन। २. दूध की पपड़ी या मलाई। ३. लोध्रवृक्ष। ४. कँकरीली और पथरीली जगह।
⋙ शार्कर (२)
वि० [वि० स्त्री० शार्करी] १. कँकरीला। २. शक्कर या चीनी का बना हुआ।
⋙ शार्करक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह स्थान जो कंकरों और पत्थरों से भरा हो। कँकरीली या पथरीली जगह। २. वह स्थान जहाँ चीनी बहुत होती हो।
⋙ शार्करक (२)
वि० कँकरीला। पथरीला।
⋙ शार्कर मद्य
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का मद्य जो चीनी और धौ से बनाया जाता था।
⋙ शार्करिक
संज्ञा पुं०, वि० [सं०] दे० 'शार्करक'।
⋙ शार्करी
वि० [सं० शार्करिन्] मधुमेह या पथरी रोग से ग्रस्त [को०]।
⋙ शार्करीधान
संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक देश जो उत्तर दिशा में था।
⋙ शार्करीय
संज्ञा पुं०, वि० [सं०] दे० 'शार्करक'।
⋙ शार्गाल
वि० [सं०] श्रृगाल संबंधी। श्रृगाल का [को०]।
⋙ शार्ङ्ग (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. धनुष। कमान। २. विष्णु का धनुष। विष्णु के हाथ में रहनेवाला धनुष। ३. अदरक। आदी। ४. एक प्रकार का साम। ५. शार्ङ्गक। पक्षी। चिड़िया (को०)।
⋙ शार्ङ्ग (२)
वि० १. शृंग संबंधी। २. शृंग का। शृंगनिर्मित। २. धनुर्धर। धनुष धारण करनेवाला (को०)।
⋙ शार्ङ्गक
संज्ञा पुं० [सं०] पक्षी। चिड़िया।
⋙ शार्ङ्गधन्वा
संज्ञा पुं० [शार्ङ्गधन्वन्] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. वह जो धनुष धारण करता हो। कमनैत।
⋙ शार्ङ्गधर
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. कमनैत।
⋙ शार्ङ्गपाणि
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण ३. वह जो धनुष धारण करता हो। कमनैत।
⋙ शार्ङ्गभृत्
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शार्ङ्गराणि'।
⋙ शार्ङ्गवैदिक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का स्थावर विष जो देखने में सोंठ के समान होता है।
⋙ शार्ड्गष्टा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. काकजंघा। २. घुँघची।
⋙ शार्ङ्गष्ठा
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. महाकरंज। २. लताकरंज।
⋙ शार्ङ्गायुध
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. वह जो धनुष धारण करता हो। कमनैत।
⋙ शार्ङ्गिक
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शार्ङ्गक'।
⋙ शार्ङी्ग
संज्ञा स्त्री० [सं० शार्ङि्गन्] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण ३. धनुर्धारी। कमनैत।
⋙ शार्टकट
वि० [अं०] संक्षिप्त या छोटा रास्ता। उ०—रास्ते तो कई हो सकते हैं, और शार्टकट होते नहीं।—नदी०, पृ० ३८।
⋙ शार्दूल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. चीता। २. व्याघ्र। बाघ। ३. राक्ष्स। ४. शरभ नामक जतु। ५. एक प्रकार का पक्षी। ६. यजुर्वेद की एक शाखा। ७. दोहे का एक भेद जिसमें ६ गुरु और ३६ लघु मात्राएँ होती हैं। ८. चित्रक या चीता नामक वृक्ष। ९. सिंह।
⋙ शार्दूल (२)
वि० । सर्वश्रेष्ठ। सर्वोत्तम। विशेष—इस अर्थ में इसका प्रयोग केवल यौगिक शब्द बनाने में उनके अंत में होता है। जैसे,—नरशार्दूल।
⋙ शार्दूलकंद
संज्ञा पुं० [सं० शार्दूलकन्द] जंगली प्याज।
⋙ शार्दूलकर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] त्रिशंकु के एक पुत्र का नाम।
⋙ शादूलचर्म
संज्ञा पुं [सं० शार्दूलचर्मन्] बाघ का चमड़ा। व्याघ्र- चर्म [को०]। यौ०—शार्दूलचर्मांबर = व्याघ्रचर्म धारण करनेवाले, शिव।
⋙ शार्दूलज
संज्ञा पुं० [सं०] व्याघ्रनख नामक गंधद्रव्य।
⋙ शांर्दूलललित
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वर्णवृत्त। इसका पद अठारह अक्षरों का होता है, और उनका क्रम इस प्रकार है—म+स+ज+स+त+स। इसका दूसरा नाम शार्दूल- लसित भी है।
⋙ शार्दूललसित
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शार्दूलललित'।
⋙ शार्दूलवाहन
संज्ञा पुं० [सं०] जैनियों के अनुसार पचीस पूर्व जिनों में से एक जिन का नाम।
⋙ शार्दूलविक्रीडित
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का वर्णवृत्त। इसका चरण उन्नीस अक्षरों का होता है, और उनका क्रम इस प्रकार है—म+स+ज+स+त+त+एक गुरु। २. बाघ की क्रीड़ा (को०)।
⋙ शार्मण्य
संज्ञा पुं० [सं०] जर्मनी देश का नाम [को०]। यौ०—शार्मणयदेश = जर्मनी।
⋙ शार्यात
संज्ञा पुं० [सं०] १. वैदिक काल के एक प्राचीन राजर्षि का नाम। २. एक प्रकार का साम।
⋙ शार्व
वि० [सं०] शर्व अर्थात् शिवसंबंधी [को०]।
⋙ शार्वदिक्
संज्ञा स्त्री० [सं० शार्वदिश्] पूर्व दिशा [को०]।
⋙ शार्वर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] बहुत अधिक अंधकार। अंधतमस।
⋙ शार्वर (२)
वि० १. रात का। रात्रि से संबंध रखनेवाला। रात्रिकालीन। २. घातक। हिंसक। दुर्मति [को०]।
⋙ शार्वरिक
वि० [सं०] रात्रि संबंधी। रात का।
⋙ शार्वरी (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. रात। रात्रि। २. लोध।
⋙ शार्वरी (२)
संज्ञा पुं० [सं० शार्वरिन्] बृहस्पति के साठ संवत्सरों में से चौंतीसवाँ संवत्सर।
⋙ शार्वरीक
वि० [सं०] रात्रि संबंधित [को०]।
⋙ शालंकटंकट
संज्ञा पुं० [सं० शालङ्कटङ्कट] सुकेशी राक्षस का एक नाम जो वामनपुराण के अनुसार विद्युत् केशी और शालंकटंकटा का पुत्र था।
⋙ शालंकायन
संज्ञा पुं० [सं० शालङ्कायन] १. विश्वामित्र के एक पुत्र का नाम। २. नंदी। यौं०—शालंकायन जीवसू = व्यास की माता। सत्यवती।
⋙ शालंकायनजा
संज्ञा स्त्री० [सं० शालङ्कायनजा] शालंकायन की पुत्री सत्यवती जो व्यास की माता थी।
⋙ शालंकायनि
संज्ञा पुं० [सं० शालङ्कायनि] एक प्राचीन गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम।
⋙ शालंकि
संज्ञा पुं० [सं० शालङ्कि] पाणिनि ऋषि का नाम।
⋙ शालंकी
संज्ञा स्त्री० [सं० शालङ्की] १. गुड़िया। २. कठपुतली।
⋙ शाल (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का प्रसिद्ध वृक्ष। सखुआ। साखू। सालू। विशेष—यह हिमालय पर्वत पर सतलज से आसाम तक, मध्य भारत के पूरब प्रांत में पश्चिम वंगाल की पहाड़ियों पर और छोटा नागपुर के जंगलों में उत्पन्न होता है। इसका वृक्ष बहुत बड़ा और विशाल होता है। छोटे वृक्षों की छाल प्रायः दो इंच मोटी खुरदरी, काले रंग की और रेशेदार होती है। कच्ची लकड़ी सफेद रंग की और जल्दी बिगड़नेवाली होती है। सार भाग जब ताजा होता है तब कुछ पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होता है परंतु सुखने पर काला हो जाता है। पत्ते चिकने, चमकीले, अंडाकार, ६ से १० इंच तक लंबे और ४ से ६. इंच तक चौड़े होते हैं। डालियों के अंत में फूलों के गुच्छे लगते हैं। पुष्पदल लंबे और हलके पीले रंग के आते हैं; और किंचित् अंडाकार तथा अनीदार होते हैं। फल गोल और आध इंच लंबा होता है। वसंत में यह फूलता है और वर्षा के प्रापंभ में इसके फल पक जाते हैं। इसकी लकड़ी मकान आदि बनाने में अधिकता से काम में आती है। इससे एक प्रकार का लाल रंग निवलता है। इसके बीजो का तेल निकालकर जलाने के काम में लाया जाता है। दुर्भिक्ष में फलों का आटा खाने केकाम में आता है। यह दो प्रकार का होता है-एक बड़ा शाल और दूसरा पीतशाल या विजयसार। वैद्यक के अनुसार यह चरपरा, कड़वा, रूखा, स्निग्ध, गरम, कसैला, कांतिजनक तथा कफ, पित्त, घाव, पसीना, कृमिरोग, योनिरोग, प्रमेह, कुष्ठ, विस्फोटक आदि रोगों को दूर करनेवाला है। इसके पत्ते और गोंद प्रायः ओषधि के काम में आते हैं। पर्या०—साल। अश्वकर्ण। शंकुवृक्ष। लतातरु। यक्षधूप। आदि। २. एक प्रकार की मछली। ३. वृक्ष। पेड़। ४. एक नदी का नाम। ५. वृक के एक पुत्र का नाम। ६. राजा शालिवाहन का एक नाम। ७. राल। धूना। ८. घेरा। बाड़ा। बाड़ (को०)।
⋙ शाल (२)
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] एक प्रकार की ऊनी या रेशमी चादर जिसके किनारे पर प्रायः बेल बूटे आदि बने होते हैं। दुशाला। यौ.—शालदुशाला। शालदोज। शालबाफ।
⋙ शाल पु (३)
संज्ञा स्त्री० [सं० शाला] घर। कक्ष। कमरा। उ०—ऊँचे मंदिर शाल रसोई। एक घरी पुनि रहन न होई।—संत रवि०, पृ० १३४।
⋙ शाल (४)
संज्ञा स्त्री० [सं० शल्य] एक प्रकार की बर्छी।
⋙ शालक
संज्ञा पुं० [सं०] १. पटुआ। नाड़ी शाक। २. मसखरा। दिल्लगीबाज। भाँड़। ३. एक प्रकार का राग [को०]।
⋙ शालकटंकट
संज्ञा पुं० [सं० शालकटङ्कट] महाभारत के अनुसार एक राक्षस का नाम जिसे घटोत्कच ने मार डाला था।
⋙ शालकल्याणी
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का साग जो चरक के अनुसार भारी, रूखा मधुर, शीतवीर्य और पुरीषभेदक होता है।
⋙ शालग्राम
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णु की एक प्रकार की मूर्ति जो पत्थर की होती है और नारायणी नदी में पाई जाती है। विशेष—यह मूर्ति प्रायः पत्थर की गोलियों या बटियों आदि के रूप में होती है और उसपर चक्र का चिह्न बना होता है जिसे लोग साधारण बोलचाल की भाषा में जनेऊ कहते हैं। जिस शिला पर यह चिह्न नहीं होता वह पूजन के लिये उपयुक्त नहीं मानी जाती। लोग अन्य देवमूर्तियों की भाँति इसकी भी पहले प्रतिष्ठा करते हैं। और तब इसका पूजन करते हैं। अनेक पुराणों में इसकी पूजा का माहात्म्य मिलता है। २. बड़ी गंडकी या नारायणी नदी के किनारे का एक गाँव। विशेष—इस गाँव के समीप शाल के वृक्ष बहुत अधिकता से हैं। इस गाँव के पास ही नदी में शालग्राम शिलाएँ भी पाई जाती हैं। वैष्णव लोग इस गाँव को बहुत पवित्र मानते हैं।
⋙ शालग्रामगिरि
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक पर्वत का नाम जहाँ शालग्राम की मूर्तियाँ मिलती हैं।
⋙ शालज
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार की मछली जिसे शाल भी कहते हैं। २. सर्ज रस। शाल वृक्ष का निर्यास।
⋙ शालदोज
संज्ञा पुं० [फ़ा० शालदोज] वह जो शाल के किनारे पर बेल बूटे आदि बनाता है।
⋙ शालना ‡
क्रि० अ० [सं० शल्य, हिं० साल से नामधातु] दे० 'सालना'। उ०—शाले करेजवा में तीर जी।—मैला०, पृ० ६९।
⋙ शालनिर्यास
संज्ञा पुं० [सं०] १. राल। धूना। २. शाल या सर्ज नाम का वृक्ष।
⋙ शालपन्ना
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शालपर्णी'।
⋙ शालपर्णिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मुरा नामक गंधद्रव्य। २. एकांगो नामक ओषधि। विशेष दे० 'एकांगो'।
⋙ शालपर्णी
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरिवन नामक वृक्ष। विशेष दे 'सरिवन'।
⋙ शालपोत
संज्ञा पुं० [सं०] शाल का नवीन पेड़ [को०]।
⋙ शालबाफ
संज्ञा पुं० [फ़ा० शालबाफ़] १. वह जो शाल या दुशाले आदि बुनता हो। शाल बुननेवाला। २. एक प्रकार का रेशमी कपड़ा जो लाल रंग का होता है।
⋙ शालबाफी
संज्ञा स्त्री० [फा़० शालबाफ़ी] दुशाले बुनने का काम। शालबाफ का काम।
⋙ शालभंजिका
संज्ञा स्त्री० [सं० शालभञ्जिका] १. कठपुतली। २. वेश्या। रंडी।
⋙ शालभंजी
संज्ञा स्त्री० [सं० शालभञ्जी] कठपुतली।
⋙ शालभ (१)
संज्ञा पुं० [सं०] बिना सोचे विचारे उसो प्रकार आपत्ति में कूद पड़ना, जिस प्रकार पतंग आग या दीपक पर कूद पड़ता है।
⋙ शालभ (२)
वि० पतिंगों के संबंध का। पतिंगों या टिड्डियों का। शलभ संबंधी।
⋙ शालमत्स्य
संज्ञा पुं० [सं०] शिलिंद नामक मछली।
⋙ शालमर्कट, शालमर्कटक
संज्ञा पुं० [सं०] अनार का वृक्ष। दाड़िम।
⋙ शालयुग्म
संज्ञा पुं० [सं०] दोनों प्रकार के शाल अर्थात् सर्ज वृक्ष और विजयसार।
⋙ शालरस
संज्ञा पुं० [सं०] राल। धूना। करायल।
⋙ शालव
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक असुर का नाम जो कालवदन और श्रृगालवदन भी कहलाला है।
⋙ शालवानक
संज्ञा पुं० [सं०] १. विष्णुपुराण के अनुसार एक देश का नाम। २. इस देश का निवासा।
⋙ शालवाहन
संज्ञा पुं० [सं०]दे० 'शालिवाहन'।
⋙ शालवेष्ट
संज्ञा पुं० [सं०] शाल। धूना।
⋙ शालशाक
संज्ञा पुं० [सं०] पटुआ। नाड़ी शाक।
⋙ शालश्रुंग
संज्ञा पुं० [सं० शालश्रृङ्ग] दीवार का ऊपरी भाग। दीवार की चोटी।
⋙ शालसार
संज्ञा पुं० [सं०] १. हींग। हिंगु। २. राल। धूना। करा- यल। ३. साखू नामक वृक्ष। शाल। ४. वृक्ष। द्रुम। पेड़।
⋙ शालाकी
संज्ञा स्त्री० [सं० शालाङ्की] पुतली। गुड़िया।
⋙ शालांचि
संज्ञा स्त्री० [सं० शालाञ्चि] शांचिया शांची नामक साग।
⋙ शाला
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. घर। गृह। मकान। २. जगह। स्थान। जैसे—पाठशाला, गौशाला। ३. शाखा। डाल। ४. इँद्रवज्रा और उपेंद्रवज्रा के योग से बननेवाले सोलह प्रकार के वृत्तों में से एक वृत्त। इसका तीसरा चरण उपेंद्रवज्रा का और शेष तीनों चरण इंद्रवज्रा के होते हैं। ५. भवन का एक अंश या भाग। गृह का कोई स्थान। गृहैकदेश। कक्ष। प्रकोष्ठ (को०)। ६. वृक्ष का तना (को०)।
⋙ शालाक
संज्ञा पुं० [सं०] १. झाड़ झँखाड। २. वह अग्नि जो झाड़ झंखाड़ जलाकर उत्पन्न की जाय़। ३. पाणिनि का एक नाम (को०)।
⋙ शालाकर्म
संज्ञा पुं० [सं० शालकर्मन्] १. गृहनिर्माण। मकान बनाना। २. गृहकार्य। घरेलू काम।
⋙ शालाकी
संज्ञा पुं० [सं० शालाकिन्] १. वह जो अस्त्रचिकित्सा करता हो। अस्त्रवैद्य। जर्राह। २. नापत। नाउ हज्जाम। ३. भालाबरदार।
⋙ शालाक्य
संज्ञा पुं० [सं०] १. आयुर्वेद के अंतर्गत आठ प्रकार के तंत्रों में से एक तंत्र जिसमें, कान, आँख, नाक, जीभ, होठ, मुँह आदि के रोगी और उनकी चिकित्सा का विवरण है। २. वह चिकित्सक जो आँख, नाक, कान, मुँह आदि के रोगो की चिकित्सा करता हो। यौ०—शालाक्यतंत्र = दे० 'शालाक्य'। शालाक्य शास्त्र।
⋙ शालाक्यशास्त्र
संज्ञा पुं० [सं०] दे० 'शालाक्य'।
⋙ शालाघ्न
संज्ञा पुं० [सं०] वैदिक काल के एक प्राचिन ऋषि का नाम।
⋙ शालाजिर
संज्ञा पुं० [सं०] मिट्टी की तश्तरी या प्याली आदि।
⋙ शालतुरीय
संज्ञा पुं० [सं०] पाणिनि ऋषि का एक नाम।
⋙ शालात्व
संज्ञा पुं० [सं०] शाला का भाव या धर्म।
⋙ शालीनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] सरिवन। शालपर्णी। विदारी।
⋙ शालामर्कटक
संज्ञा पुं० [सं०] १. बड़ी मूली। २. चाणक्यमूलक।
⋙ शालामुख
संज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार का चावल। २. घर का दरवाजा या सामना। घर का अगला भाग।
⋙ शालामृग
संज्ञा पुं० [सं०] १. कुत्ता। श्वान। कुक्कुर। २. सियार। श्रृगाली। गीदड़।
⋙ शालार
संज्ञा पुं० [सं०] १. हाथी का नाखून। २. साढ़ा। सोपान। ३. पक्षियो के रहने का पिंजड़ा। पिंजरा। ४. दीवार मे लगी हुई खूँटी।
⋙ शालालुक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का गंधद्रव्य। शलालु।
⋙ शालावती
संज्ञा स्त्री० [सं०] हरिवंश के अनुसार विश्वामित्र का कन्या का नाम।
⋙ शालावत्
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋषि का नाम।
⋙ शालावृक
संज्ञा पुं० [सं०] १. बंदर। बानर। कपि। २. कुत्ता। कुक्कुर। ३. लोमड़ी। श्रृगाल। ४. बिल्ली। विडाल। ५. हरिन। मृग। ६. भेड़िया (को०)।
⋙ शालासद्
वि० [सं०] घर पर रहनेवाला [को०]।
⋙ शालिंच
संज्ञा पुं० [सं० शालिञ्च] एक प्रकार का साग जिसे शालंच या शांचि साग भी कहते हैं। वैद्यक के अनुसार वह चरपरा दीपन, तथा प्लीहा, बवासीर और कफ पित्त का नाश करनेवाला माना गया है।
⋙ शालिंची
संज्ञा स्त्री० [सं० शालिञ्ची]दे० 'शालिंच'।
⋙ शालि
संज्ञा पुं० [सं०] १. वैद्यक के अनुसार पाँच प्रकार के धानों में से एक प्रकार का धान जो हेमंत ऋतु में होता है। जड़हन। विशेष—वैद्यक में इसके रक्तिशालि, कलम, पांडुक, शकुनाहृत, सुगंधक, कर्दमक, महाशालि, दूषक, पुष्पांडक, पुंडरीक, महिष मस्तक, दीर्घशूक, कांचनक, हायन, लोध्रपुष्पक आदि अनेक भेद कहे गए हैं। यद्यपि वैद्यक के अनुसर भिन्न भिन्न देशों में उत्पन्न होनेवाले के भिन्न भिन्न गुण कहे गए हैं, तथापि साधारणतः सर्भी शालि धान्यों के गुण इस प्रकार माने गए हैं—मधुर, कषायरस, स्निग्ध, बलकारक, स्वरप्रसादक, शुक्रवर्धक, कुछ कुछ वायु और कफवर्धक, शीतवीर्य पित्तनाशक और मूत्रवर्धक। पर्या—मधुर। रुच्य। ब्रीहिश्रेष्ठ। नृपप्रिय। धान्योत्तम। कैदार। सुकुमारक। २. बासमती चावल। ३. काला जीरा। ४. गन्ना। पौंढा। ५. गंधबिलाव। गंधमार्जार। ६. पक्षी (को०)। ७. एक यज्ञ का नाम।
⋙ शालिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो शाला या भवन संबंधी हो। २. वह जो शाल वृक्ष संबंधी हो। ३. तंतुवाय। जुलाहा। ४. एक प्रकार का कर या महसूल। राजस्व। ५. कारीगरों का गाँव [को०]।
⋙ शालिकी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. विदारी कंद। २. मैना। शारिका। ३. शालपर्णी। ४. घर। मकान। ५. आधार। स्थान (को०)।
⋙ शालिगोप
संज्ञा पुं० [सं०] [संज्ञा स्त्री० शालिगोपी] वह जो खेतों की, विशेषतः धान के खेती की, रखवाली करता हो।
⋙ शालिचूर्ण
संज्ञा पुं० [सं०] चावल का आँटा [को०]।
⋙ शालिधान
संज्ञा पुं० [सं० शालिधान्य] बासमती चावल। विशेष—यह धान जेठ मास में बोया जाता है और अगहन के अंत या पूस के आरंभ में पककर तैयार हो जाता है। इसे अगहनी या हैसंतिक शालिधान्य भी कहते हैं। इसका पौधा मिट्टी तथा देश का अनुसार दो हाथ से लेकर तीन हाथ तक उँचा होता है। इसके पत्ते साधारण धान के समान होते हैं पर उनकी अपेक्षा कुछ कड़े और चिकने होते हैं। यह छोटा और बड़ा दो प्रकार का होता है। भेद इतनी ही है कि छोटा पहले पकता है और बड़ा कुछ देर में। यह धान बिनाकुटे हुए सफेद होता है और बहुत बारीक तथा सुदंर होता है। चावलों में यह सबसे उत्तम माना जाना है।
⋙ शालिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. ग्यारह अक्षरों का एक वृत्त। इसमें क्रम से एक यगण दो तगण और अंत में दो गुरु होते हैं। २. भसींड़। पद्यकंद। ३. मेथी। ४. गृहिणी। गृहस्वामिनी (को०)।
⋙ शालिपार्णिका
संज्ञा स्त्री० [सं०] एक औषधि। दे० 'एकांगी'-३।
⋙ शालिपर्णी
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. मेदा नामक अष्टवर्गीय ओषधि। २. पिठवन। गृश्निपर्णी। ३. बनउरदी। ४. शालपर्णी। सरिवन।
⋙ शालिपिंड
संज्ञा पुं० [सं० शालिपिण्ड] महाभारत के अनुसार एक नाग का नाम।
⋙ शालिपिष्ट
संज्ञा पुं० [सं०] १. स्फटिक। बिल्लौर पत्थर। २. चावल का आटा (को०)।
⋙ शालिभवन
संज्ञा पुं० [सं०] धान से भरा हुआ क्षेत्र।
⋙ शालिराट्
संज्ञा पुं० [सं०] हंसराज चावल।
⋙ शालिवाह
संज्ञा पुं० [सं०] चावल ढोनेवाला बैल [को०]।
⋙ शालिवाहन
संज्ञा पुं० [सं०] शक जाति का एक प्रसिद्ध राजा। विशेष—इसने शाक नामक संवत् चलाया था। टाड के राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि यह गजनी के राज गज का पुत्र था। पिता के मारे जाने पर यह पंजाब चला आया और उसपर अपना अधिकार जमा लिया। इसने शालिवाहन पुर नामक नगर भी बसाया था। इसकी राजधानी गोदावरी के किनारे प्रतिष्ठानपुर में थी। कहीं कहीं इसका नाम सातवाहन भी मिलता है। कथा सरित्सागर में लिखा है कि इसे सात नामक गुह्यक उठाकर ले चला करता था, इसी से इसका नाम सातवाहन पड़ा।
⋙ शालिहोत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. घोड़ा। घोड़ों और पशुओं आदि की चिकित्सा का शास्त्र। अश्ववैद्यक। ३. पुराणानुसार एक गोत्रप्रवर्तक ऋषि का नाम। ४. अश्वचिकित्सा शास्त्र का लेखक। अश्ववैद्यक का प्रणेता (को०)।
⋙ शालिहोत्री
संज्ञा पुं० [सं० शालिहोत्रिन्] १. वह जो पशुओं और विशेषतः घोड़ा आदि की चिकित्सा करता हो। अश्ववैद्य। २. अश्व। घोड़ा (को०)।
⋙ शाली
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. काला जीरा। २. मेथी। ३. शालपर्णी। ४. दुरालभा।
⋙ शाली
वि० [सं० शालिन] १. (प्रायः समास में प्रयुक्त) युक्त। सहित। २. घरेलू। गृह संबंधी। ३. अच्छे आचार व्यवहारवाला। शालीन। श्लाघ्य [को०]।
⋙ शालीक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन आचार्य का नाम।
⋙ शालीन (१)
वि० [सं०] १. जो धृष्ट या उद्दंड न हो। विनीत। नम्र। २. जिसे लज्जा आती हो। सलज्ज। ३. सदृश। समान। तुल्य। ४. अच्छे आचार विचारवाला। ५. शाला संबंधी। शाला का। ६. संपत्तिशाली। धनवान। अमीर। ७. जो व्यवहार में कुशल हो। दक्ष। चतुर।
⋙ शालीन (२)
संज्ञा पुं० १. गृहस्थ। २. विनय। शालीनता। नम्रता। ३. वह जो अयाचितवृत्ति हो [को०]।
⋙ शालीनता
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शालीन होने का भाव या धर्म। २. लज्जा। लाज। शरम। ३. नम्रता। उ०—मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ, मैं शालीनता सिखाती हूँ। मतवाली सुंदरता पग में नूपुर सी लिपट मनाती हूँ।—कामायनो, पृ० १०३। ४. आधीनता।
⋙ शालीनत्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. सौंफ। शतपुष्पा। २. सोवा नामक साग। ३. लज्जाशीलता। विनम्रता (को०)।
⋙ शालीना
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'मिश्रया' [को०]।
⋙ शालीनीकरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. नम्र या शिष्ट बनाना। २. दुर्वचन। निंदा। धिक्कार [को०]।
⋙ शालीय (१)
वि० [सं०] १. शाला या घर संबंधी। २. शाल वृक्ष का।
⋙ शालीय (२)
संज्ञा पुं० एक वैदिक आचार्य का नाम।
⋙ शालु
संज्ञा पुं० [सं०] १. भसींड। कमलकंद। २. भटेउर या चोरक नामक औषधि। ३. कषाय द्रव्य। ४. मेढ़क। भेक। ५. एक प्रकार का फल।
⋙ शालुक
संज्ञा पुं० [सं०] १. भसींड़। पद्यकंद। २. जायफल।
⋙ शालुर
संज्ञा पुं० [सं०] मंडूक। भेक। मेढ़क। [को०]।
⋙ शालूक
संज्ञा पुं० [सं०] १. मंडूक। मेढक। २. जायफल। जातीफल। ३. दे० 'शालुक'। ४. भसींड़। ५. एक प्रकार का रोग।
⋙ शालूकिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] महाभारत के अनुसार एक तीर्थ का नाम।
⋙ शालूर
संज्ञा पुं० [सं०] भेक। मेढक।
⋙ शालूरक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का कीटाणु जो अँतड़ियों में पीड़ा उत्पन्न करता है।
⋙ शालेय (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. सौंफ। मधुरिका। २. शालि धान का खेत। ३. मूली।
⋙ शालेय
वि० १. शाल संबंधी। शाल वृक्ष का। २. शाला संबंधी। (को०)।
⋙ शालेया
संज्ञा स्त्री० [सं०] मेथी। मिश्रीया।
⋙ शालोत्तरीय
संज्ञा पुं० शालोत्तर जनपद के निवासी, पाणिनि [को०]।
⋙ शाल्मल
संज्ञा पुं० [सं०] १. शाल्मली वृक्ष। सेमल का पेड़। २. मोचरस। ३. एक द्वीप का नाम। विशेष दे० शाल्माल—३। ४. एक नरक। विशेष दे० 'शाल्मलि'—४।
⋙ शाल्मलि
संज्ञा पुं० [सं०] शाल्मली वृक्ष। सेमल का पेड़। विशेष दे० 'सेमल'। २. पुराणानुसार एक द्वीप का नाम। विशेष—यह क्रौंच द्वीप से दूना कहा गया है। यह भी कहा गया है कि इस द्वीप में शाल्मिलि या सेमल के वृक्ष बहुत अधिकता सेहैं और यह चोरों ओर से ऊख के रस के समुद्र से धिरा हुआ है। इसमें श्वेत, लोहित, जीमूत, हरित, वैद्युत, मानस और सुप्रभ नामक सात वर्ष हैं जिनमें कुमुद, उत्तम, बलाहक, द्रोण, कंक, महिष और ककुद सात पर्वत तथा योनी, तोया, वितृष्णा, चंद्रा, शुक्लका, विमोचनी और निवृत्ती नाम की सात नदियाँ हैं। ३. पुराणानुसार एक नरक का नाम। विशेष—कहते हैं, इसमें जीवों को शल्मलि वृक्ष के काँटे चुभाकर कष्ट पहुँचाया जाता है।
⋙ शाल्मलिक
संज्ञा पुं० [सं०] १. रोहितक वृक्ष। रोहिड़ा। २. मामूला किस्म का शाल्मली का पेड़ [को०]।
⋙ शाल्मलिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] सेमल का वृक्ष। शाल्मलि।
⋙ शाल्मलिपत्रक
संज्ञा पुं० [सं०] सतिवन। सप्तपर्ण वृक्ष।
⋙ शाल्मलिस्थ
संज्ञा पुं० [सं०] १. गरुड़ का एक नाम। २. गीध। गृद्ध। [को०]।
⋙ शाल्मली (१)
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शाल्मलि। सेमल। २. एक नरक का नाम। उ०—तिन कहै नर्क शाल्मली डारैं। पाश बाँधि लटकात। तरार।—कबीर सा०, पृ० ४६७। ३. पाताल की एक नदी का नाम (को०)।
⋙ शाल्मली (२)
संज्ञा पुं० [सं० शाल्मलिन्] तार्क्ष्य। गरुड़।
⋙ शाल्मलीकंद
संज्ञा पुं० [सं० शाल्मलीकन्द] शाल्मली की जड़, जो वैद्यक के अनुसार मधुर, शीतल, रोधक, और पित्त, दाह तथा संताप नाशक मानी जाती है।
⋙ शाल्मलीफल
संज्ञा पुं० [सं०] तेजबल या तेजफल नाम का वृक्ष।
⋙ शाल्मलीफलक
संज्ञा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार सेमल के काठ की वह पट्टी जिसपर रगड़कर छुरे आदि की धार तेज की जाती है।
⋙ शाल्मलीद्वीप
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक द्वीप। विशेष दे० 'शाल्मलि'-२।
⋙ शाल्मलीवेष्ट, शाल्मलीवेष्टक
संज्ञा पुं० [सं०] सेमल का गोंद। मोचरस।
⋙ शाल्मलीस्थल
संज्ञा पुं० [सं०] पुराणानुसार एक द्वीप। विशेष दे० 'शाल्मलि',—२।
⋙ शाल्व
संज्ञा पुं० [सं०] १. शौभ राज्य के एक राजा का नाम। विशेष—महाभारत में लिखा है कि काशिराज की कन्याओं के हरणा के समय भीष्म के साथ इनका युद्ध हुआ था जिसमें ये हार गए थे। काशिराज की कन्या अंबा इन्हीं से विवाह करना चाहती थी, इसीलिये भीष्म ने अंबा को इनके पास भेज दिया पर इन्होंने अँबा को ग्रहण नहीं किया। ये शिशुपाल के बड़े मित्र थे। जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल को मार डाला, तब इन्होंने श्रीकृष्ण की हत्या करने के लिये द्वारका पर घेरा डाला था। इसी अवसर पर ये श्रीकृष्ण द्वार युद्ध में मारे गए थे। २. एक प्राचीन देश का नाम।
⋙ शाल्वकिनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] रामायण के अनुसार एक प्राचीन नदी का नाम।
⋙ शाल्वगिरि
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन पर्वत का नाम।
⋙ शाल्वण
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह लेप जो फोड़े पकाने के लिये उसपर चढ़ाया जाता है। पुलटिस। २. भरता। चोखा।
⋙ शाल्वसेनी
संज्ञा पुं० [सं०] १. महाभारत के अनुसार एक प्राचीन देश का नाम। २. इस देश का निवासी।
⋙ शाल्विक
संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का पक्षी जिसे क्षुद्रचूड़ भी कहते हैं।
⋙ शाव (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बच्चा, विशेषतः पशुओं आदि का बच्चा। २. मृतक। मुरदा। ३. भूरा रंग। ४. सूतक जो किसी के मर जाने पर उसके संबंधियों को लगता है। ५. मरघट। श्मशान।
⋙ शाव (२)
वि० १. शवसंबंधी। शव का। २. भूरे रंग का (को०)। ३. मरा हुआ। मुरदा (को०)।
⋙ शावर (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. बच्चा। विशेषतः पशु या पक्षी का बच्चा। २. झाऊ।
⋙ शावक
संज्ञा पुं० [सं०] १. पाप। गुनाह। २. अपराध। कसूर। ३. लोध वृक्ष। ४. शबर स्वामीकृत भाष्य। ५. एक तंत्र- ग्रंथ जो शिव का बनाया हुआ माना जाता है।
⋙ शावर (२)
वि० शवर संबंधी। शवर का।
⋙ शावरक
संज्ञा पुं० [सं०] पठानी लोध।
⋙ शावर चंदन
संज्ञा पुं० [सं० शावर चन्दन] एक प्रकार का चंदन।
⋙ शावरभेदाक्ष
संज्ञा पुं० [सं०] ताँबा।
⋙ शावरी
संज्ञा स्त्री० [सं०] कौंछ। केवाँच।
⋙ शावरोत्सव
संज्ञा पुं० [सं०] कालिकापुराण के अनुसार शावर या म्लेच्छों का एक उत्सव जो होली के सदृश कथित है [को०]।
⋙ शाश्वत (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शाश्वती] १. जो सदा स्थायी रहे। कभी नष्ट न होनेवाला। नित्य। २. संपूर्ण। समस्त। सब (को०)।
⋙ शाश्वत (२)
संज्ञा पुं० १. देवव्यास। २. शिव। ३. स्वर्ग। ४. अंतरिक्ष। ५. सूर्य (को०)। ६. एक कोशकार का नाम (को०)। ७. नित्यता। निरंतरता (को०)।
⋙ शाश्वतिक
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शाश्वतिको] स्थायी। नित्य। शाश्वत।
⋙ शाश्वती
संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी।
⋙ शाष्कुल
वि० [सं०] मांस या मछली खानेवाला। मांसाहारी। गोश्तखार।
⋙ शाष्कुलिक
संज्ञा पुं० [सं०] सेंकी या पकी हुई रोटियाँ, पूड़ी, कचौड़ी आदि। शष्कुला का समूह या ढेर [को०]।
⋙ शास
संज्ञा पुं० [सं०] १. स्तुति। स्तव। २. अनुशासन। यौ०—शासानुशास।
⋙ शासक
संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० शासिका] १. वह जो शासन करता हो। २. वह जिसके हाथ में किसी नगर, प्रांत या देख आदि़ की राजकीय व्यवस्था हो। दंडाधिकारी। हाकिम। ३. कौटिल्य के अनुसार जहाज का कप्तान।
⋙ शासन (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. आज्ञा। आदेश। हुक्म। २. किसी को अपने अधिकार या वश में रखना। ३. लिखित प्रतिज्ञा। पट्टा। ठीका। ४. राजा की दान की हुई भूमि। मुआफी। ५. वह परवाना या परमान जिसके द्वारा किसा व्यक्ति को कोई अधिकार दिया जाय। ६. शास्त्र। ७. इंद्रिय़निग्रह। ८. किसी के कार्यों आदि का नियंत्रण। ९. किसी नगर, प्रांत या देश आदि की राजकीय व्यवस्था करने का काम। हुकूमत। १०. दंड। सजा। ११. शिक्षण। अध्यापन (को०)। यौ०—शासनकर्ता। शासनतंत्र। शासनदूषक = राजाज्ञा का उल्लंघन करनेवाला। शासनप्रणाली। शानव्यवस्था।
⋙ शासन (१)
वि० १. शीक्षा देनेवाला। शिक्षक। बोधक। २. दंड देनेवाला। मारक [को०]। विशेष—यौगिक शब्दों के अंत में प्रयुक्त होने से इस शब्द के उक्त अर्थ होते हैं। जैसे, पाकशासन, स्मरशासन, शिष्यशासन आदि।
⋙ शासनकर्ता
संज्ञा पुं० [सं० शासनकर्तृ] शासन। शास्ता।
⋙ शासनतंत्र
संज्ञा पुं० [सं० शासन तन्त्र] हुकूमत का तौर तरीका। राज्यशासन की रीति या पद्धति।
⋙ शासनदूषक
वि० [सं०] शासन को न माननेवाला। राज्यादेश को न माननेवाला [को०]।
⋙ शासनदेवी
संज्ञा स्त्री० [सं०] जैनियों की एक देवी का नाम।
⋙ शासनधर
संज्ञा पुं० [सं०] १. शासक। २. राजदूत। एलची।
⋙ शासनपत्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह ताम्रपत्र या शिला जिसपर कोई राजाज्ञा लिखा या खोदा हुई हो। २. शुक्रनात के अनुसर राजाज्ञा का वह पत्र जिसपर राजा का हस्ताक्षर हो। फरमान।
⋙ शासनप्रणाली
संज्ञा स्त्री० [सं०] शासन की रीति या पद्धति। हूकूमत का तौर तरीका।
⋙ शासनवाहक
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो राजा की आज्ञा लोगों के पास पहुँचाता हो। २. राजदूत। एलची।
⋙ शासनव्यवस्था
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शासनप्रणाली'।
⋙ शासनशिला
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह शिला जिसपर कोई राजाज्ञा लिखी हो।
⋙ शासनसत्ता
संज्ञा स्त्री० [सं० शासन + सत्ता] शासन या नियमन की स्थिति या अधिकार। उ०—यहाँ उन्हीं राजनीतिक दलों के हाथ में शासनसत्ता रहेगी जो रूस के प्रति मिञता रखेंगे।— भा० अ० रा०, पृ० १२५।
⋙ शासनहर
संज्ञा पुं० [सं०] १. राजदूत। २. वह जो राजा की आज्ञा लोगों तक पहुँचाता हो।
⋙ शासनहारक
संज्ञा पुं० [सं० शासनहारक]दे० 'शासनहर'।
⋙ शासनहारी
संज्ञा पुं० [सं० शासनहारिन्] राजदूत। एलची। शासनहर।
⋙ शासनांतर्गत
वि० [सं० शासन + अन्तर्गत] १. शासन के भीतर या अधीन। २. अधीन। वशीकृत।
⋙ शासना (१)
संज्ञा स्त्री० [सं० शासन] आज्ञा। उ०—उ० दास होइ पुत्र होइ शिष्य होइ कोइ भाइ, शासना न मानई तौ कोटि जन्म नर्क जाइ।—राम चं०, पृ० ४८।
⋙ शासना † (२)
क्रि० स० [सं० शासन] हूकूमत करना। शासन करना। उ०—या विधि शासन जीवन देई। हरिहर नाम न कबहुँ लेई।—कबीर सा०, पृ० २५५।
⋙ शासनाधीन
वि० [सं०]दे० 'शासनांतर्गत'।
⋙ शासनानिवृत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] राजकीय आज्ञा का उल्लंघन [को०]।
⋙ शासनी
संज्ञा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो लोगों को धर्म का उपदेश करती हो।
⋙ शासनीय
वि० [सं०] १. शासन करने के योग्य। २. सुधारने के योग्य। ३. दंड देने के योग्य। सजा देने के लायक।
⋙ शासानुशास
संज्ञा पुं० [सं० शास + आनुशास] राजा। नरेश। शाहं- शाह। उ०—जब उन्होंने एथेंस के वीरों के साथ मिलकर पर्शुपुरी के शासानुशास से युद्ध करके असाधारण शौर्य प्रकट किया था।—वैशाली०, पृ० १२४।
⋙ शासित (१)
वि० [सं०] [वि० स्त्री० शासिता] १. जिसका शासन किया जाय। शासन किया हुआ। २. संयमित। निग्रहित (को०)। ३. जिसे दंड दिया जाय। दंडित।
⋙ शासित (२)
संज्ञा पुं० १. प्रजा। २. निग्रह। संयम।
⋙ शासिता
संज्ञा पुं० [सं० शासितृ] १. शासक। शास्ता। २. दंडविधान करनेवाला। दंड देनेवाला। ३. शिक्षक। उपदेशक [को०]।
⋙ शासी
संज्ञा पुं० [सं० शासिन्] शासन करनेवाला। शासक। विशेष—इस शब्द का प्रयोग प्रायः यौगिक शब्द बनाने में, उसके अंत में किया जाता है।
⋙ शास्
संज्ञा पुं० [सं०] वक्ता। उदघोषक। जैसे,—उक्थशस् = सूक्तों को उद्घोषित करनेवाला [को०]।
⋙ शास्तर पु
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्र] दे० 'शास्त्र'। उ०—ब्रह्मा विध वेद कीन शास्तर मुन मथन काठ, कर कर अठरा पुरान गाई ज्ञान गैली।—संत तुरसी०, पृ० १५९।
⋙ शास्ता
संज्ञा पुं० [सं० शाम्तृ] १. शासक। २. राजा। ३. पिता। ४. उपाध्याय। गुरु। उ०—देवताओं और मनुष्यों के शास्ता हैं।—वैशाली०, पृ० ३३। ५. वह मनुष्य जिसे कोई काम करने का पूरा अधिकार हो। प्रधान नेता या पथप्रदर्शक। ६. वह मनुष्य जिसे शासन की अबाधित सत्ता प्राप्त हो। निरंकुश शासक। दे० 'डिक्टेटर'। ७. बुद्ध (को०)। ८. जिन (को०)। ९. बौद्धों या जैनों का पूज्य उपदेष्टा (को०)।
⋙ शास्त्रि
संज्ञा स्त्री० [सं०] १. शासन। २. दंड। सजा। उ०—शिक्षा समेत बहुधा बहु शस्ति देते।—प्रिय०, पृ० १६७। ३. आदेश। आज्ञा (को०)। ४. राजदंड। उ०—अटल शास्ति नित करने पालन।—पल्लव, पृ० १३०। ५. शासन का चिह्न (को०)।
⋙ शास्त्र
संज्ञा पुं० [सं०] १. हिंदुओं के अनुसाकर ऋषियों और मुनियों आदि के बनाए हुए वे प्राचीन ग्रंथ जिनमें लोगों के हित केलिये अनेक प्रकार के कर्तव्य बतलाए गए हैं और अनुचित कृत्यों का निषेध किया गया है। वे धार्मिक ग्रंथ जो लोगों के हित और अनुशासन के लिये बनाए गए हैं। विशेष—हमारे यहाँ वे ही ग्रंथ शास्त्र माने गए हैं जो वेदमूलक हैं। इनकी संख्या १८ कही गई है और नाम इस प्रकार दिए गए हैं—शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष, छंद, ऋग्वेद, यजुवेंद, सामवेद, अथर्ववेद, मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र, पुराण, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद और अर्थशास्त्र। इन अठारहों शास्त्रों को अठारह विद्याएँ भी कहते हैं। इस प्रकार हिंदुओं की प्रायः सभी धार्मिक पुस्तकें शास्त्र की कोटि में आ जाती हैं। साधारणतः शास्त्र में बतलाए हुए काम विधेय माने जाते है, और जो बातें शास्त्रों में वर्जित हैं, वे निषिद्ध और त्याज्य समझी जाती हैं। २. किसी विशिष्ट विषय या पदार्थसमूह के संबंध का वह समस्त ज्ञान जो ठीक क्रम से संग्रह करके रखा गया हो। विज्ञान। जैसे,—प्राणिशास्त्र, अर्थशास्त्र, विद्युत्शास्त्र, वनस्पति- शास्त्र। ३. आज्ञा। आदेश (को०)। ४. धर्मशास्त्र की आज्ञा (को०)। ५. पुस्तक। ग्रंथ (को०)। ६. सिद्धांत (को०)। २७. ज्ञान (को०)।
⋙ शास्त्रकार
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जिसने शास्त्रों का प्रणयन या रचना की हो। शास्त्र बनानेवाला। २. ग्रंथलेखक (को०)। ३. ऋषि। मुनि (को०)।
⋙ शास्त्रकृत्
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्र बनानेवाले, अर्थात् ऋषि, मुनि। २. आचार्य।
⋙ शास्त्रकोविद
वि० [सं०] जो शास्त्रों में निष्णात हो [को०]।
⋙ शास्त्रगंड
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रगण्ड] साधारण पाठक। बहुत हलका अध्ययन करनेवाला विद्यार्थी [को०]।
⋙ शास्त्रचक्षु
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्र चक्षुष्ट] १. शास्त्र की आँख, अर्थात् व्याकरण। २. वह जिसे शास्त्ररूपी नेत्र प्राप्त हो। ज्ञानी। पंडित।
⋙ शास्त्रचर्चा
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्र संबंधी विचारविमर्श, अध्ययन, मनन आदि [को०]।
⋙ शास्त्रचारण
संज्ञा पुं० [सं०] वह जो शास्त्रों का अच्छा ज्ञाता हो। शास्त्रदर्शी।
⋙ शास्त्रज्ञ
संज्ञा पुं० [सं०] वह व्यक्ति जो शास्त्रों का अच्छा ज्ञाता हो। शास्त्रों का जानकार। शास्त्रवेत्ता।
⋙ शास्त्रतत्व
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रों में वर्णित सत्य। परम सत्य [को०]।
⋙ शास्त्रतत्वज्ञ
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रत्त्वज्ञ] गणक। ज्योतिषी।
⋙ शास्त्रत्व
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्र का भाव या धर्म।
⋙ शास्त्रदर्शी
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रदर्शिन्] वह जिसे शास्त्रों का अच्छा ज्ञान हो। शास्त्रज्ञ।
⋙ शास्त्रदृष्ट
वि० [सं०] शास्त्रों या धर्मग्रंथों में 'विहित' या उक्त। शास्त्रानुकूल [को०]।
⋙ शास्त्रदृष्टि (१)
संज्ञा पुं० [सं०] १. वह जो शास्त्रों का ज्ञाता हो। शास्त्रज्ञ। २. ज्योतिषी (को०)।
⋙ शास्त्रदृष्टि (२)
संज्ञा स्त्री० [सं०] शास्त्र की दृष्टि। शास्त्रीय दृष्टिकोण। शास्त्रानुसार विचारपद्धति [को०]।
⋙ शास्त्रप्रवक्ता
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रप्रवक्तृ] दे० 'शास्त्रवक्ता'।
⋙ शास्त्रप्रसंग
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रप्रसङ्ग] १. शास्त्र का विषय। २. किसी भी प्रकार का धार्मिक विवाद [को०]।
⋙ शास्त्रमति
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रवेत्ता। शास्त्रविद् [को०]।
⋙ शास्त्रमीमांसक
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्र + मीमांसक] शास्त्र की मीमांसा या व्याख्या करनेवाला व्यक्ति।—शास्त्र मीमांसक या तत्त- निरूपक को किसी सामान्य तथ्य या तत्व तक पहुँचने की जल्दी रहती है।—रस०, पृ० ४३।
⋙ शास्त्मीमांसा
संज्ञा स्त्री० [सं० शास्त्र + मीमांसा] तत्वविचार। उ०—आधुनिक पश्चिमी शास्त्रमीमांसा को विदेशी कहकर त्यागा भी नहीं।—रस०, पृ० ५।
⋙ शास्त्रयोनि
संज्ञा स्त्री० [सं०] शास्त्रों का उद्गम स्थान [को०]।
⋙ शास्त्रवक्ता
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रवक्तृ] वह जो लोगों को शास्त्रों का उपदेश देता हो।
⋙ शास्त्रवर्जित
वि० [सं०] शास्त्रों द्वारा निषिद्ध [को०]।
⋙ शास्त्रवाद
संज्ञा पुं० [सं०] किसी विषय का शास्त्रीय विवेचन [को०]।
⋙ शास्त्रविद्
वि० पुं० [सं०] शास्त्रों का जाननेवाला। शास्त्रदर्शी। शारत्रज्ञ।
⋙ शास्त्रविधान
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रीय आज्ञा। वेदाज्ञा [को०]।
⋙ शास्त्रविधि
संज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'शास्त्रविधान' [को०]।
⋙ शास्त्रविमुख
वि० [सं०] शास्त्रों का अध्ययन न करनेवाला [को०]।
⋙ शास्त्रविरुद्ध
वि० [सं०] शास्त्रों के कथन के प्रतिकूल। अशास्त्रीय। अवैधानिक [को०]।
⋙ शास्त्रविप्रतिषेध, शास्त्रविरोध
संज्ञा पुं० [सं०] १. शास्त्रीय विषयों का परस्पर अनैक्य। विधि विधान की असंगति। २. शास्त्रीय विधिके विरुद्ध आचरण [को०]।
⋙ शास्त्रविहित
वि० [सं०] जो शास्त्र द्वारा कथित, अनुमोदित हो। शास्त्रसंमत।
⋙ शास्त्रव्युत्पत्ति
संज्ञा स्त्री० [सं०] शास्त्रों का अंतरंग ज्ञानि। शास्त्रों में प्रवीणता [को०]।
⋙ शास्त्रशिल्पी
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्रशिल्पिन्] १. काश्मीर देश का एक नाम। २. भूमि। जमीन।
⋙ शास्त्रसंगत, शास्त्रसंमत
वि० [सं० शास्त्रपङ्गन, शास्त्रसम्मत] शास्त्र के अनुकूल। शास्त्रसिद्ध।
⋙ शास्त्रसिद्ध
वि० [सं०] शास्त्रों के प्रमाणानुसार स्थापित [को०]।
⋙ शास्त्रस्थिति संपादन
संज्ञा पुं० [सं० शास्त्र + स्थिति + सम्पादन] शास्त्र में निर्दिष्ट विधियों का पालन। उ०—पर रावण यदि राम के प्रति क्रोध या घृणा की व्यंजना करेगा तो रस के तीनों अवययों के कारण 'शास्त्रस्थिति संपादन' चाहे जो हो जाय पर उस व्यंजित भाव के साथ पाठक के भाव का तादात्म्य कभी न होगा।—रस०, पृ० ६६।
⋙ शास्त्राचरण
संज्ञा पुं० [सं०] १. शास्त्र विधियों का पालन। २. शास्त्र का अध्ययन। ३. वह जो शास्त्रादेशों का पालन करता हो। ४. वेदाध्यायी वटु [को०]।
⋙ शास्त्राज्ञा
संज्ञा स्त्री० [सं०] शास्त्र की आज्ञा। शास्त्र का आदेश। उ—धर्माधर्म तथा शास्त्राज्ञा का कुछ भी विचार करते।— प्रेमघन०, भा० २, पृ० १८७।
⋙ शास्त्रातिक्रम
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रीय विधियों का उल्लंघन [को०]।
⋙ शास्त्रातिग
वि० [सं०] शास्त्र की न माननेवाला [को०]।
⋙ शास्त्रानुशीलन
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रों का मनन [को०]।
⋙ शास्त्रानुष्ठान
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रीय नियमों का पालन [को०]।
⋙ शास्त्रान्वित
वि० [सं०] शास्त्रीय नियमों के अनुसार [को०]।
⋙ शास्त्राभिज्ञ
वि० [सं०] शास्त्रों में निष्णात। शास्त्रज्ञ [को०]।
⋙ शास्त्राभ्यासी
वि० [सं०] शास्त्र का अभ्यास या अध्ययन करनेवाला। उ०—भारतीय शास्त्राभासी रसमीमांसा में आत्मा को भी ग्रहण करते हैं।—रस० (भू०), पृ० ३।
⋙ शास्त्रार्थ
संज्ञा पुं० [सं०] १. किसी शास्त्रीय विषय पर वादविवाद करना। उ०—उसने अनेक पंडितों को शास्त्रार्थ में जीता है।— भारतेंदु ग्रं०, भा०, १, पृ० १०। २. शास्त्रविधियों या वचनों का अर्थ [को०]।
⋙ शास्त्रालोचन
संज्ञा पुं० [सं०] शास्त्रों के तत्व का विचार या आलोचना। शास्त्रार्थ। उ०—मध्यस्थ उभय भारती हुई, शास्त्रालोचन, शंकर से हुआ प्रखर जिसमें, हारे मंडन। अपरा, पृ० २१३।
⋙ शास्त्रावर्तलिपि
संज्ञा स्त्री० [सं०] ललितविस्तर के अनुसार प्राचीन काल की एक प्रकार की लिपि।
⋙ शास्त्रिक
वि० [सं०] शास्त्रों का ज्ञाता। शास्त्री।
⋙ शास्त्री (१)
वि० [सं० शास्त्रिन्] [वि० स्त्री० शास्त्रिणी] १. शास्त्र का जाननेवाला शास्त्रज्ञ। शास्त्रविद्।
⋙ शास्त्री (२)
संज्ञा पुं० १. वह जो शास्त्रों आदि का अच्छा ज्ञाता हो। शास्त्रज्ञ। २. वह जो धर्मशास्त्र का ज्ञाता हो। ३. एक उपाधि जो कुछ विद्यालयों आदि में, इसी नाम की परीक्षा में उत्तीर्ण होने पर प्राप्त होती है। ४. वह जो धार्मिक सिक्षा देता हो (को०)।
⋙ शास्त्रीय
वि० [सं०] १. शास्त्र संबंधी। शास्त्र का। २. शास्त्रसंमत। (को०)। ३. वैज्ञानिक (को०)।
⋙ शास्त्रोक्त
वि० [सं०] जो शास्त्र में लिखे या कहे के अनुसार हो। शास्त्रों में कहा हुआ। वैधानिक।
⋙ शास्य
वि० [सं०] १. शासन करने योग्य। २. दंड देने के योग्य। दंडनीय। ३. सुधारने योग्य।
⋙ शाहंशाह
संज्ञा पुं० [फ़ा०] बादशाहों का बादशाह। बहुत बड़ा बादशाह। महाराजाधिराज।
⋙ शाहंशाही
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. शाहंशाह का कार्य या भाव। २. व्यवहार का खरापन। (बोलचाल)। क्रि० प्र०—जताना।—दिखलाना।—बघारना।
⋙ शाह (१)
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. बहुत बड़ा राजा या महाराज। बादशाह। (अन्य अर्थ के लिये दे० 'बादशाह')। २. मुसलमान फकीरों की उपाधि।
⋙ शाह (२)
वि० बड़ा। भारी। महान्। जैसे,—शाहशह। विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग केवल यौगिक शब्द बनाने में उनके आदि में होता है।
⋙ शाहकार
संज्ञा पुं० [फ़ा०] किसी कलाकार की सर्वोत्तम कृति [को०]।
⋙ शाहखर्च
वि० [फ़ा० शाहखर्च] बादशाहों की तरह बहुत अधिक खर्च करनेवाला [को०]।
⋙ शाहगाम
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] घोड़े की एक चाल [को०]।
⋙ शाहजहाँ
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. दुनिया या विश्व का राजा। संसार का स्वमी। २. सम्राट अकबर का पौत्र जिसने ताजमहल बनवाया था।
⋙ शाहजादा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहजादह्] [स्त्री० शाहजादी] बादशाह का लड़का। महाराजकुमार।
⋙ शाहजादी
संज्ञा स्त्री० [फ़ा० शाहजादी] १. बादशाह की कन्या। राजकुमारी। २. कमल के फूल के अंदर का वीला जीरा।
⋙ शाहतरा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहतरह्] पित्त पापड़ा।
⋙ शाहतीर
संज्ञा पुं० [फ़ा०] दे० 'शहतीर' [को०]।
⋙ शाहतूत
संज्ञा पुं० [फ़ा०] दे० 'शहतूत' [को०]।
⋙ शाहदरा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहदह्] १. वह आबादी जो किसी महल या किले के नीचे बसी हो। २. राजमार्ग। आम रास्ता (को०)। ३. दिल्ली के पास यमुना के उस पार बसा हुआ एक कस्बा।
⋙ शाहदाना
संज्ञा पुं० [फ़ा०] एक प्रकार का भाँग का बीज जो दवा के काम आता है [को०]।
⋙ शाहदापरस्ती
संज्ञा स्त्री० [अ० शोहदा + फ़ा० परस्ती] विषय वासना। उ०—चालीस बरस भए थे मस्ती। यो सेर को शाहदापरस्ती।—दक्खिनी०, पृ० १६२।
⋙ शाहनशीं
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] १. बादशाहों के बैठने का बहुमूल्य आसन। २. राजमहल के झरोखे के आगे का वह स्थान जहाँ बैठकर मुगल बादशाह प्रजा को दर्शन देते थे। ३. बैठने की ऊँची जगह [को०]।
⋙ शाहनामा
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहनामह्] १. वह काव्यग्रंथ जिसमें किसी राज्य विशेष के बादशाहों का वर्णन हो। २. फिरदौसी द्वारा रचित एक काव्य ग्रंथ, जिसमें ईरान के वादशाहों का वर्णन है [को०]।
⋙ शाहबलूत
संज्ञा पुं० [फ़ा०]दे० 'बलूत'।
⋙ शाहबाज
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहबाज्] १. सफेद रंग का एक प्रकार का शिकारी पक्षी। २. शूरव योद्धा (को०)।
⋙ शाहबाला
संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'शहबाला'।
⋙ शाहमियाना
संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'शामियाना'। उ०—बड़ा भारी देश और शाहमियाना खड़ा है।—प्रेमघन०, भा० २. पृ० १२०।
⋙ शाहराह
संज्ञा स्त्री० [फ़ा०] बड़ी सड़क। बड़ा रास्ता। राजमार्ग।
⋙ शाहरुखी
संज्ञा पुं० [फ़ा० शाहरुखी] एक सिक्का। उ०—अन्होंने लूटपाट नहौं किया और चार अरब शाहरुखी लेकर संधि कर ली।—हुमायूँ०, पृ० १६।
⋙ शाहाना (१)
वि० [फ़ा०] बादशाहों के योग्य। राजाओं का सा। राजसी।
⋙ शाहाना (२)
संज्ञा पुं० १. विवाह का जोड़ा जो दूल्हे को पहनाया जाता है। यह प्रायः लाल रंग का होता है। जामा। २. दे० 'शहाना'। (राग)।
⋙ शाहिद (१)
संज्ञा पुं० [अ०] १. वह मनुष्य जो आँखों देखी घटना का न्यायाधीश के समक्ष वर्णन करे। साक्षी। गवाह। २. नायिका। प्रेमिका (को०)।
⋙ शाहिद (२)
वि० १. सुंदर। मनोहर। खूबसूरत। २. श्रेष्ठ। उत्तम। उम्दा।
⋙ शाहीं
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. बाज पक्षी। श्येन। २. तुलादंड। तराजू की डाँड़ी [को०]।
⋙ शाही
वि० [फ़ा०] शाहों या वादशाहों का। राजसी। जैसे,—शाही दरबार। शाही महल। शाही। सवारी।
⋙ शाहिन
संज्ञा पुं० [फ़ा०] १. दे० 'शाहबाज'। २. वह सुई जो तराजू की डंडी के मध्य भाग में लगी होती है और जिसेक बिल्कुल सीधे रहने से तौल बराबर और ठीक मानी जाती है।