खचाना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खचाना ^१ † क्रि॰ स॰ [हिं॰ खाँचना]

१. अकित करना । चिह्न बनाना । उ॰—(क) राधिका की त्रीबली को बनाय विचारि बिचारि यहै हम लेखे । ऐसी न और न और न और है तीन खँचाय दई बिधि रेख ।—कोई कवि (शब्द॰) । (ख) रामानुज लघु रेखेखँचाई । सो नहिं लाँघेउ अस मनुसाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. जल्दी जल्दी लिखना ।

खचाना पु क्रि॰ स॰ [सं॰ √कृष; प्रा॰ √खंच] दे॰ 'खँचना' । मुहा॰—अपनी खचाना = अपनी ही कही हुई बात को बार बार पुष्ट करते जाना, दूरे के तर्क को कुछ न सुनना । उ॰— सुनौ धौं दै कान अपनी लोक लोकन कीति । सूर प्रभु अपनी खचाई रही निगमन जीति ।—सूर (शब्द॰) ।