जटामासी

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

जटामासी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ जटामांसी] एक सुगांधित पदार्थ जो एक बनस्पति की जड़ है । बालछड़ । बालूचर । विशेष—यह वनस्पति हिमालय में १७००० फुट तक की ऊँचाई पर होती है । इसकी डालियाँ एक हाथ से डेढ़ दो हाथ तक लंबी और सोंके की तरह होती हैं जिनमें आमने सामने डेढ़ दो अंगुल लंबी और आधे से एक अंगुल तक चौड़ी पत्तियाँ होती हैं । इसके लिये पथरीली भूमि, जहाँ पानी पड़ा करता हो या सर्दि बनी रहती हो, अधिक उत्तम है । इसमें छोटी उँगली के बराबर मोटी काली भूरी पत्तियाँ होती हैं जिनपर तामड़े रंग के बाल या रेशे होते हैं । इसकी गंध तेज और मीठी तथा स्वाद कड़ुआ होता हैं । वैद्यक में जटामासी बलकारक, उत्तेजक, विषघ्न तथा उन्माद और कास, श्वास आदि को दूर करनेवाली मानी गई है । लोगों का कथन है कि इसे लगाने से बाल बढ़ते और काले होते हैं । खींचने से इसमें से एक प्रकार का तेल भी निकलता है जो औषध औ र सुगंध के काम आता है । २८ सेर जटामासी में से डेढ़ छटाँक के लंगभग तेल निकलता है । इसे वालछड़, बालूचर आदि भी कहते हैं ।