इकताना पु वि॰ [सं॰ एकतान या हिं॰ एक+तान=खिंचाव] एक रस । एक सा । स्थिर । अनन्य । उ॰ ऐसे हि देखते रहौं, जन्म सफल करि मानों । प्यारे की भावती, भावती के प्यारे जुगल किसोर जानों । पलौं न टरौं छिन इत न होउँ रहौं इकतानो ।— हरिदास (शब्द॰) ।