छीँक

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

छीँक संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ छिक्का] नाक और मुँह से वेग के साथ सहसा निकलनेवाला वायु का झोंका या स्फोट । विशेष—यह स्फोट नाक की झिल्ली में चुनचुनाहट होने से, या आँख में तीक्ष्ण प्रकाश पड़ने के कारण तिलमिलाहट होने से होता है । इसमें कभी कभी नाक और मुँह से पानी या श्लेष्मा भी निकलता है । हिंदुओं में एक प्राचीन रीति है कि जब कोई छींकता है तब कहते हैं 'शतं जीब' या 'चिरं जीव' । यह प्रथा यूनानियों, रोमनों और यहूदियों में भी थी । अँगरेजों में भी जब कोई छींकता है । तब पुरानी परिपाटी के लोग कहते हैं कि 'ईश्वर कल्याण करे' । हिंदुओं में किसी कार्य के आरंभ में छींक होना अशुभ माना जाता है । क्रि॰ प्र॰—आना ।—होना ।—मारना ।—लेना । मुहा॰—छींक होना = बुरा शकुन होना ।