गँवँ
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]गँवँ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ गम्य]
१. गात । दाँव ।
२. मतलब । प्रयोजन । जैसे,—(क) वह हमारी गँवँ का है । (ख) वह अपनी गँवँ का यार है । क्रि॰ प्र॰—गाँठना ।—साधना ।
३. अवसर । मौका । जैसे—गँवँ देखकर काम करना चाहिए । क्रि॰ प्र॰—लगना ।—मिलना । मुहा॰—गँवँ से = (१) ढंग से । युक्ति से । (२) पु †धीरे से । चुपके । उ॰—(क) बैठे हैं राम लखन अरु सीता । पंचवटी बर परनकुटी तर कहै कछु कथा पुनीता । कपट कुरंग कनक मनिमय लखि प्रिय सों कहति हँसि बाला । पाए पलिवे जोग मंजु मृग मंजुल छाला । प्रिया बचन सुनि बिहँसि प्रेमबस गँवहि चाप सर लीन्हें । चल्यो सो भाजि फिरि फिरि हेरत मुनि रखवारे चीन्हे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) रावण बान महाभट भारे । देखि सरासन गँवहिं सिधारे ।—तुलसी (शब्द॰) ।