उघटना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

उघटना क्रि॰ अ॰ [सं॰ पा॰ उत्कथन, उक्कथन अथवा उदघाटन, पा॰ उग्घाटन]

१. संगीत में ताल की जाँच के लिये मात्राओं की गणना करके किसी प्रकार का शब्द या संकेत करना । ताल देना । सम पर तान तोड़ना । उ॰—(क) संग गोप गोधन- गव लीन्हेँ, नागा गति कौतुक उपजावत । कोउ गावत कोउ नृत्य करत कोउ उघटत कोउ करताल बजावत । सूर॰, १० । ४७९ । (ख) उघटत स्याम नृत्यति नारि । धरे अधर अपंगउपजैं लेत हैं गिरधारि । —सूर, १० । १०५९ ।

२. गई बीती बात को उठाना । दबी गबाई बात को उभाड़ना । कभी के किए अपने उपकार या दूसरे के अपराध को बार बार कहकर ताना देना । जैसे (क) नकटे का खाइए उघटे का खाइए । (ख) जो बात भूल चूक से एक बार हो गई उसे क्या बार बार उघटते हो ।

४. किसी को भला बुरा कहते कहते उसके बाप दादे को भी भला बुरा कहने लगना । उ॰ —सब दिन कौ भरि लेउँ आजु हीँ तब छाड़ौँ मैँ तुमकौ । उघटति हौ तुम मातु पिता लौँ नहिं जानति हौ हमकौ । सू॰ १० । १५०८ ।