कैवल्य

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

कैवल्य संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. शुद्धता । बेलपन । निलिप्तता । एकता ।

२. मुक्ति । अपवर्ग निर्वाण । विशेष—दर्शनों का यह सिद्धांत है कि जीवात्मा या तो आवरणों के क रणअथवा अविद्या । से भ्रमवश संसार में सुख दुःख भोम रहा है । उसे शुद्ध या भ्रमरहित करना ही शास्त्रों ने अपना परम कर्तव्य समझा है और उसके भिन्न भिन्न साधन बतलाए हैं । सांख्य शास्त्र में— त्रिबिध दुःखों की अत्यत निवृत्ति को कैवल्य माना है और विवेक को उसका एकमात्र साधन बतलाया है । योगशास्त्र में विशेषदर्शी आत्मभाव की भावना अर्थात् अहंकार की निवृत्ति को कैवल्य बतलाया है और चित्र की वृत्तियो के निरोध को ही उसका साधन कहा है । वेदांत में अद्वितिय ब्रह्मभाव की प्राप्ति को कैवल्य माना है और अविद्या की निरोध को इसका साधन ठहराया है । न्याय में दुःख की अत्यंत विमुक्ति को कैवल्य या अपर्वग कहा और उसका साधन प्रमादि षोडश पदार्थों का तत्वज्ञान बतलाया है ।

३. एक उपनिषद का नाम ।