कमल

विक्षनरी से
कमल

हिन्दी

संज्ञा

कीचड़ में खिलने वाला एक फूल

पर्यायवाची

नीरज, अम्बुज, पंकज

Lotus

संज्ञा

एक भारतीय नाम (पुल्लिंग)

हिन्दी

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

कमल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰] पानी में होनेवाला एक पौधा । विशेषयह प्रायः संसार के सभी भागों में पाया जाता है । यह झीलों, तालाबों और गड़हों तक में होता है । यह पेड़ बीज से जमता है । रंग और आकार भेद से इसकी बहुत सी जातियाँ होती हैं, पर अधिकतर लाल, सफेद और नीले रंग के कमल देखे गए हैं । कहीं कहीं पीला कमल भी मिलता है । कमल की पेड़ी पानी में जड़ से पाँच छः अँगुल के ऊपर नहीं आती । इसकी पत्तियाँ गोल गोल बड़ी थाली के आकार की होती हैं और बीच के पतले डंठल में जड़ी रहती हैं । इन पत्तियों को पुरइन कहते हैं । इनके नीचे का भाग जो पानी की तरफ रहता है, बहुत नरम और हलके रंग का होता है । कमल चैत बैसाख में फूलने लगता है और सावन भादों तक फूलता है । फूल लंबे डंठल के सिरे पर होता है तथा डंठल या नाल में बहुत से महीन महीन छेद होता हैं । डंठल का नाल तोड़ने से महीन सूत निकलता है जिसे बटकर मंदिरों में जलाने का बत्तियाँ बनाई जाती हैं । प्राचीन काल में इसके कपड़े भी बनते थे । वैद्यक में लिखा है कि इस सूत के कपड़े से ज्वर दुर हो जाता है । कमल की कली प्रातः काल खिलती है । सब फूलों की पंखड़ियों या दलों का संख्या समान नहीं होती । पंखड़ियों के बीच में केसर से घिरा हुआ एक छत्ता होता है । कमल की गंध भौंरे को बड़ी प्यारी लगती है । मधुमक्खियाँ कमल के रस को लेकर मधु बनाती हैं जो आँख के राग के लिये उपकारी होता है । भीन्न भीन्न जाति कमल के फूलों की आकृतियाँ भीन्न भीन्न होती हैं । उमरा (अमेरिका) टापू में एक प्रकार का कमल होता है जिसके फुल का व्यास १५ इंच और पत्ते का व्यास साढ़े छह फुट होता है । पंखड़ियों के झड़ जाने पर छत्ता बढ़ने लगता है और थोड़े दिनों में उसमें बीच पड़ जाते हैं । बीच गोल गोल लंबोतरे होते हैं तथा पकने और सूखने पर काले हो जाते हैं और कमलगट्टा कहलाते हैं । कच्चे कमलगट्टे को लोग खाते हैं और उसकी तरकारी बनाते हैं, सूखे दवा के काम आते हैं । कमल की जड़ मोटी और सूराखदार होती हैं और भसीड़ मिस्सा या मुरार कहलाती है । इसमें से भी तोड़ने पर सूत निकलता है । सूखे दिनों में पानी कम होने पर जड़ अधिक मोटी और बहुतायत से होती है । लोग इस तरकारी बनाकर खाते हैं । अकाल के दिनों में गरीब लोग इसे सुखाकर आटा पीसते हैं और अपना पेट पालते हैं । इसके फूलों के अंकुर या उसके पूर्वरूप प्रारभिक दशा में पानी से बाहर आने से पहले नतम और सफेद रंग के होते हैं और पौनार कहलाते हैं । पौनार खाने में मिठा होता हैं । एक प्रकार का लाल कमल होता है जिसमें गंध नहीं होती और जिसके बीज से तेल निकलता है । रक्त कमल भारत के प्रायः सभी प्रांतों में मिलता है । इससे संस्कृत में कोफनद, रक्तोत्पल हल्लक इत्यादि कहते हैं । श्वेत कमल काशी के आसपास और अन्य स्थानों में होता है । इसे शतपत्र, महापद्म, नल, सीतांबुज इत्यादि कहते है । नील कमल विशेषकर कश्मीर के उत्तर और कहीं कहीं चीन में होता है । पीत कमल अमेरिका, साइबेरिया, उत्तर जर्मनी इत्यादि देशों में मिलता है । यौ॰—कमलगट्टा । कमलज । कमलनाल । कमलनयन । पर्या॰— अरविंद । उत्पल । सहस्रपत्र । शतपत्र । कुशेशय । पंकज पंकेरुह । तामरस । सरस । सरसीरुह । विषप्रसून । राजीव । पुष्कर । पंकज । अंभोरुह । अंभोज । अंबुज । सरसिज । श्रीवास । श्रीपूर्ण । इंदिरालय । जलजात । कोकनंद । बनज इत्यादि । विशेषजलवाचक सब शब्दों में ज', 'जात' आदि लगने से कमलवाची शब्द बनते हैं, जैसे, वरिज, नीरज, कंज आदि ।

२. कमल के आकार के एक पांसपिंड जो पेट में दाहिनी ओर होता है । क्लोमा । मुहा॰—कमल खिलना = चित्त आनंदित होना । जैसे, —आज तुम्हारा कमल खीला है ।

३. जल । पानी । उ॰—हृदयकमल नैनकमल, देखिकै कमलनैन, होहुँगी कमलनैन और हौं कहा कहौं ।—केशव (शब्द) ।

४. ताँबा ।

५. [स्त्री॰ कमली] एक प्रकार का मृग ।

६. सारस ।

७. आँख का कोया । डेला ।

८. कमल के आकार का पहल काटकर बना हुआ रत्नवंड ।

९. योनि के भीतर कमलाकार अँगूठे के अगले भाग बराबर एक गाँठ जिसके ऊपर एक छेज होता है । यह गर्भाशय का मुख या अग्रभाग है । फुल । धरन । टणा । मुहा॰—कमल उलट जाना = बच्चेद नीया गर्भाशय के मुँह का अपवर्तित हो जाना जिसमें स्त्रीयाँ वंध्या हो जाती हैं ।

१०. ध्रुवताल का दूसरा भेद जिसमें गुरु, लघु, द्रुत, द्रुतविराम , लघु और गुरु, यथाक्रम होते हैं । यथा—'धिधिकट धाकिट धिमि- धरि, थरकु गिड़ि गिड़ि, दिदिगन थों ।

११. दीपक राग का दूसरा पुत्र । इसकी भार्या का नाम जयजयवंती है ।

१२. मात्रिक छंदो में छह मात्राओं का एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में गुरु लघु गुरु लघु (ऽ। ऽ।) होता है । जैसे, दीनबंधु । शील सिंधु ।

१३. छप्पय के ७१ भेदों में से एक । इसमें ४३ गुरु, ६६ लघु, १०९ वर्ण और १५२ मात्राएँ होती हैं ।

१४. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसका प्रत्येक चरण एक नगण का होता है । जैसे,—न वन, भजन, कमल, नयन ।

१५. काँच का एक प्रकार का गिलास जिसमें मोमबत्ती जलाई जाती है ।

१६. एक प्रकार का पित्त रोग जिसमें आँखें पीली पड़ जाती हैं और पेशाब भी पीला आता है । पीलू । कमला । काँवर ।

१७. मूत्राशय । मसाना । मुतवर ।

कमल पु † ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कपाल या देश॰] शिर । मस्तक । उ॰— (क) कर थापट फूटे कमल; नाखै नयणां नीर ।—बांकी ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ २० । (ख) गोयंदराज गहिलौत आइ । बैठो सुकुँअर कमलं नवाइ ।—पृ॰ रा॰, ६ ।१३४ । (ग) वेढ़ कमल लीधौ खग वाहे ।—रा॰ रू॰, पृ॰ २९० ।

कमल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. लक्ष्मी । उ॰—होती हैं ज्यों चाह दीनजन को कमला की । थी चिंतागंभीर चित्त में शकुंतला की ।—शकु॰, पृ॰ १० ।

२. धन । ऐश्वर्य ।

३. एक प्रकार की बड़ी नारंगी । संतरा ।

४. एक नदी का नाम जो तिरहुत में है । दरभंगा नगर इसी के किनारे पर है ।

५. एक वर्णवृत्त का नाम । दे॰ 'रतिपद' ।