इंद्रीजीत पु वि॰ [सं॰ इन्द्रियजीत्] दे॰ 'इंद्रियजित्' । उ॰—प्रति अनन्य गति इंद्रीजीता । जाको हरि बिनु कतहुँ न चीता ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ १० ।