कलोर
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कलोर (कल्होड)-जवान बछड़ा, युवा बैल, जोतने योग्य बैल
Reference: कवितावली। तुलसीदास । गंगा-यमुना-संगम वर्णन
सोहै सितासित को मिलिबौ, 'तुलसी' हुलसै हिय हेरि हलौरे । मानों हरे तृन चारु चरैं, बगरे सुरधेनु के धौल कलोरे।। १४४ ।
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]कलोर ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ कल्या या हिं॰ कलोल=कलोल करनेवाली बिना बरदाई गाय] वह जवान गाय जो बरदाई या ब्याई न हो ।
कलोर ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ कलोल] किलोल । चहचहाना । चिड़ियों का स्वर । उ॰—परिमल वास उडे चहुँ ओरा, बहु विधि पक्षी करै कलोरा ।—कबीर सा॰, पृ॰ ४९३ ।