छार

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

छार संज्ञा पुं॰ [सं॰ क्षार] कुछजली हुई वनस्पतियों या रासायनिक क्रिया से धुली धातुओं की राख का नमक । क्षार ।

२. खारी नमक ।

३. खारी पदार्थ ।

४. भस्म । राख । खाक । उ॰—(क) जो निआन तन होइहि छारा । माटी पोखि मरइ को भारा । जायसी (शब्द॰) । (ख) तुरतहिं काम भयो जरि छारा ।—तुलसी (शब्द॰) । यौ॰—छार खार करना = भस्म करना । नष्ट भ्रष्ट करना । सत्यानाश करना । उ॰—उपजा ईश्वर कोप ते आया भारत बीच । छार खार सब हिंद करूँ मैं तो उत्तम नहिं नीच ।— हरिश्चंद्र (शब्द॰) ।

५. धूल । गर्द । रेणु । उ॰—(क) गति तुलसीस की लखै न कोऊ जो करति पब्बै ते छार, छार पब्बै सो उपलक ही ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) मूढ़ छार डारे गजराजऊ पुकार करैं, पुंडरीक बूडयौ री, कपूर खायो कदली ।—केशव (शब्द॰) ।