गोलक
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
गोलक संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. गोलोक ।
२. गोलपिंड ।
३. विधवा का जारज पुत्र ।
४. मिट्टी का बड़ा कुंडा ।
५. फूलों का निकला हुआ सार । इत्र ।
६. आँख का डेला । उ॰—(क) अति उनींद अलसात कर्मगति गोलक चपल सिथिल रछु थोरे ।— सूर (शब्द॰) । (ख) जोगवहिं प्रभु सिय लकनहिं कैसे । पलक बिलोचन गोलक जैसे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
७. आँख की पुतली । उ॰—उनके हित उनहीं बने कोऊ करौ अनेक । फिरत काक गोलक भयौ दुहूँ देह ज्यों एक ।—बिहारी (शब्द॰)
८. गुंबद । उ॰—बिसुकरमा मनु मनि खंभ पै उडगण को गोलक धरयो ।—गोपाल (शब्द॰) ।
९. वह संदूक या थैली आदि जिसमें किसी विशेष कार्य के लिए थोड़ा थोड़ा धन संग्रह करके रखा जाय । फंड ।
११. वह संदूक या थैला जिसमें बिक्री, कर द्वारा या और किसी प्रकार से आई हुई रोजाना आमदानी रखी जाती है । गल्ला । गुल्लक ।