छपद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

छपद संज्ञा पुं॰ [सं॰ षट, प्रा॰ छ + सं॰ पद] भ्रमर । भौंरा । उ॰—(क) उलटि तहाँ पग धारिये जासों मन मान्यौ । छपद कंज तजि बेलि सों लटि प्रेम न जान्यौ ।—सूर (शब्द॰) । (ख) छपद सुनहि वर बचन हमारे । बिनु ब्रजनाथ ताप नैनन की कौन हरै हरि अंतर कारे । —तुलसी (शब्द॰) । (ग) सिंधुर मदझर सिद्धरा ऊखेड़ै वणराय । तजकावेरी कमलबन छपदाँ लीधा छाय ।—बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰ ३, पृ॰ ६९ ।