चादर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चादर संज्ञा स्त्री॰ [फ़ा॰]
१. कपडे़ का लंबा चौड़ा टुकड़ा जो ओढ़ने के काम में आता है । हलका ओढ़ना । चौड़ा दुपट्टा । पिछौरी । यौ॰—चादर छिपौवल = लड़कों का एक खेल जिसमें वे किसी लड़के के ऊपर चादर डाल देते हैं और दूसरी गोल के लड़कों से उसका नाम पूछते हैं । जो ठीक नाम बता देता है वह चादर से ढके लड़के को स्त्री बनाकर ले जाता है । मुहा॰—चादर उतरना = बेपर्द करना । इज्जत उतारना । अपमानित करना । मर्यादा बिगाड़ना । विशेष—स्त्रियों के संबंध में इस मुहावरे को उसी अर्थ में बोलते हैं, जिस अर्थ में पुरुषों के लिये 'पगड़ी उतारना' बोलते हैं । चादर ओढ़ाना या डालना = किसी विधवा को रख लेना । चादर रहना या लाज की चादर रहना = इज्जत रहना । कुल की मर्यादा रहना । प्रतिष्ठा का बना रहना । उ॰— लाल बिनु कैसे लाज चादर रहेगी आज कादर करत आप बादर नए नए ।—श्रीपति (शब्द॰) । चादर से बाहर पैर फैलाता = (१) अपनी हद से बाहर जाना । (२) अपने वित्त से अधिक खर्च आदि करना । चादर हिलाना = युद्ध में शत्रुओं से घिरे हुए सिपाही का युद्घ रोकने या आत्मसमर्पण करने के लिये कपड़ा हिलाना । युद्ध रोकने का झंडा दिखाना ।
२. किसी धातु का बड़ा चौखूँटा पत्तर । चद्दर ।
३. पानी की चौड़ी धार जो कुछ ऊपर से गिरती हो ।
४. बढ़ी हुई नदी या और किसी वेग से बहते हुए प्रवाह में स्थान स्थान पर पानी का वह फैलाव जो बिलकुल बराबर होता है, अर्थात् जिसमें भँवर या हिलोर नहीं होता ।
५. फूलों की राशि जो किसी देवता या पूज्य स्तान पर चढाई जाती है । जैसे, मजार पर चादर चढ़ाना ।
६. खेमा । तंबू । शिविर । उ॰—दक्खिन की ओर तेरे चादर की चाह सुनि, चाहि भाजी चाँदबीबी चौंकि भाजैं चक्कवै । = गंग॰, पृ॰ १०३ ।