चक्रमुद्रा

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चक्रमुद्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. चक्र आदि विष्णु के आयुधों के चिह्न जो वैष्णव अपने बाहु तथा और अंगों पर छापते हैं । विशेष—चक्र मुद्रा दो प्रकार की होती है, तप्त मुद्रा और शीतल मुद्रा । जो चिह्न आग में तपे हुए चक्र आदि के ठप्पों से शरीर पर दागे जाते हैं, उन्हें तप्त मुद्रा कहते हैं । जो चंदन आदि से शरीर पर छापे जाते हैं, उन्हें शीतल मुद्रा कहते हैं । तप्त मुद्रा का प्रचार रामानुज संप्रदाय के वैष्णवों में विशेष है । तप्त मुद्रा द्वारका में ली जाती है । जैसे,—मूँडे़ मूँड़, कंठ वनमाला मुचिद्रक्र दिए । सब कोउ कहत गुलाम श्याम को सुनत सिरात हिए ।—सूर (शब्द॰) ।

२. तांत्रिकों की एक अंगमुद्रा जो पूजन के समय की जाती है । इसमें दोनों हाथों को सामने खूब फैलाकर मिलाते और अँगूठे को कनिष्ठा उँगली पर रकते हैं ।