उलझना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उलझना क्रि॰ अ॰ [हिं॰ उलझन]
१. फँसना । अटकना । किसी वस्तु से इस तरह लगना कि उसका कोई अंग घुस जाय और छुड़ाने से जल्दी न छूटै । जैसे, काँटे मे उलझना । (उलझना का उलटा सुलझना) । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
२. लपेट में पड़ना । गुथ जाना । (किसी वस्तु में) पेंच पड़ना । बहुत से घुमावों के कारण फँस जाना । जैसे,—रस्सी उलझ गई है, खुलती नहीं है । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
३. लिपटना । उ॰—मोहन नवल श्रृंगार विटप सों उरझी आनंद बेल ।—सूर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
४. किसी काम में लगना । लिप्त होना । लीन होना । जैसे,—(क) हम तो अपने काम में उलझे थे इधर उधर ताकने नहीं थे । (ख) इस हिसाब में क्या है जो घंटो से उलझे हो । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
५. प्रेम करना । आसक्त होना । जैसे,—वह लखनऊ मेंजाकर एक रंडी से उलझ गया । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
६. विवाद करना । तकरार करना । लड़ना—झगड़ना । छेड़ना । जैसे,—तुम जिससे देखो उसी से उलझ पड़ते हो । संयो॰ क्रि॰—जाना ।—पड़ना ।
७. कठिनाई में पड़ना । अड़चन में पड़ना ।
८. अटकना । रुकना । जैसे,—वह जहाँ जाता है वहीं उलझ रहता है । मुहा॰—उलझना सुलझना=फँसना और खुलना । उझलनाः पलकना=बुरी तरह फँसना और निखारने में और फँसते जाना । उ॰—यह संसार काँट की गाड़ी उलझ पलझ मर जाता है ।—कबीर श॰, भा॰१ , पृ॰ २१ । उलझना पुलझना = अच्छी तरह फँसना । उ॰—ब्राह्मण गुरु हैं जगत के करम भरम का खाहिं । उलझि पुलझि के मारि गए चारिउ बेदन माहिं ।—कबीर (शब्द॰) । उलझा सुलझा = टेढ़ा सीधा । भला बुरा । उ॰—बेसुरी बे ठेकाने की उलझी सुलझी तान सुनाऊँ ।—इंशाअल्ला (शब्द॰) । उलझना उलझाना = बात बात में दखल देना । उ॰—जब तक लाला जी लिहाज करते हैं, तब तक ही उनका उलझना उलझाना बन रहा है ।—परीक्षागुरु (शब्द॰) ।
उलझना क्रि॰ अ॰ [हि॰ उलझना]
१. किसी उलझी हुई वस्तु की उलझन दूर होना या खुलना । उलझन का खुलना ।
२. गुत्थी या पेचीदगी का खुलना । जटिलताओं का निवारण होना ।