करुआ

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

करुआ ^१ संज्ञा पुं॰ [देश॰] दारचीनी की तरह का एक पेड़ जो दक्षिण के उतरी कनाड़ा नामक स्थान में होता है । विशेष—इसकी सुगंधित छाल और पत्तियों से एक प्रकार का तेल निकाला जाता है जो सिर के दर्द आदि में लगाया जाता है । इसका फल दारचीनी के फल से बड़ा होता है और काली नागकेसर के नाम से विकता है ।

करुआ ^२ †पु वि॰ [सं॰ कटुक] [स्त्री॰ करुई]

१. कड़ुआ । उ॰—सुनतहि लागत हमैं और इमि ज्यों करुई ककरी ।—सूर (शब्द॰) ।

२. प्रप्रिय । उ॰—कहहि झूठ फुर बात बनाई । ते प्रिय तुमहिं करुइ मैं माई ।—तुलसा (शब्द॰) ।

करुआ ^३ † वि॰ [हिं॰ काला] काला । श्यामवर्ण का । करुई ककरी=[भ्रमर गीत से चयनित पदः सूरदासजी द्वारा रचित-सुनतहि जोग लगत ऐसो अलि! ज्यों करुई ककरी।।(उ०)-जब गोपियों को उद्धव निर्गुण ब्रह्म एवं योग का उपदेश देते है तो गोपियों को उनका उपदेश कडवी ककडी के समान अरुचिकर लगता है ]