कंजा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कंजा ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ करंञ्ज]

१. एक कँटीली झाड़ी । विशेष—इसकी पत्तियाँ मिरिस की पत्तियों से कुछ मिलती जुलती कुछ अधिक चौड़ी होती हैं । इसके फूल पीले पीले होते हैं । फलों के गिर जाने पर कँटीली फलियाँ लगती हैं । इनके ऊपर का छिलका कड़ा और कँटीला होता है । एक एक फली में एक से तीन चार तक बेर के बराबर गोल गोल दाने होते हैं । दानों के छिलके कड़े और गहरे खाकी धूएँ के रंग के होते हैं । के लड़के इन दानों से गोली की तरह खेलते हैं । वैद्य लोग इसकी गूदी को औषध के काम में लाते हैं । यह ज्वर और चर्मरोग में बहुत उपयोगी होती है । अँगरेजी दवाइयों में भी इसका प्रयोग होता है । इससे तेल भी निकाला जाता है जो खुजली की दवा है । इसकी फुनगी और जड़ भी काम में आती है । यह हिंदुस्तान और बर्मा में बहुत होता है और पहाड़ों पर २५००० फुट की ऊँचाई तक तथा मैदानों और समुद्र के किनारे पर होता है । इसे लोग खेतों के बाड़ पर भी रूँधने के लिये लगाते हैं । पर्या॰—गटाइन । करंजुवा । कुवेराक्षी । कृकचिका । वारिणी । कंटकिनी । . इस वृक्ष का बीज ।

कंजा ^२ वि॰ [देश॰ अथवा सं॰ कञ्ज सेवार के रंग का; काही या खाकी रंग का] [स्त्री॰ कंजी]

१. कजे के रंग का । गहरे खाकी रंग का । जैसे,—कजी आँख । विशेष—इस विशेषण का प्रयोग आँख ही के लिये होता है ।

२. जिसकी आँख कंजे के रंग की हो । उ॰—ऐंचा ताना कहे पुकार । कजे से रहियो हुशियार । (कहा॰) ।