कनसुई

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कनसुई संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कर्ण+श्रव या हिं॰ कान+ सुनना] आहट । टोह । मुहा॰—कनसुई या कनसुइयाँ लेना=(१) छिपकर किसी की बात सुनना । अकनना । (२) भेद लेना । टोह लेना । आहट लेना । (३) सगुन विचारना ।—लेत फिरत कनसुई लसगुन सुभ बूझत गनक बुलाइ के । सुनि अनुकुल मुदित मन मानहुँ धरत धीरजहीं धाइ के—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—स्त्रियाँ चलनी में गोबर की गौर रखकर पृथिवी पर फेंकती हैं । यदि वह गौर सीधी गिरती है तो सगुन मनाता है और यदि उलटी या बेंड़ी गिरती है तो असगुन ।