ऊ संस्कृत या हिंदी वर्णमाला का छठा अक्षर या वर्ण जिसका उच्चारण स्थान ओठ है । यह दो मात्राओं का होने से दीर्घ और तीन मात्राओं का होने से प्लुत होता है । अनुनासिक और निरनुनासिक के भेद से इन दोनों के भी दो दो भेद होंगे । इस वर्ण के उच्चारण में जीभ की नोक नहीं लगती ।
ऊ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. महादेव ।
२. चंद्रमा ।
ऊ ^२पु † अव्य॰ [सं॰ अपि (संहिता दशा में उ)=भी] भी । उ॰—तुलसीदास ग्वालिन अति नागरि, नटनागर मनि नंदलला ऊ—तुलसी (शब्द॰) ।
ऊ ^२ †पु सर्व॰ [सं॰ अदस् या असौ>*प्रा॰ अहउ> वह, उह, ओह ऊ; अथवा प्रा॰ *अव>वह, ऊ, उह, औह] वह । उ॰—(क) लगन जिसका जिस जिस धात सूँ है । ऊ नई किसका खुदा की जात सूँ है ।—दक्खिनी॰, पृ॰ ११५ । (ख) ऊ गति काहु बिरले जाना ।—कबीर॰ सा॰, पृ॰ ६०६ ।