कालकूट

विक्षनरी से

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कालकूट संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक प्रकार का अत्यंत भयंकर विष । विशेष—इसे काला बच्छनाग भी कहते हैं । भावप्रकाश के अनुसार यह एक पौधे का गोंद है जो श्रृंगवेर, कोंकण और मलय पर्वत पर होता है । शुद्ध करने के लिये इसे तीन दिन गोमूत्र में रखकर सरमों के तेल से भीगे कपड़े में बाँधकर कुछ दिन तक रखना चाहिए । शुद्ध रूप में कभी कभी सन्निपात, श्लेष्मा आदि दूर करने के लिये इसका प्रयोग होता है ।

२. सिकिम और भूटान में होनेवालें सींगिया की जाति के एक पौधे की जड़ जिसमें छोटी छोटी गोल चित्तिया होती है ।

३. समुद्रमंथन के बाद निकला हुआ विष जिसे शिव ने पान किया । हलाहल (को॰) ।