चित्ती

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चित्ती ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ चित्रिका, प्रा॰ चित्त हिं॰ चित(= सफेद दाग अथवा सं॰ श्वित्रिक)]

१. छोटा दाग या चिन्ह । छोटा धब्बा । बुँदकी । उ॰—पीले मीठे अमरूदों में अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं ।—ग्राम्या, पृ॰ ३६ । यौ॰—चित्तीदार = जिसपर दाग या धब्बा हो । क्रि॰ प्र॰—पड़ना । मुहा॰—चित्ती पड़ना = बहुत खरी सेंकने के कारण रोटी में स्थान स्थान पर जलने का काला दाग पड़ना ।

२. कुम्हार के चाक के किनारे पर का वह गड्ढा जिसमें डंडा डालकर चाक घुमाया जाता है ।

३. मादा लाल । मुनिया ।

४. अजगर की जाति का एक मोटा साँप जिसके शरीर पर चित्तियाँ होती हैं । चीतल ।

५. एक ओर कुछ रगड़ा हुआ इमली का चिआँ जिससे छोटे लड़के जूआ खेलते हैं । विशेष—इमली के चीएँ को लड़के एक ओर इतना रगड़ते हैं कि उसके ऊपर का काला छिलका बिलकुल निकल जाता है और उसके अंदरसे सफेद भाग निकल आता है । दो तीन लड़के मिलकर अपनी अपनी चित्ती एक में मिलाकर फेंकते हैं और दाँव पर चिएँ लगाते हैं । फेंकने पर जिस लड़के के चिएँ क ा सफेद भाग ऊपर पड़ता है, वह और लड़कों के दाँव पर लगाए हुए चीएँ जीत लेता है ।

चित्ती ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ चित(=पेट के बल पड़ा हुआ)] वह कौड़ी जिसकी चिपटी और खुरदरी पीठ प्राय: नीचे होती है और ऊपर चित रहती है । टैयाँ । उ॰—अंतर्यामी यहौ न जानत जो मो उरहि बिती । ज्यों जुआरि रस बीधि हारि गथ सोचत पटकि चिती (शब्द॰) । विशेष—यह फेंकने पर चित अधिक पड़ती है, इसी से इसे चित्ती कहते हैं । जुआरी इससे जुए का दाँव फेंकते हैं ।