अग

विक्षनरी से

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

अग ^१ वि॰ [सं॰]

१. न चलनेवाला । अचर । स्थावर । उ॰—तव विषम माया बस सुरासुर नाग नर अग जग हरे । —मानस, ७ । १३ ।

२. टेढ़ा चलनेवाला ।

३. पहुँच के बाहर । [को॰] ।

अग ^२ संज्ञा पुं॰

१. पेड़ । वृक्ष ।

२. पर्वत । पहाड़ । — गए पूरि सर धूरि भूरि भय अग थल जलधि समान । —तुलसी ग्रं, पृ॰ ३८१ ।

३. पत्थर (को॰) ।

४. वृक्ष । पादप (को॰) ।

५. सूर्य (को॰) ।

६. जलपात्न (को॰) ।

७. सात की संख्या का वाचक शब्द (को॰) ।

अग ^३पु वि॰ [सं॰ अज्ञ] अनजान अनाड़ी । मूढ़ ।

अग ^४पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ अङ्ग] शरीर । अंग (डि॰) ।

अग ^५ † संज्ञा पुं॰ [सं॰ अग्र; प्रा॰ अग्ग] ऊख के सिरे पर का पतला भाग जिसमें गाँठ बहुत पास पास होती हैं और जिसका रस फीका होता हैं । अगौरा ।

अग ^६ पु † क्रि॰ वि॰ [हि॰] दे॰ 'आगे' । उ॰—संबत नब सत अद्ध बरष दास तीय सत्त अग । पुर प्रविष्ट वीसल नरिंद राजंत सयल जग । — पृ॰ रा॰, १ । ४७२ ।