अकबक

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अकबक ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ अनु॰ अक+ बंक = असंबद्ध बकना] [क्रि॰ अकबकाना]

१. निरर्थक वाक्य । असंबद्ध प्रलाप । अंड बंड । अनाप शनाप । उ॰—जैसे कछु अकबक बकत है आज हरि, तैसई जानि नावँ मुख काहू की निकसी जाय ।—केशव (शब्द॰) ।

२. घबड़ाहट । चिंता । धड़क । खटका । उ॰—इंद्र जू के अकबक, धाता ज के धकपक, शंभु जू के सकपक, केसोदास को कहै । जब जब मृगया लोक की राम के कुमार चढै, तब तब कोलाहल होत लोक है ।—केशव (शब्द॰) । ३ होश हवाश । छक्का पंजा । अक्की बक्की । चतुराई । सुध । उ॰—सकपक होत पंकजासन परम दीन, अकबक भूलि जात गरुडनसीन के ।— चरणचंद्रिका (शब्द॰) ।

अकबक ^२ वि॰ [सं॰ आवाक्] भीचक्का । चकित । निस्तब्ध, जैसे— 'यह वृत्तांत सुन वह अकबक रह गया' (शब्द॰) ।