ओट

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ओट ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ उट=घास फूस या सं॰ आ+वृत्ति=आवरण, या सं॰ ओणन > ओंडन > ओट अथवा देश॰ ओहट्ट=अवगुंठन]

१. रोक जिससे सामने की वस्तु दिखाई न पड़े या और कोई प्रभाव न डाल सके । विक्षेप जो दो वस्तुओं के बीच कोई तीसरी वस्तु आ जाने से होता है । व्यवधान । आड़ । ओझल । जैसे,—वह पेड़ों की ओट में छिप गया । उ॰— लता ओट सब सखिन लखाए । —मानस, १ ।२३१ । मुहा॰—आँखों से ओट होना=दृष्टि से छिप जाना । ओट में= बहाने से । हिले से । जैसे,—धर्म की ओट में बहुत से पाप होते हैं ।

२. शरण । पनाह । रक्षा । उ॰—(क) बड़ी है राम नाम की ओट । सरन गऐं प्रभु काढ़ि देत नहिं, करत कृपा कै कोट ।—सूर॰, १ ।२३२ । (ख) तन ओट के नाते जु कबहूँ ढाल हम आड़ी नहीं ।—पद्माकर ग्रं॰ पृ॰ १४ ।

३. वह छोटी सी दीवार जो प्रायः राजमहलों या बड़े जनाने मकानों के मुख द्वार के ठीक आगे, अंदर की ओर परदे के लिये बनी रहती है । घूँघट की दीवार । गुलामगर्दिश ।

ओट ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] कुसुमोदर नाम का एक वृक्ष । विशेष—इसमें बरसात के दिनों में सफैद और पीले सुगंधित फूल तथा ताड़ की तरह के फल लगते हैं । इन फलों के अंदर चिकना गुदा होता है और इनका व्यवहार खटाई के रूप में होता है । वैद्यक में यह फल रुचिकर, श्रम-शूल-नाशक, मलरोधक और विषघ्न कहा गया है । पर्या॰—भव । भव्य । भविष्य । भवन । वकशोधन । लोमक । संपुटांग । कुसुमोदर ।