उल्लास
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]उल्लास संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ उल्लासक, उल्लासित]
१. प्रकाश । चमक । झलक ।
२. हर्ष । मुख । आनंद ।
३. ग्रंथ का एक भाग । पर्व ।
४. एक अलंकार जिसमें एक के गुण या दोष से दूसरे में गुण या दोष दिखलाया जाता है इसके चार भेद हैं—(क) गुण से गुण होना । जैसे—न्हाय संत पवन करैं, गंग धरैं यह आश (शब्द॰) । (ख) दोष से दोष होना । जैसे, —जरत निरखि परस्पर घसन सों, बाँस अनल उपजाय । जरत आप सकुटुंब अन, बन हू देत जराय (शब्द॰) । (ग) गुण से दोष होना । जैसे—करन ताल मदवश करी, उड़वत अलि अबलीन । ते अलि विचरहिं सुमनवन, है करि शोभा- हीन (शब्द॰) । (घ) दोष से गुण होना । जैसे,—सूँघ चुप अरु चाट झट, फेंक्यों बानर रत्न । चंचलता वश जिन बरयो जेहि फोरन को यत्न (शब्द॰) । विशेष—कोई कोई (क) और (ख) को हेतु अलंकार या सम अलंकार और (ग) और (घ) को विचित्र या विषम अलंकार मानते हैं ।—उनके मत से यह अलंकारंतर है ।