करिया

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

करिया ^१ पुं॰ संज्ञा पुं॰ [सं॰ कर्णी]

१. पतावार । कलवारी । उ॰— सारँग स्यामहि सुराति कराइ । पोढ़े होंहि जहाँ नँदनंदन उँचे टेर सुनाइ । गए ग्रीषम पावस ऋतु आई सब काहु चित चाई । तुम विनु ब्रजवासी यौं जीवैं करिया बिनु नाइ । तुम्हरे कह्यो मानिहैं मोहन चरन पकरि लै आइ । अबकी बेर सूर के प्रभु को नैनानि आइ दिखाइ ।— सूर (शब्द॰ ) ।

२. कर्णधार । माँझी । केवट । मल्लाह ।

३. पतावार थामनेवाला माँझी । किलवारी धरनेवाला मल्लाह । उ॰— (क) सुआँ न रहइ खुरकि जिव, अबहि काल सो आउ । सत्तुर अहइ जो करिया, कबहुँ सो बोरइ नाउ ।— जायसी (शब्द॰) । (ख) सेतु मूल शिव शोभिजै केशव परम प्रकास । सागर जगत को करिया केशवदास । —केशव (शब्द॰) । (ग) जल बूड़त नाव राखिहै सोई जोई करिया पुरौ । करौ सलाह देव जो माँगै मैं कहा तुम तै दुरौ । — सूदन (शब्द॰) ।

करिया पुं॰ ^२ † वि॰ [हिं॰ काला] काला । श्याम । उ॰— (क) ताके बचन बान सम लागे । करिया मुख करि जाहि अभागे ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) तुलसी दुख दूनो दसा दुहु देखि कियो मुख दारिद को करिया ।— तुलसी (शब्द॰) ।

करिया ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] ईख का एक रोग रस ससुख देता हैं और पौधे को काल कर देता है ।

करिया ^४ पुं संज्ञा पुं॰ [हिं॰ काला] काला साँप । काला नाग । उ॰— करिया काटे् जिये रे भाई । गुरू काटे मरि जाई ।— कबीर ष॰, भा॰

३. पृ॰ १९ ।