कोऊ †पु सर्व॰[हिं॰ को+हू=भी] कोई । उ॰— सावन सरित न रुकै करै जौं जतन कोऊ आति । कृष्ण गहे जिनको मन ते क्यों रुकहि अगम अति ।—नंद॰ ग्रं॰ पृ॰, ९ ।