विक्षनरी:अर्थशास्त्र की शब्दावली

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अर्थशास्त्र की पारिभाषिक शब्दावली[सम्पादन]

  • एडम स्मिथ (1723-1790) : आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक। ‘वेल्थ ऑफ नेशन्स’ के लेखक।
  • समस्त मुद्रा संसाधन : डाकघर बचत संगठन की अवधि जमा रहित व्यापक मुद्रा (ड3)।
  • आभ्यंतरिक स्थिरक : निश्चित व्यय और कर नियमों के अंतर्गत जब आर्थिक दशाएँ बदतर स्थिति को प्राप्त होती है, तो खर्च में स्वतः बढ़ोतरी हो जाती है अथवा करों में स्वतः कमी आ जाती है। अतः अर्थव्यवस्था स्वतः स्थिर दशा को प्राप्त होती है।
  • स्वायत्त परिवर्तन : समष्टि अर्थशास्त्र के मॉडल में परिवर्तों के मानों में अंतर, जो कि मॉडल के बहिर्जात कारकों के कारण होता है।
  • स्वायत्त व्यय गुणक : स्वायत्त खर्च में वृद्धि (अथवा कमी) से समस्त निर्गत अथवा आय में वृद्धि (अथवा कमी) का अनुपात।
  • अदायगी-संतुलन : किसी भी देश का शेष विश्व के साथ लेन-देन की लेखाओं का संक्षिप्त विवरण।
  • संतुलित बजट : ऐसा बजट जिसमें करों से प्राप्त राजस्व सरकार के व्यय के बराबर हो।
  • संतुलित बजट गुणक : करों और सरकार के व्यय दोनों में इकाई वृद्धि या कमी के फलस्वरूप संतुलन निर्गत में परिवर्तन।
  • बैंक दर : आरक्षित निधि के अभाव की स्थिति में यदि व्यावसायिक बैंक रिजर्व बैंक से ऋण लेता है, तो व्यावसायिक बैंकों द्वारा भुगतान योग्य ब्याज दर।
  • वस्तु विनिमय : मुद्रा की मध्यस्थता के बिना वस्तुओं का विनिमय।
  • आधार वर्ष : वह वर्ष जिसकी कीमत का प्रयोग करके वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की गणना की जाती है।
  • बंधपत्र : कागज का ऐसा टुकड़ा, जिस पर एक निर्धारित अवधि के पूरे होने पर भविष्य में मौद्रिक प्र्रतिफल का वादा लिखित होता है। बंधपत्र फर्म अथवा सरकार के द्वारा लोगों से पैसा उधार लेने के लिए जारी किया जाता है।
  • व्यापक मुद्रा : संकुचित मुद्रा़व्यावसायिक बैंकों और डाकघर बचत संगठन द्वारा रखी गई आवधिक जमा।
  • पूँजी : उत्पादन का एक ऐसा कारक, जो स्वयं उत्पादित होता है और आमतौर पर उत्पादन प्रक्रम में इसका पूर्णरूपेण उपभोग नहीं होता।
  • पूँजी लाभ/हानि : किसी बंधपत्रधारी के धन के मूल्य में वृद्धि अथवा कमी जो कि बाजार में उसके बंधपत्रें की कीमतों में वृद्धि अथवा कमी के कारण होता है।
  • पूँजीगत वस्तुएँ : ऐसी वस्तुएँ जिनका क्रय उपभोक्ता की तत्काल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि दूसरी वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए किया जाता है। पूँजीवादी देश अथवा अर्थव्यवस्थाःवह देश जहाँ अधिकांश उत्पादन पूँजीवादी फर्मों द्वारा किया जाता है।
  • पूँजीवादी फर्म : वे फर्म जिनमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं (ं)उत्पादन के कारकों का निजी स्वामित्व (इ)बाजार के लिए उत्पादन (ब)एक दी गई कीमत जिसे मजदूरी की दर कहते हैं, पर श्रम का क्रय और विक्रय (क)पूँजी का निरंतर संचय।
  • नकद आरक्षित अनुपात : व्यावसायिक बैंकों के द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखी गई जमा राशि का अंश।
  • आय का वर्तुल प्रवाह : वह संकल्पना, जिसके अनुसार किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल मूल्य एक वर्तुल पथ पर गमन करता है। यह प्रवाह या तो कारक अदायगी है या वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय अथवा समस्त उत्पादन के मूल्य के रूप में होता है।
  • टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ : ऐसी उपभोक्ता वस्तुएँ जो अतिशीघ्र नष्ट नहीं होती हैं बल्कि एक कालावधि तक टिकती हैं, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ कहलाती हैं।
  • उपभोक्ता कीमत सूचकांक : भारित औसत कीमत स्तर में प्रतिशत परिवर्तन। हम एक दी हुई उपभोक्ता वस्तुओं की टोकरी की कीमतों को लेते हैं।
  • उपभोग वस्तुएँ : अंतिम उपभोक्ताओं के द्वारा उपभोग की गई वस्तुएँ अथवा उपभोक्ता की तत्काल आवश्यकता को पूरा करने वाली वस्तुएँ, उपभोग वस्तुएँ कहलाती हैं। इसमें सेवाओं को भी शामिल किया जा सकता है।
  • निगम कर : निगमों के द्वारा अर्जित आय पर लागए गए कर (या निजी क्षेत्रक के फर्म)।
  • करेंसी जमा अनुपात : लोगों के द्वारा करेंसी के रूप में अपने पास रखी गई मुद्रा और व्यावसायिक बैंकों में जमा की गई मुद्रा के अनुपात को करेंसी जमा अनुपात कहते हैं। केंद्रीय बैंक से ऋण लेने के माध्यम से घाटे की वित्त व्यवस्थाःबजटीय घाटे के लिए सरकार केंद्रीय बैंक से ऋण-ग्रहण के माध्यम से वित्त व्यवस्था करती है। इससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है और फलस्वरूप स्फीति उत्पन्न होती है।
  • मूल्यह्रास : पूँजी स्टॉक में एक कालावधि के अंतर्गत टूट-फूट अथवा अवक्षय है।
  • मूल्यह्रास : तिरती विनिमय दरों के अंतर्गत विदेशी मुद्रा के रूप में देश की करेंसी की कीमत में कमी। यह विनिमय दरों में वृद्धि के अनुरूप होती है।
  • अवमूल्यन : आधिकारिक कार्रवाई के माध्यम से अधिकीलित विनिमय दरों के अंतर्गत देशीय करेंसी की कीमत में कमी।
  • आवश्यकताओं का दुहरा संयोग : एक ऐसी स्थिति, जहाँ दो आर्थिक एजेंटों के पास एक-दूसरे के आधिक्य उत्पादन के लिए पूरक माँग हो।
  • आर्थिक एजेंट अथवा इकाइयाँ : आर्थिक एजेंट अथवा आर्थिक इकाइयाँ ऐसे व्यक्ति अथवा संस्थाएँ होती हैं, जो आर्थिक निर्णय लेती हैं।
  • प्रभावी माँग का सिद्धांत : यदि अंतिम वस्तुओं की पूर्ति को अल्पकाल में स्थिर कीमत पर अनंत लोचदार मान लिया जाए, तो समस्त निर्गत का निर्धारण केवल समस्त माँग के मूल्यों द्वारा होता है। इसे प्रभावी माँग का सिद्धांत कहते हैं।
  • उद्यमवृत्ति : उत्पादन के दौरान संगठन, समन्वयन और जोखिम वहन का कार्य।
  • प्रत्याशित उपभोग : योजनागत उपभोग का मूल्य।
  • प्रत्याशित निवेश : योजनागत निवेश का मूल्य।
  • प्रत्याशित : किसी परिवर्त का उसके वास्तविक मूल्य के विपरीत योजनागत मूल्य।
  • यथार्थ : किसी परिवर्त का उसके योजनागत मूल्य के विपरीत वास्तविक अथवा उपलब्ध मूल्य। राष्ट्रीय आय गणना की व्यय विधिःएक कालावधि में किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के लिए अंतिम व्यय के समस्त मूल्य की माप करके राष्ट्रीय आय की गणना की विधि।
  • निर्यात : किसी देश की घरेलू वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री शेष विश्व को करना।
  • बाह्य क्षेत्रक : इससे किसी देश और शेष विश्व के बीच आर्थिक लेन-देन सूचित होता है।
  • बाह्य : वैसे लाभ अथवा हानि जो किसी दूसरे व्यक्ति, फर्म या किसी अन्य सत्ता को केवल कुछ व्यक्तियों के कारण प्राप्त हो रहा है। फर्म अथवा कोई अन्य सत्ता किसी भी अन्य आर्थिक क्रियाकलाप में भाग ले सकते हैं। अगर कोई दूसरे को लाभ अथवा अच्छा बाह्य कारण उपलब्ध करा रहा है, तो प्रथम के द्वारा इसके लिए दूसरे को कोई भुगतान नहीं किया जाता। अगर किसी को दूसरे के द्वारा हानि अथवा खराब बाह्य कारण उपलब्ध कराया जाता है, तो प्रथम को इसके लिए कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी जाती।
  • आदेश मुद्रा : वह मुद्रा जिसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं होता।
  • अंतिम वस्तुएँ : वे वस्तुएँ जिनमें उत्पादन प्रक्रम में पुनः कोई शिफ्रट नहीं होता।
  • फर्म : आर्थिक इकाइयाँ जो वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती हैं तथा उत्पादन के कारकों को नियोजित करती हैं।
  • राजकोषीय नीति : सरकार के खर्च के स्तर तथा अंतरण और कर ढ़ाँचे के स्तर के संबंध में सरकार की नीति।
  • स्थिर विनिमय दर : दो या दो से अधिक देशों की करेंसियों के बीच की विनिमय दर, जिसका निर्धारण कुछ स्तर पर नियत कर दिया जाता है और जिनके बीच समंजन कभी-कभी ही होता है।
  • नम्य/तिरती विनिमय दर : केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बिना विदेशी बाजार में माँग और पूर्ति की शक्तियों के द्वारा निर्धारित विनिमय दर।
  • प्रवाह : परिवर्त जिसे एक कालावधि में परिभाषित किया जाता है।
  • विदेशी विनिमय : विदेशी करेंसी परिवर्त दिए हुए देश की देशीय करेंसी को छोड़कर अन्य सारी करेंसियाँ।
  • विदेशी विनिमय आरक्षित : किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा धारित विदेशी परिसंपत्तियाँ।
  • उत्पादन के चार कारक : भूमि, श्रम, पूँजी और उद्यमवृत्ति। ये सब एक साथ वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में मदद करते हैं।
  • सकल घेरलू उत्पाद अवस्फितीक : नाममात्र के वास्तविक सकल घरेलू उत्पादों का अनुपात।
  • सरकारी खर्च गुणक : सरकारी खर्च में प्रत्येक इकाई वृद्धि के फलस्वरूप निर्गत में वृद्धि के आकार को प्रदर्शित करने वाले सांख्यिक गुणांक।
  • सरकार : राज्य, जो देश में कानून व्यवस्था कायम करता है, कर एवं शुल्क लगाता है, कानून बनाता है और नागरिकों के आर्थिक कल्याण को प्रोत्साहित करता है।
  • महामंदी : 1930 के दशक की कालावधि में (जो न्यूयार्क में 1929 में स्टॉक बाजार तेजी से गिरावट के साथ शुरू हुई) निर्गत में गिरावट और बेरोजगारी में बड़ी मात्र में वृद्धि देखी गयी।
  • सकल घरेलू उत्पाद : किसी देश की सीमा के अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का समस्त मूल्य। इसमें पूँजी स्टॉक के मूल्यह्रास के प्रतिस्थापन निवेश भी शामिल होते हैं।
  • सकल राजकोषीय घाटा : राजस्व प्राप्तियों और पूँजीगत प्राप्तियों की अपेक्षा कुल सरकारी व्यय का आधिक्य, जिससे ऋण का सृजन नहीं होता।
  • सकल निवेश : पूँजीगत स्टॉक में अभिवृद्धि, जिसमें पूँजी स्टॉक में होने वाले टूट-फूट के लिए प्रतिस्थापन भी शामिल होता है।
  • सकल राष्ट्रीय उत्पाद : सकल घरेलू उत्पाद़विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय। दूसरे शब्दों में, सकल राष्ट्रीय उत्पाद में देश के सभी नागरिकों की समस्त आय शामिल है, जबकि सकल घरेलू उत्पाद में देशीय अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विदेशियों के द्वारा प्राप्त आय शामिल किये जाते हैं और अपने देश के नागरिकों द्वारा विदेशी अर्थव्यवस्था से प्राप्त आय को निकाल दिया जाता है।
  • सकल प्राथमिक घाटा : राजकोषीय घाटा - ब्याजों की अदायगी।
  • उच्च शक्तिशाली मुद्रा : देश के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा अपनाई गई मुद्रा। इसमें मुख्यतः करेंसी आती हैं।
  • परिवार : परिवार अथवा व्यक्ति, जो फर्मों को उत्पादन के कारकों की आपूर्ति करते हैं और जो फर्मों से वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करते हैं।
  • आयात : शेष विश्व से किसी देश द्वारा खरीदी गई वस्तुएँ और सेवाएँ।
  • राष्ट्रीय आय की गणना की आय विधि : एक समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में अंतिम कारक अदायगी (आय) के समस्त मूल्य की माप करके राष्ट्रीय आय की गणना की विधि।
  • ब्याज : पूँजी के द्वारा प्रदान की गई सेवाओं के लिए भुगतान।
  • मध्यवर्ती वस्तुएँ : ऐसी वस्तुएँ जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के दौरान उत्पादन प्रक्रम में होता है।
  • माल-सूची : अबिक्रित वस्तुएँ, अप्रयुक्त कच्चे माल अथवा अर्ध-निर्मित वस्तुएँ जिन्हें कि कोई फर्म एक वर्ष से दूसरे वर्ष तक रखती है।
  • जॉन मेनार्ड कीन्ज (1883-1946) : समष्टि अर्थशास्त्र को एक पृथक अध्ययन की शाखा के रूप में स्थापित करने का श्रेय इनको ही जाता है।
  • श्रम : उत्पादन में प्रयुक्त मानवीय शारीरिक श्रम।
  • भूमि : उत्पादन में प्रयुक्त प्राकृतिक संसाधन-नियत अथवा प्रयुक्त।
  • वैध मुद्रा : मौद्रिक प्राधिकरण अथवा सरकार द्वारा जारी मुद्रा, जिसे लेने से कोई इनकार नहीं कर सकता।
  • अंतिम ऋण-दाता : किसी देश में मौद्रिक प्राधिकरण का कार्य, जिसमें वह तरलता संकट और बैंक रन की स्थिति में व्यावसायिक बैंकों की शोधन-क्षमता की गारंटी प्रदान करता है।
  • तरलता फंदा : अर्थव्यवस्था में ब्याज की अति निम्न दर की स्थिति, जहाँ प्रत्येक आर्थिक एजेंट भविष्य में ब्याज दर की वृद्धि की आशा करता है। परिणामस्वरूप बंधपत्रें की कीमत गिरने लगती और पूँजी का नुकसान होता है। हर व्यक्ति अपने धन को मुद्रा के रूप में रखने लगता है और मुद्रा की सट्टेबाजी की माँग असीमित हो जाती है।
  • समष्टि अर्थशास्त्रीय मॉडल : विश्लेषणात्मक तर्क अथवा गणितीय, रेखाचित्रीय प्रतिचित्रण के माध्यम से समष्टि अर्थव्यवस्था के कार्य का संक्षिप्त रूप में प्रस्तुतीकरण।
  • प्रबंधित तिरती : एक ऐसी व्यवस्था जिसमें केंद्रीय बैंक बाजार की शक्तियों के द्वारा विनिमय दर के निर्धारण की अनुमति प्रदान करता है, किंतु समय-समय पर दर को प्रभावित करने के लिए हस्तक्षेप करता है।
  • सीमांत उपभोग प्रवृत्ति : अतिरिक्त उपभोग और अतिरिक्त आय का अनुपात।
  • विनिमय माध्यम : वस्तु विनिमय को प्रोत्साहित करने के लिए मुद्रा का प्रधान कार्य।
  • मुद्रा गुणक : किसी अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा पूर्ति और उच्च शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक का अनुपात।
  • संकुचित मुद्रा : करेंसी नोट, सिक्के, माँग जमा, जो जनता के द्वारा व्यावसायिक बैंकों में रखे जाते हैं।
  • राष्ट्रीय प्रयोज्य आय : बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद $ शेष विश्व से अन्य चालू अंतरण।
  • निवल घरेलू उत्पाद : किसी देश की सीमा के अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का समस्त मूल्य, जिसमें पूँजी स्टॉक के मूल्यह्रास शामिल नहीं होते।
  • परिवारों द्वारा किये गए निवल ब्याज अदायगी : परिवार द्वारा फर्मों को किये गए ब्याज भुगतान - परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज भुगतान।
  • निवल निवेश : पूँजी स्टॉक में अतिरिक्त वृद्धि। सकल निवेश के विपरीत, इसमें पूँजी स्टॉक के अवक्षय के लिए प्रतिस्थापन शामिल नहीं होता।
  • निवल राष्ट्रीय उत्पाद (बाजार कीमत पर) : सकल राष्ट्रीय उत्पाद - मूल्य ”ास।
  • निवल राष्ट्रीय उत्पाद (कारक लागत पर) अथवा राष्ट्रीय आय : बाजार मूल्य पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद- अप्रत्यक्ष कर-उपदान।
  • नाममात्र विनिमय दर : देशी मुद्रा की इकाइयों की वह संख्या, जो कि कोई एक इकाई विदेशी मुद्रा की प्राप्ति के लिए देता है। यह विदेशी मुद्रा की देशी मुद्रा के रूप में कीमत है।
  • नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद : सकल घरेलू उत्पाद का चालू बाजार कीमतों पर मूल्यांकन किया जाता है।
  • गैर-कर अदायगियाँ : परिवारों के द्वारा फर्मों या सरकार को किए गए गैर-कर भुगतान, जैसे कि अर्थदंड।
  • खुली बाजार क्रिया : केंद्रीय बैंक के द्वारा आम जनता से बंधपत्र बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद या बिक्री, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी न हो।
  • मितव्ययिता का विरोधाभास : जब लोग अत्यधिक मितव्ययी हो जाते हैं, तो वे समस्त रूप में बचत कम करते हैं अथवा पूर्ववत् बचत करते हैं।
  • प्राचल शिफ्रट : प्राचल के मूल्य में परिवर्तन के कारण आलेख में शिफ्रट।
  • वैयक्तिक प्रयोज्य आय : व्यक्तिगत आय - व्यक्तिगत कर भुगतान - गैर कर भुगतान।
  • वैयक्तिक आय : राष्ट्रीय आय - अवितरित लाभ - परिवार द्वारा निवल ब्याज भुगतान - निगम कर $ सरकार और फर्मों से परिवारों को अंतरण भुगतान।
  • वैयक्तिक कर अदायगी : व्यक्ति पर लगाए गए कर, जैसे-आयकर।
  • माल-सूची में योजनागत परिवर्तन : योजनाबद्ध तरीके से माल-सूची के स्टॉक में किये गए परिवर्तन।
  • वर्तमान मूल्य (बंधपत्र का) : मुद्रा की वह मात्र, जिसे आज ब्याज अर्जन परियोजन में रखने से उतनी ही आय का सृजन होता है, जितनी कि किसी बंधपत्र के द्वारा उसकी कालावधि के उपरांत होता है।
  • वैयक्तिक आय : निजी क्षेत्रक को होने वाले निवल घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय
  • राष्ट्रीय आय की गणना की उत्पाद विधि : किसी कालावधि में अर्थव्यवस्था में होने वाले उत्पादन के समस्त मूल्य की माप करके राष्ट्रीय आय की गणना की विधि।
  • लाभ : उद्यमवृत्ति से प्राप्त सेवा के लिए भुगतान।
  • सार्वजनिक वस्तु : सामूहिक रूप से उपभोग की जानेवाली वस्तुएँ अथवा सेवाएँ। किसी को इससे लाभ उठाने से वंचित करना संभव नहीं है और एक व्यक्ति के उपभोग से अन्य के उपभोग में कमी नहीं होती।
  • क्रय-शक्ति समता : अंतर्राष्ट्रीय विनिमय का एक सिद्धांत, जिसके अनुसार एक समान वस्तुओं की कीमत विभिन्न देशों में समान रहती है।
  • वास्तविक विनिमय दर : घरेलू वस्तुओं के रूप में विदेशी वस्तुओं की सापेक्ष कीमत।
  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद : स्थिर कीमतों पर सकल घरेलू उत्पादों का मूल्यांकन।
  • लगान : भूमि (प्राकृतिक संसाधनों) की सेवाओं के लिए भुगतान।
  • आरक्षित जमा अनुपात : व्यावसायिक बैंकों द्वारा धारित कुल जमाओं का अनुपात।
  • पुनर्मूल्यांकन : अधिकीलित विनिमय दर व्यवस्था में विनिमय दर में कमी, जिससे विदेशी करेंसी देशी करेंसी के रूप में सस्ती हो जाती है।
  • राजस्व घाटा : राजस्व प्राप्तियों की अपेक्षा राजस्व खर्च का आधिक्य।
  • रिकार्डो समतुल्यता : वह सिद्धांत जिसमें उपभोक्ता अग्रदर्शी होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार आज जो ऋण-ग्रहण करती है, भविष्य में उसके पुनर्भुगतान के लिए करों में वृद्धि होगी और तद्नुसार वे उपभोग का समंजन करेंगे, जिससे इसका अर्थव्यवस्था पर वैसा ही प्रभाव होगा, जैसाकि कर में वृद्धि से आज होता।
  • सट्टेबाजी के लिए माँग : धन के भंडार के रूप में मुद्रा की माँग
  • सांविधिक तरलता अनुपात : व्यावसायिक बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विशिष्ट तरलता परिसंपत्तियों में निवेश करने के लिए कुल माँग और आवधिक जमा का अंश।
  • स्थिरीकरण : किसी देश के मौद्रिक प्राधिकरण के द्वारा मुद्रा बाजार में बहिर्जात अथवा कभी-कभी बाह्य आघातों, जैसे विदेशी विनिमय अंतःप्रवाह में वृद्धि के विरुद्ध मुद्रा की पूर्ति को स्थायी रखने के लिए किया गया हस्तक्षेप।
  • स्टॉक : जिन परिवर्तों की परिभाषा एक निश्चित काल बिंदु पर की जाती है।
  • मूल्य का संचय : भविष्य में उपयोग के लिए मुद्रा के रूप में धन का संचय किया जा सकता है। मुद्रा के इस कार्य को मूल्य का संचय कहा जाता है।
  • लेन-देन माँग : लेन-देन कार्यों के लिए मुद्रा की माँग।
  • सरकार और फर्मों से परिवारों को अतंरण भुगतान : अंतरण भुगतान ऐसा भुगतान है, जो कि उसके बदले में कोई सेवा प्राप्त किये ही भुगतानकर्ता भुगतान करता है। उदाहरणार्थ - उपहार, छात्रवृत्ति, पेंशन।
  • अवितरित लाभ : निजी या सरकारी स्वामित्व के फर्मों द्वारा अर्जित लाभ, जिसका वितरण उत्पादन के कारकों के बीच नहीं होता।
  • बेरोजगारी दर : रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ लोगों की संख्या (जो कि रोजगार की तलाश में हैं) और रोजगार की तलाश में लोगों की कुल संख्या का अनुपात।
  • लेखांकन इकाई : विभिन्न वस्तुओं के मूल्यों की माप और तुलना के लिए मुद्रा की भूमिका एक पैमाने के रूप में है।
  • माल-सूची में अनियोजित परिवर्तन : माल-सूची का स्टॉक परिवर्तन, जो अप्रत्याशित तरीके से होता है।
  • मूल्यवर्द्धन : उत्पादन की प्रक्रिया में फर्म का निवल योगदान। इसकी परिभाषा इस तरह से की जाती है- उत्पादन का मूल्य- उपयोग में लाई गई मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य।
  • मजदूरी : श्रमिकों की सेवा के लिए भुगतान।
  • थोक कीमत सूचकांक : भारित औसत कीमत स्तर में प्रतिशत परिवर्तन। हम उन वस्तुओं के समूह की कीमतों को लेते हैं, जिनकी खरीद-बिक्री थोक में की जाती है।

संबंधित कड़ियाँ[सम्पादन]

  1. अर्थव्यवस्था पारिभाषिक शब्दावली
  2. हिन्दी शब्दावली

बाहरी कडियाँ[सम्पादन]