कचूर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कचूर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कर्चूर] हल्दी की का एक पौधा । नर कचूर । जरंबाद उ॰— परे पुहुमि पर होइ कचूरू । परै केदली महँ होइ कपुरू ।— जायसी (गुप्त), पृ॰ ३३१ । विशेष— यह ऊपर से देखने में बिलकुल हल्दी की तरह का होता है, पर हल्दी की जड़ और इसकी जड़ या गाँठ में भेद होता हैं । कचूर की जड़ या गाँठ सफेद होती है और उसमें कपूर की सी कड़ी महक होती है । यह पोधा सारे भारतवर्ष में लगाया जाता है और पूर्वीय हिमालय की तराई में आपसे आप होता है । वैद्यक के अनुसार कचूर रेचक, अग्निदीपक और वात तथा कफ को दूर करनेवाला है । यह साँस, हिचकीं और बवासीर में दिया जाता है । पर्या॰— कर्चूर । द्राविड़ । गंधमूलक । गंधसार । वेध- मूख । जटाल । मुहा॰— कचूर होना = कचूर की तरह हरा होना । खूब हरा होना (खेती औदि का) ।

कचूर ^२ संज्ञा पुं॰ [हि॰ कचोरा] [स्त्री॰ कचूरी] कचुल्ला कटोरा । उ॰— (क) नयन कचूर प्रेम मद भरे । भई सुदिष्टि योगी सों ढरे ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) माँगी भीख खपर लइ मुए न छोड़े बार । बुझ जो कनक कचूरी भीख देहु नहिं मार ।—जायसी (शब्द॰) ।