आर्द्रा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

आर्द्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. सत्ताईस नक्षत्रों में छठा नक्षत्र । विशेष—ज्योतिषियों ने इस पद्माकर लिखा है, पर कोई इसे मणि के आकार का भी मानते हैं । इस नक्षत्र में केवल एक ही उज्वल तारा है ।

२. वह समय जब सूर्य आर्दा नक्षत्र का होता है । प्राय:आषाढ़ के आरंभ में यह नक्षत्र उगता है । इसी नक्षत्र से वर्षा का आरंभ होता है । किसान इस नक्षत्र में धान बोते हैं । उनका विश्वास है कि इस नक्षत्र में धान अच्छा होता है । उ॰—आर्दा धान पुनर्बसु पैया । गा किसान जब बोया चिरैया (शब्द॰) ।

३. ११ अक्षरों का एक वर्णवृत्त जिसके पहले और चौथे चरण में जगण, तगण, जगण और दो गुरु (ज त ज ग ग) दूसरे और तीसरे चरण में दो तगण, जगण और दो गुरु (त त ज ग ग) होते हैं । वृत्ति उपजाति के अंतर्गत है । उ॰—साधो भलो योगन पै बढ़ाओ । खड़े रहो क्यों न त्वचै पचाओ । टीके सु छापे बहुतै लगाओ । वृथा सबै जो हरि को न गाओ (शब्द॰) । यौ॰—आर्दालुब्धक = केतु ।

४. अदरक । आदी ।

५. अतीस ।