खाल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]खाल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ क्षात, प्रा॰, खाल]
१. मनुष्य, पशु आदि के शरीर का ऊपरी आवरण । चमड़ा । त्वचा । मुहा॰—खाल उड़ाना = बहुत मारना या पीटना । खाल उधेड़ना या खींचना = (१) शरीर पर से कपड़ा खींचकर अलग कर देना । उ॰—खाल खैंचि जम भुसा भरावैं, ऐंचि लेहि जस आरा ।—धरम॰, पृ॰ २७ । (२) बहुत मारना पीटना या कड़ा दंड देना । खाल बिगड़ना = दुर्दशा कराने या दंडित होने की इच्छा होना । शामत आना ।
२. किसी चीज का अंगीभूत आवरण । जैसे,—बाल की खाल ।
३. आधा चरसा । अधौड़ी ।
४. धौकनी । भाथी ।
५. मृत शरीर । उ॰—कहि तू अपने स्वारथ सुख को रोकि कहा करिहै खलु खलाहि ।—सूर (शब्द॰) ।
खाल ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ खात, अ॰ खाली]
१. नीची भूमि ।
२. खाड़ी खलीज ।
२. खाली जगह । अवकाश ।
४. गहराई । निचाई ।
खाल ^३ संज्ञा पुं॰ [अ॰ खाल]
१. शरीर का काला दाग । तिल । उ॰—अंदाज से जियादा निपट नाज खुश नहीं । जो खाल अपने हद से बढ़ा सो मसा हुआ ।—कविता कौ॰, भा॰४, पृ॰ १२ ।
२. अभिमान । अहंकार । गरूर (को॰) ।
२. माता का भाई । मामा (को॰) ।
खाल खाल वि॰ [अ॰ खाल खाल] बहुत कम । कहीं कहीं । कोई कोई [को॰] ।