खेह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

खेह संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰, मि॰ पं॰ खेह या अप॰ खेह] धूल । राख । खाक । मिट्टी । उ॰—(क) कीन्हेसि आगिनि पवन जल खेहा । कीन्हेसि बहुतै रंग उरेहा ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) दादू क्योंकर पाइये उन चरनन की खेह ।—दादू (शब्द॰) । मुहा॰—खेह खान = (१) धूल फाँकना । मिट्टी छानना । झख मारना । व्यर्थ समय खोना । नष्ट जाना । उ॰—सुनि सीता, पति सील सुभाऊ । मोद न मन तन पुलक नयन जल सो नर खेहहिं खाऊ ।—तुलसी (शब्द॰) । (२) दुर्दशाग्रस्त होना ।