क्षणिकवाद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

क्षणिकवाद संज्ञा पुं॰ [सं॰] बौद्धों का एक सिद्धांत जिसमें प्रत्येक वस्तु को उसके उत्पत्ति से दूसरे क्षण में नष्ट हो जानेवाला मानते हैं । विशेष—इस मत के अनुसार प्रत्येक वस्तु में प्रतिक्षण कुछन कुछ परिवर्तन होता रहता है और उसकी अवस्था या स्थिति बदलती जाती है । इसे सिद्धांत में सब पदार्थों को अनित्य मानते हैं । इसे क्षणिक या क्षणभंग भी कहते हैं ।