उपराग

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

उपराग † संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. रंग ।

२. किसी वस्तु पर उसके पास की वस्तु का आभास पड़ना । अपने निकट की वस्तु के प्रभाव से किसी वस्तु का अपने असल रूप से भिन्न रूप में दिखाई पड़ना । जैसे,—लाल कपड़े के ऊपर रखा हुआ स्फटिक लाल दिखाई पड़ता है । उपाधि । विशेष—सांख्य में बुद्धि के उपराग या उपधि से पुरुष (आत्मा) कर्ता समझ पडता है, वास्तव में है नहीं ।

३. विषय में अनुरक्ति । वासना ।

४. चंद्र या सूर्य ग्रहण । उ॰—भएउ परब बिनु रबि उपरागा ।—मानस, ६ । १०१ ।