चुर
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
चुर ^१ संज्ञा पुं॰ [देश॰]
१. बाघ आदि के रहने का स्थान । माँद ।
२. चार पाँच आदमियों के बैठने का स्थान । बैठक । उ॰—घाट, बाट, चौपार, चूर, देवल, हाट, मसान ।—भगवत रसिक ।—(शब्द॰) ।
चुर ^२ संज्ञा पुं॰ [अनु॰] कागज, सूखे पत्ते आदि के मुड़ने या टूटने का शब्द ।
चुर ^३पु [सं॰ प्रचुर] बहुत । अधिक । ज्यादा । उ॰—प्रेम प्रशंसा विनय युत वेग वचन ये आहिं । तोहि ते होत अनंद चुर फुर उर लागत नांहि ।—विश्राम (शब्द॰) ।